दारा शिकोह मुग़ल बादशाह शाहजहाँ औरमुमताज़ महल का सबसे बड़ा पुत्र था। शाहजहाँ अपने इस पुत्र को बहुत अधिक चाहता था और इसे मुग़ल वंश का अगला बादशाह बनते हुए देखना चाहता था। शाहजहाँ भी दारा शिकोह को बहुत प्रिय था। वह अपने पिता को पूरा मान-सम्मान देता था और उसके प्रत्येक आदेश का पालन करता था। आरम्भ में दारा शिकोह पंजाब का सूबेदार बनाया गया, जिसका शासन वह राजधानी से अपने प्रतिनिधियों के ज़रिये चलाता था।
दारा शिकोह का व्यक्तित्व अद्भुत और शानदार था। 1526 में मुगल शासन की शुरुआत से 1857 में इसके अंत तक जितने भी मुगल राजकुमार हुए, उनमें वे सबसे अनोखे थे। उनके जीवन का महान ध्येय था हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भाईचारा कायम करना। वे एक सूफी बुद्धिजीवी बने, जिसका मानना था कि हर किसी के लिए भगवान की तलाश समान है। उन्होंने अपना जीवन वेदांतिक और इस्लामिक अध्यात्म में समन्वय बैठाने में समर्पित कर दिया। वे मानते थे कि कुरान में अदृश्य किताब किताब अल-मकनन वास्तव में उपनिषद थे। उन्होंने संस्कृत सीखी और उपनिषद, गीता और योग वशिष्ठ का फारसी में अनुवाद किया और इसके लिए बनारस के पंडितों की मदद ली। 52 उपनिषदों का अनुवाद उसने “सीर-ए” अकबर में किया है।
1657 में शाहजहां बीमार पड़ गए और औरंगजेब गद्दी के उत्तराधिकारी अपने बड़े भाई दारा शिकोह के खिलाफ खड़ा हो गया। औरंगजेब कट्टर मुसलमान था और दारा के विचारों को गलत मानता था। साथ ही वह अवसरवादी भी था। उसने सत्ता पर कब्जा जमाने के लिए दारा को रास्ते से हटाने का फैसला किया। उसने इस्लामिक मौलवियों और उलेमाओं की उच्चस्तरीय परिषद की बैठक बुलाई। इस परिषद में उसने अपनी मित्रमंडली और समर्थकों को भर रखा था। इस परिषद ने दारा शिकोह को शांति भंग करने और इस्लाम के प्रति गद्दारी का दोषी पाया और 30 अगस्त, 1659 की रात मौत के घाट उतार दिया। अगर दारा इस सत्ता संघर्ष में जीत जाते तो भारत का भविष्य कुछ और ही होता
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