लांस नायक करम सिंह ( 15 सितम्बर 1915 – 20 जनवरी 1993 ) पंजाब के बरनाला में जन्में एक सिख थे. 1947 में हुए भारत – पाकिस्तान युद्ध में अभूतपूर्व वीरता के लिए जिन्हें भारत के सेना के वीरों को प्रदान किये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ” परम वीर चक्र ” से सम्मानित किया गया था.
इस युद्ध में भारत और पाकिस्तान ने तिथवाल सेक्टर पर विजय के लिए लड़ाई लड़ी. दिनांक 23 मई 1948 को भारत ने तिथवाल सेक्टर पर कब्जा कर लिया था परन्तु तुरंत ही पाकिस्तान के जबरदस्त हमले से इस क्षेत्र पर वापस कब्जा कर लिया. सन 1948 के मई और अक्टूबर के दरम्यान तिथवाल के कब्जे के लिए दोनों सेनाओं नें कई लड़ाइयाँ लड़ी.
अक्टूबर 1948 में पाकिस्तानी टुकड़ियों ने तिथवाल के दक्षिण के “रिछ्मार गली” तथा पूर्व में स्थित “नस्ताचुर पास” पर कब्जे के उद्देश्य से आक्रमण प्रारम्भ कर दिए. श्री सिंह रिछ्मार गली क्षेत्र के अग्रिम इलाके में कमान संभाल रहे थे. दुश्मन द्वारा की गयी बमबारी से प्लाटून के बंकर नष्ट हो गये थे कमांडर से बातचीत करने के साधन भी नष्ट कर दिए गए थे अत : श्री सिंह अपने कमांडर को नवीनतम स्थिति की जानकारी देने व फ़ोर्स मंगवाने हेतु सन्देश भेजने की स्थिति में नहीं थे. बुरी तरह घायल होने के बावजूद श्री सिंह ने एक साथी की मदद से दो घायल जवानों को कम्पनी के मुख्य स्थान पर लाया और रिछ्मार गली का बचाव करते रहे.
दुश्मन के पांचवे आक्रमण में दो बार जख्मी होने के बावजूद श्री सिंह मोर्चे पर डटे रहे और अग्रिम क्षेत्र की खाइयों को अपने कब्जे में रखा. जब दुश्मन के सैनिक बहुत नजदीक पहुँच गए तब श्री सिंह अपनी खाई से कूद कर बाहर निकले और दुश्मन के दो सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. इस साहसी कार्रवाई से दुश्मन के हौसले पस्त हो गए और दुश्मन को लड़ाई रोकनी पड़ी. दुश्मन ने सीमा चौकियों पर कुल बार आठ आक्रमण किये परन्तु हर बार उसे मुहँ की खानी पड़ी. तिथवाल के युद्ध में बहादुरी व साहस के लिए श्री सिंह ‘परम वीर’ चक्र प्राप्त करने वाले दूसरे सैनिक रहे.
श्री सिंह भारतीय सेना से सूबेदार तथा मानक कैप्टेन के रूप में सेवा निवृत हुए. देश को अपने शौर्य से विजय का इतिहास देकर लांस नायक करम सिंह ने एक लम्बा जीवन जीया और 20 जनवरी 1993में अपने गाँव में उन्होंने शांतिपूर्वक अंतिम सांस ली.
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