एकात्मता तथा सामाजिक समरसता ही हिन्दू समाज का प्राण है – सामाजिक सदभाव संमेलन, गुजरात

सामाजिक समरसता मंच, गुजरात द्वारा दिनांक 3.8.2016, बुधवार को सामाजिक अग्रणियो तथा संतो-महंतो की उपस्थिति में “ सामाजिक सदभाव संमेलन “ का ऊना, भावनगर में आयोजन किया. इस संमेलन में संत समाज ने एक आवाज मे ऊन कांड के पीडितो के प्रति सहानुभूति व्यक्त की तथा पीड़ित का साथ देने के लिए संपूर्ण हिन्दू समाज को अपील की. संतो ने कहाँ कि इस प्रकार की घटनाये संपूर्ण समाज की मानसिकता का प्रतिबिंब न मानी जाय. कुछेक स्थापित हित रखेने वाले लोग समाज की भावनाए भड़का कर समाज को विघटित करने का प्रयास कर रहे है हमसब को साथ मिलकर इस प्रकार के तत्वों को असफल बनाना है. एकात्म और समरस समाज का निर्माण करने के लिए हमसब कटिबद्ध है.

संमेलन के समारोप में डॉ. जयंतीभाई भाड़ेसिया (मा. संघचालक, पश्चिम क्षेत्र, रा.स्व.संघ) ने कहाँ कि ऊना के समधियाला गाँव की घटना के संदर्भ में राजकीय एवं समाज विरोधी तत्व स्वहित के लिए शांति एवं समरसता नष्ट करने का प्रयत्न कर रहे है ऐसे समय में पूजनीय साधु संत समरसता के भागीरथ कार्य मे लगे है. राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ तो अपने स्थापन काल से ही हिन्दू समाज की समरसता के लिए प्रयत्नशील है.

“ सामाजिक सदभाव संमेलन “ में संतो महंतो की उपस्थिति मे समरसता के लिए प्रस्ताव पारित किया गया.

प्रस्ताव-

1. ऊना के समधियाला गाँव की घटना तथा इस प्रकार की अन्य घटनाये निंदनीय है, अमानवीय है.

2. गौ-रक्षा के नाम से होने वाले असामाजिक कृत्य की संत समाज कड़े शब्दों में निंदा करता है. गौ-रक्षा के नाम से होनेवाली असामाजिक प्रवृति बंद होनी चाहियें. गौ-रक्षा के नाम से निर्दोष बंधुओ पर अत्याचार करना एक सामाजिक अपराध है. सरकार को भी ऐसे तत्वों के सामने कड़ी कार्यवाही करनी चाहियें.

3. अस्पृश्यता हिन्दू समाज का महारोग है यह समाज के कुछ लोगो की मानसिकता है. संत समाज, हिन्दू समाज को इस मानसिक रोग से मुक्त करने के लिए कटिबद्ध है. अस्पृश्यता को संत समाज अमान्य करता है. समाज से ऊँचनीच का भेदभाव दूर होना चाहियें, अपने ही बंधुओ के साथ छुआछुत का व्यावहार करना पाप है. हिन्दू समाज इस पाप से मुक्त हो यही प्रत्येक नागरिक का जीवन लक्ष्य बने ऐसी संत समाज अपील करता है.

4. हिन्दू धर्म के चिंतन मे प्राणिमात्र के हृदय मे परमात्मा का वास है. अस्पृश्यता, उंचनीच का भेद अमान्य है.एकात्मता तथा सामाजिक समरसता ही हिन्दू समाज का प्राण है. हिन्दू मात्र इस जीवनमंत्र को समर्पित हो ऐसी संत समाज अपेक्षा रखता है.

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