आज देश कि सभी समस्याओ का कारण, जीवन मूल्यों में नैतिकता का क्षय है – श्री भैयाजी जोशी

वर्ष प्रतिपदा उत्सव

कर्णावती महानगर, गुजरात

मा. सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी का उद्बोधन

प.पू.भगवाध्वज, मंच पर विराजमान उपस्थित अधिकारीगण, स्वयंसेवक बंधुओ, हम आज हिन्दू पंचाग के अनुसार नववर्ष में प्रवेश कर रहे हैं. आज ही के दिन से ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण प्रारंभ किया. आज ही के दिन रावण का वध कर भगवान राम ने अयोध्या में प्रवेश किया. आदर्श प्रशासन देने वाले प्रभु श्री राम ने आदर्श सुशासन के रूप में राम राज्य दिया.

रा. स्व. संघ के संदर्भ में जब हम सोचते है तो संघ के संस्थापक डॉ. साहब का जन्मदिन भी आज ही है.  वास्तव में आज का यह पर्व हमें कई बातों का स्मरण करने का सुअवसर देता है.  भारत का जन्म कब हुआ. विश्व के अनेक देश अपना जन्मदिन बता सकते है परन्तु भारत के बारे में कोई नहीं जानता क्योकि मानव संस्कृति का जन्म स्थान भारत ही हैं. हजारो- लाखो वर्षो का इतिहास से भारत का. यह बात अपने मन में स्वाभिमान, सन्मान का भाव प्रकट करती है.

भारत कि परंपरा हमेशा देने कि रही हैं हम कभी भी कही लेने नहीं गए. जिस प्रकार कि स्पर्धा का युग हम आज देख रहे है उसमे सही दिशा देने वाला भारत ही हैं. आज विश्व मानता है कि समस्त मानवजाति के लिए मार्गदर्शक भारत ही बन सकता हैं. कोई भी परम्परा, जीवन शैली वर्षानुवर्ष में बनती है, यह कोई पाठ्यक्रम का विषय नहीं है, समाज जीवन विकसित होते होते हम यहाँ तक पहुचे है. आज विश्व मानता है भारत कि यह विशेषता समस्त मानवजाति का मार्गदर्शक बन सकती है. हम अपने आपको हिन्दू कहते है तो यह हमारे लिए गौरव का, स्वाभिमान का विषय है.

मानव इतिहास में संघर्ष हमेशा होता रहा है. धर्मग्रंथो के अनुसार ध्यान में आता है कि दैवी शक्ति के सामने हमेशा आसुरी शक्ति, सत्य के सामने असत्य, धर्म के सामने अधर्म हमेशा खड़ा रहा है. लेकिन इतिहास में जीत हमेशा सत्य, न्याय तथा धर्म कि ही हुई है.

अगर हम अपने इतिहास को देखते है तो ध्यान में आता है कि निरंतर आक्रमण झेलते हुए भी हम अपने अस्तित्व को बचाने में सफल हुए. हमारा  अस्तित्व नामशेष नहीं हुआ.  उसका एक कारण है हमारी समाज व्यवस्था विकेन्द्रित हैं. अतः हमारे आस्था केन्द्रों पर आक्रमण हुए, श्रधा स्थान तोड़े गए लेकिन समाज व्यवस्था सलामत रही, आस्था केन्द्र फिर से खड़े हुए.

आक्रंताओ ने हमारा ज्ञान समाप्त करने का प्रयत्न किया नालंदा-तक्षशिला के हजारो ग्रंथो को अग्नि को समर्पित कर दिया गया. लेकिन समाज समाप्त नहीं हुआ. सिकंदर कि कथा है ” किसी ने सिकंदर से कहा यदि हिन्दुओ के वेद ग्रथों को समाप्त कर दिया जाय तो समाज समाप्त हो जायेगा. एक पंडितजी जिनके यहाँ वेद ग्रन्थ थे उनेकी कुटिया में सैनिको को भेजा गया. सैनिको ने कहा हमारे महाराज ने वेद ग्रन्थ मंगवाये है. पंडितजी अगले दिन सुबह आने को कहा, पूरी रात सैनिक कुटिया को धेरे रहे कहि पंडित ग्रंथो को लेकर भाग न जाये. सुबह जब सैनिको ने कुटिया में प्रवेश किया तो देखा पंडितजी वेद ग्रन्थ का अंतिम पेज अग्नि को समर्पित कर रहे थे. सैनिको को के नाराज होने पर उन्होंने कहा मेरे पुत्र को आप ले जाओ उसे वेद कंटस्थ है तात्पर्य यह है कि वेदों को ले जाने से ज्ञान समाप्त नहीं हो जाता.”

आक्रांताओ ने समाज को मानसिक रूप से गुलाम बनाने का प्रयास किया, सुख सुविधाए प्रदान करो और समाज को बांटो, नयी शिक्षण प्रणाली अंग्रेजो द्वारा लागु कि गई, अंग्रेज सेवा के माध्यम से आये हिन्दू समाज को धर्मांतरण के माध्यम से तोड़ने का प्रयास किया गया कुछेक अपवादों को छोड़कर वे इसमें भी सफल नहीं हुए. हमारे समाज में कई कमिया रही है तथा है परन्तु हमारे समाज कि बहुकेंद्रित व्यवस्था के तहत धर्म ग्रंथो, समाज सुधारको, साधू संतो के माध्यम से समाज को जोड़ने का प्रयत्न निरंतर चलता रहा. राजा आये चले गए लेकिन राष्ट्र खड़ा रहा. समाज पर आने वाली बाधाओ को पार करते हुए हमें आगे बढ़ना है यही भारत कि नियति है, भारत को मालूम है उसे कहा जाना है. हिमालय से निकलने वाले जलप्रवाह को मालूम है उसको कहा पहुचना है उसका गंतव्य समुद है. जल का स्वाभाव है बाधाओ के सामने वह रुकता नहीं है वह अपने गंतव्य तक पहुचता ही है.

व्यक्तिगत जीवन में संस्कार किसी पाठशाला में नहीं मिलते, उसकी कोई परीक्षा नहीं होती, उसका संबंध व्यवहार से जुडा है. संस्कारो कि शिक्षा मंदिरों, आश्रमों तथा परिवार में ही प्राप्त होती है. आज देवालयों व्यवस्था में आई कमियों हमारे लिए चिंता का कारण बन रहा है. धार्मिक आस्था के केंद्र कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हो तो समाज को पीड़ा होती है. सामान्य व्यक्ति को आघात लगता है. मंदिर केवल कर्मकांड के स्थान नहीं बनने चाहिए. वहा से समाज को निरंतर प्रबोधन होना चाहिए. पहेले यह निरंतर होता था. वह प्रभावी रूप से पुनः प्रारंभ होना चाहिए.

हमारे विद्यालय व्यक्ति निर्माण का केंद्र होने चाहिए. हमें यह ध्यान रखना होगा शिक्षा व्यवसाय न बन जाय. शिक्षा व्यवस्था में आई कमी वर्तमान में हम सबके सामने चुनौती है. शिक्षण संस्थाओ में डॉक्टर्स, इंजिनियर नहीं मनुष्य बनने चाहिए. समाज उत्थान का केंद्र विद्यालय रहे है उसमे आई विकृतियों को दूर करना है. यह कार्य समय समय पर समाज ने किया है. केवल राजनेता यह नहीं कर सकते. राजा के कार्य की अपनी सीमाए है. हमारी व्यवस्था राज केन्द्रित नहीं बल्कि समाज केन्द्रित रही है.

हमारी परिवार व्यवस्था में श्रेष्ठ बातों को पीढ़ी दर पीढ़ी संकलित करने की व्यवस्था थी उसमें कुछ दोष आ गए है. वह भी ठीक करने कि आवश्यकता है. आज हमारे ऊपर अलग प्रकार के आक्रमण हो रहे है. हमारी जीवन व्यवस्था, जीवन शैली, नैतिक मूल्यों पर आज चारो तरफ से भीषण आक्रमण हो रहे है. शस्त्रों के आक्रमण को समझा जा सकता है, परन्तु मूल्यों पर होने वाले आक्रमणों को समझना हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है.

आज के आक्रमणों का स्वरुप मनुष्य को पशुता कि ओर ले जाने वाला है. सावधान हुए बिना इससे बच नहीं सकते. आज देश कि सभी समस्याओ का कारण, जीवन मूल्यों में नैतिकता का क्षय है. परिवार व् कुटुंब व्यवस्था ही इन सब आक्रमणों से सुरक्षित रख सकती है. हमारे यहाँ चिंतको ने हम सबके अन्दर एक दृष्टी विकसित कि है, एक चिंतन सबके सामने रखा है जो विश्व कल्याण कि कामना करता है. हमने कहा है ‘शत्रुबुद्धिविनाशाय’ हम किसी के शत्रु नहीं है इस सन्देश को यदि दुनिया स्वीकार ले तो कही भी शस्त्रों कि आवश्यकता नहीं है. भारत का चिंतन कहता है सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय यानि पूरा विश्व के कल्याण की कामना हमारा चिंतन करता है.

हमारे यहाँ प्रकृति में मानव जाति के कल्याण का विचार किया गया है. परन्तु आज आज वर्तमान पीढ़ी प्रकृति संसाधनों पर अपना अधिकार मानती है. ऐसे लोग विश्व का कल्याण नहीं कर सकते. जितना अधिक से अधिक हो सके लेने कि होड़ लगी है. यह गलत अवधारणा है. आने वाली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संशाधनो कि चिंता वर्तमान पीढ़ी को करनी होगी. जितने आवश्यकता है उनता ही लूँगा यह विश्व को बताना है. आने वाले कालखंड में यदि विश्व में कही गलत होता है तो  उसका मार्गदर्शन करने का दायित्व हमारा ही होगा, अपने सही आचरण से हमें विश्व को मार्ग बताना है.

संघ का काम इसी अर्थ में हम कर रहे है. हमारा कार्य शक्ति संग्रह, समाज जागरण का है. जिसे हमें पूरी प्रमाणिकता तथा प्रतिबद्धता के साथ करना है. हिन्दू जीवन, हिन्दू चिंतन के मार्ग पर चलते हुए हमें विश्व को मार्गदर्शन करने वाला भारत खड़ा करना है. यही नववर्ष का संदेश है.

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