पुणे (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि युवाओं को केवल नौकरी हासिल करने लायक शिक्षा देने के बजाय अच्छा मनुष्य बनकर जीने की सीख देने वाली शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है. उन्होंने वर्तमान शिक्षा पद्धति को अनुपयुक्त करार दिया. उन्होंने सुझाव दिया कि पुणे में चिंचवड़ के पुनरुत्थान समरसता गुरूकुलम जैसी संस्थाओं के सफल प्रयोग पर गौर करके देश की शिक्षा नीति निर्धारित कर सकते हैं.
क्रांतिवीर चाफेकर स्मारक समिति की ओर से चिंचवड़ में संचालित पुनरुत्थान समरसता गुरूकुलम की दशकपूर्ति के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जिसमें पू. सरसंघचालक जी संबोधित कर रहे थे. पू. सरसंघचालक जी ने कहा कि शिक्षा मनुष्य की अनिवार्य आवश्यकता है और इस वजह से यह उसका बुनियादी हक भी है, लेकिन क्या वर्तमान शिक्षा पद्धति में मनुष्य के जीने की जरूरतें पूर्ण करने की क्षमता है, आज वर्तमान में कितने लोगों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो रहा है. उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान की शिक्षा से मनुष्य न तो स्वाभिमानी बनता है, और न ही स्वावलंबी. मनुष्य को सम्मान के साथ जीना आना चाहिये. शिक्षा का मुख्य उद्देश्य हर व्यक्ति को मनुष्य की तरह जीना सिखाना होना चाहिये.
उन्होंने कहा कि स्वाभिमानी लोगों को शक्तिहीन करने की शिक्षा पद्धति अंग्रेजों ने शुरू की और स्वतंत्रता के बाद भी हमने वही पद्धति जारी रखी. इससे समाज का नुकसान ही हुआ है, ऐसी शिक्षा बदलनी चाहिये. डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि समाज के उपेक्षित वर्ग को मुख्य धारा में लाने के लिये विशेष प्रयास होने चाहियें. गुरुकुलम जैसी संस्थाओं में जाकर उन्हें शक्ति प्रदान करें. सरसंघचालक जी ने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने पर भी बल दिया.
कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाले डॉ. नरेंद्र जाधव, इंदुमति काटदरे, महेश शर्मा, सुनील देशपांडे, डॉ. प्रभाकर॰ रमेश पतंगे, लक्ष्मीबाई गोरडे, रविंद्र शर्मा, गणेश शास्त्री, शांति लाल, हेमेंद्र शहा, को सरसंघचालक जी ने सम्मानित किया. कार्यक्रम के दौरान अभिनव शैक्षणिक प्रयोग सिंहावलोकन पुस्तिका का विमोचन भी डॉ. मोहन भागवत जी ने किया. कार्यक्रम में सांसद अमर साबले, डॉ. विनय सह्स्रबुद्धे, संस्था के अध्यक्ष गिरीश प्रभुणे, सतीश गोरडे सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.