अशोक जी “ एक खुली किताब हैं ” जिनके बारे में आप जब चाहें तब जान सकते हैं – डॉ. मोहन भागवत जी

नई दिल्ली (इंविसंके).

विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक अशोक सिंघल जी के 90वें वर्ष में प्रवेश करने पर, विश्व हिन्दू परिषद द्वारा अभिनन्दन एवं उनके जीवन पर आधारित ग्रन्थ “अशोक सिंघल : हिंदुत्व के पुरोधा” का लोकार्पण हुआ. लोकार्पण पू. सरसंघचालक मोहन राव भागवत जी के करकमलों से केदारनाथ साहनी सभागार, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविक सेंटर, नई दिल्ली में संपन्न हुआ.

इस अवसर पर अपने उद्बोधन में  पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत जी ने कहा कि मैं यहां उपस्थित सभी परम श्रद्धेय संतगण और भाई-बंधुओं एवं कुटुम्बों को नमन करता हूं. अशोक जी ने संघ की परंपरा की जो बात कही है, वो सौ प्रतिशत सत्य कहा है. संघ में व्यक्ति का महत्व नहीं होता, संगठन का महत्व होता है. अशोक जी एक तपस्वी हैं. जीवन में, वर्तमान परिस्थिति में, मनुष्य का शारीर स्तम्भ जीवन को कैसे जीना? ये हमें इस पुस्तक को पढ़कर अनुकरण करने से प्राप्त होगा. एक बार बीबीसी चैनल पर इनका इंटरव्यू था. जिसमें एक-दो प्रश्न होने के बाद अशोक जी बीच में रोकते हुए कहा कि मैं यहां आपके प्रश्नों का उत्तर देने नहीं आया हूं. बल्कि, मैं अपने संदेश को आपके चैनल के माध्यम से सभी को बताने आया हूँ. उसके बाद जिस हिम्मत से अंग्रेजों के चैनल से, उन्हीं के घर में, जिस निर्भयता के साथ जो दो टूक बातें कही थीं. उसके लिए बड़ी हिम्मत चाहिए, जो इनके अंदर मैंने वहां देखी थी. अशोक जी के बारे में यह किताब तो पढ़कर जो जानेंगे, वो तो आपसब जानेंगे ही. पर, मैं बता दूं अशोक जी “एक खुली किताब हैं.” जिनके बारे में आप जब चाहें तब जान सकते हैं. जो हमारे लिए अनुकरण की बात है. इनके जैसी राष्ट्रभक्ति, अपने जीवन में हमसब को प्रयास कर लानी होगी. हमें अनुशासन, लगन, कर्मठता, सेवाभाव, राष्ट्र-प्रेम, धर्म-रक्षा और दूरदर्शिता की सीख इनके जीवन से लेनी चाहिए.

कार्यक्रम के शुरुआत में स्वामी सत्यमित्रानंद जी ने कहा – मैं यहां अशोक सिंघल जी को एक सामाजिक पुरूष और महात्मा के रूप में देखता हूं. मुझे लगता है कि अशोक जी को 60 वर्ष की उम्र से ही महात्मा कहना चाहिए था. ऐसा नहीं हुआ, पर जो अब हुआ वो बहुत अच्छा हुआ है. जो धैर्य धारण करता है, वही महात्मा होता है और अशोक जी के रग-रग में धैर्य है. ऐसे महात्मा कभी-कभी ही इस धरती पर जन्म लेते हैं. हमें खुशी है कि उस महात्मा के रूप में अशोक जी आज हम सब के बीच में उपस्थित हैं. अशोक जी का जीवन वेद प्रचार, गाय रक्षा, गंगा, राष्ट्र भक्ति और हिंदुत्व के लिए ही समर्पित रहा है. मैं ऐसे महात्मा को प्रणाम करता हूँ.

कार्यक्रम में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन क्षेत्र में ऐसे विरले ही पुरोधा हमें मिलते हैं और ऐसे ही पुरोधा के रूप में हमें अशोक जी मिले हैं. जो हमारे राष्ट्र के लिए एक धरोहर हैं. स्वतंत्र भारत में दो बड़े आन्दोलन हुए. जिनमें से एक “कार सेवा” था. जिसके कर्णधार सिंघल जी थे. सिंघल जी कहते हैं कि मैं हिंदुत्व का पूजारी हूँ और हिन्दू को किसी मजहब की सीमा में नहीं बांधा जा सकता. यह एक मानवीय धर्म है, जो अति प्राचीनतम है. इतिहास भी साक्षी है, इस बात का. सिंघल जी ने जीवन में
कार्यक्रम में अशोक सिंघल जी ने सभी को नमन करते हुए कहा कि “संघ में व्यक्ति का महत्व नहीं होता, संगठन का महत्व होता है.” मैं आज जो कुछ भी हूं वो अपने गुरुदेव की कृपा से हूं. मैंने सेवा की और मुझे उस सेवा से शक्ति मिली. अपने पू. गुरुदेव जी को याद करते कहा कि मेरे गुरुदेव सामान्य व्यक्तित्व से संपन्न थे. उनसे ही मैंने प्रेरणा प्राप्त कर सामान्य जीवन को अपनाया. मैं 18 वर्ष अपने जीवन के कानपुर में अपने गुरुदेव के सानिध्य में बिताते हुए सेवा की. वहीं गुरु जी से मैंने समस्त महाभारत सुना. मेरे जीवन को जिसने गढ़ा उसका श्रेय भी तो होना चाहिए. उसका श्रेय मेरे गुरुदेव को जाता है. मेरे गुरुदेव दूरदर्शी थे. वो कहा करते थे, ये भारत वर्ष फिर से एक दिन शिखर पे चढ़ेगा, जो आज साकार होता दिखाई दे रहा है.कभी मर्यादाओं का अतिक्रमण नहीं किया है. मैं प्रभु श्री राम जी से प्रार्थना करता हूं कि अशोक जी अपने जीवन के 125 वर्ष को पूर्ण करें. उन्होंने कहा कि भारत ही दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है. जहां इस्लाम के 72 फिरके मिलते हैं, जो विश्व के किसी भी अन्य देश और यहां तक कि किसी भी इस्लामिक देश में 72 के 72 फिरके नहीं मिलते हैं.

कार्यक्रम में “अशोक सिंघल : हिंदुत्व के पुरोधा” के लेखक महेश भागचंदका ने कहा कि अशोक सिंघल जी को लोग देश, धर्म, समाज और संस्कृति के रक्षक के रूप में जीवन भर संघर्ष करने वाले और कई आन्दोलनों के सफल नेतृत्वकर्ता के रूप में जानते हैं. छात्र जीवन से ही सिंघल जी ने अपने को राष्ट्र और धर्म की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था. अपने जीवन के महत्वपूर्ण 65 वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में धर्म और देश की सेवा में समर्पित किए हैं. हिंदुत्व एवं हिन्दू समाज को देश-विदेशों में नई पहचान दिलाने वाले महान तपस्वी, ओजस्वी व्यक्तित्व के धनी हैं अशोक जी. पाठकों को पुस्तक के माध्यम से अस्सी के दशक में चरम पर पहुंची राम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, देश में धर्मान्तरण के खिलाफ चलाई गई मुहिम और साथ ही अस्पृश्यता के विरूद्ध जनजागरण की विस्तार से जानकारी मिलेगी. यह पुस्तक हिंदुत्व को समझने में बेहद सहायक साबित होगी. एक समर्पित योद्धा की तरह धर्म, देश, समाज, और संस्कृति की रक्षा के लिए घर-परिवार, निजी स्वार्थ को छोड़कर तपस्वी जीवन व्यतीत करने वाले महान व्यक्तित्व के कर्तृत्व को समेटना मेरे लिए एक आत्मिक आनन्द को प्राप्त करने जैसा है.

कार्यक्रम में विहिप के वरिष्ठ पदाधिकारी, कार्यकर्ता, प्रमुख मठों-अखाड़ों के महंत, साधू- संत, दलाई लामा के प्रतिनिधि उपस्थित थे. मंच चंपत राय जी ने किया. कार्यक्रम में अशोक जी के जीवन पर आधारित वृत्तचित्र भी दिखाया गया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अन्य गणमान्यजनों का शुभकामना संदेश दिखाया गया.

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