अखंड गंगा प्रवाह का आधुनिक रूप है संघ – जे. नंदकुमार

भोपाल (विसंकें). प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार जी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखंड गंगा प्रवाह का आधुनिक रूप है. संघ को लेकर कई परिभाषाएं प्रचलित हैं. यह भारत का मूल स्वरूप है जो संघ के रूप में हमारे सामने है. संघ को उसके स्वयंसेवक को देखकर समझा जा सकता है. नंदकुमार जी मानस भवन में आयोजित संघ पर केन्द्रित कृति रूप संघ दर्शन पुस्तक के खण्डों के विमोचन समारोह में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा और संस्कृति कुछ ऐसी है कि हमारी हस्ती अभी भी वैसी है. यह नहीं मिटती. कई देश ऐसे हैं जो समाप्त हो गए. संघ के एक संस्थापक प्रचारक दादाराव परमार्थ ने संघ की जो परिभाषा दी है, उसमें उन्होंने हिन्दू राष्ट्र के लिये जीवित लक्ष्य पाने का परिणाम बताया था. भारत में पुराने समय में कुछ ऐसी प्रथाएं पैदा हो गईं, जिसमें हमने पहले महिलाओं को वेदों से अलग कर दिया. उसके बाद पिछड़े वर्ग के लोगों को समाज से अलग कर दिया. यह इतिहास का अंधकारमय कालखण्ड था, इससे हम दुर्बल हो गए.

उन्होंने कहा कि छह खण्डों में विभक्त यह पुस्तक संघ के बारे में लोगों को सुपरिचित कराती है. इस पुस्तक में उल्लेखित तथ्यों को पढ़कर चर्चा में लाने की आवश्यकता है. संघ का मूल कार्य कार्यकर्ता निर्माण है और फिर कार्यकर्ता अन्यान्य क्षेत्रों में कार्य करते हैं. आजादी के आंदोलन में भी कार्यकर्ताओं ने अपनी भूमिका निभाई थी. भारत रत्न भगवान दास के उद्धरण का उल्लेख करते हुए नंदकुमार जी ने कहा कि संघ ने आजादी के आन्दोलन के बाद देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी सुरक्षा प्रदान की थी. जब उन पर विभाजनकारी ताकतों ने आक्रमण की कोशिश की थी. इसके अलावा स्वयंसेवकों ने दिल्ली की वाल्मीकि कॉलोनी में महात्मा गांधी को भी सुरक्षा प्रदान की थी. इस घटना के बाद गांधी जी ने स्वयं संघ के एक एकत्रीकरण में संघ की तारीफ की थी. उन्होंने कहा था कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि सेवा और त्याग के मूल आदर्श से अनुप्राणित हो रहे इस संगठन की शक्ति बढ़ती जाएगी. सेवा और त्याग भारत के आदर्श हैं.

नंदकुमार जी ने शबरीमाला की घटना को लेकर कहा कि वहां देश की प्राचीन परंपरा को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है. हमारे यहां हर मंदिर की अलग परंपरा रही है और उसका पालन किया जाना चाहिये.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के प्राचार्य डॉ. प्रकाश पाण्डे ने कहा कि हमें स्वयं को पहचानने की आश्यकता है. भारत की मूल भावना और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को समझना होगा. अरब के देशों में नया वर्ष नहीं मनाया जाता है, लेकिन हम सेक्युलर जाल में फंसकर हमारी परंपरा को नष्ट कर रहे हैं. कार्यक्रम में संघ के प्रान्त संघचालक सतीश पिंपलीकर और विभाग के सह संघचालक डॉ. राजेश सेठी भी मंच पर उपस्थित थे. कार्यक्रम का समापन वन्देमातरम से हुआ.

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