कर्तव्य के मार्ग पर कायम रहने की शिक्षा गीता देती है – डॉ. मोहन भागवत

भगवद्गीता कंठस्थ करने वाले 81 छात्रों को गीताव्रती की उपाधि देकर स्वर्ण पदक से सम्मानित किया

संगमनेर, पुणे (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भगवद्गीता एक अलौकिक ग्रंथ है. गीता के ज्ञान के आधार पर भारत को विश्वगुरू बनाना संभव है. हर एक को अपने कर्तव्य के मार्ग पर कायम रखने की शिक्षा गीता से मिलती है. मानवीय जीवन की समस्याओं से विचलित हुए बिना उनसे निश्चयपूर्वक सामना करने की सीख गीता देती है. गीता यानी वैश्विक कल्याण का शाश्वत चिंतन है. सरसंघचालक गीता परिवार द्वारा गीता जयंती और गीता परिवार के संस्थापक स्वामी गोविंददेव गिरीजी महाराज के 71वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित गीता महोत्सव में संबोधित कर रहे थे.कार्यक्रम में योग महर्षि स्वामी रामदेव जी, स्वामी गोविंददेव गिरीजी महाराज सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित रहे.

सरसंघचालक जी ने गीता परिवार द्वारा पिछले तीन दशकों के बाल संस्कार कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि गीता के उपदेश पर आचरण करना महत्त्वपूर्ण है. शरीर, मन, बुद्धि की एकरूपता लाने का कौशल गीता योग सिखाता है. मोह, आकर्षण, उपेक्षा और भय को कैसे मात दें और कर्तव्य पूरा करते हुए समाज के कल्याण में जीवन का सदुपयोग कैसे करना है, इसका मार्गदर्शन गीता से मिलता है.

योग गुरु बाबा रामदेव ने छात्रों को योगी बनने और राष्ट्र के लिए उपयोगी होने का मौलिक संदेश दिया. उन्होंने कहा कि संगमनेर में स्वामी गोविंददेव गिरीजी महाराज की प्रेरणा से 33 वर्ष पूर्व डॉ. संजय मालपाणी द्वारा शुरू किया गया बाल संस्कार कार्य, संस्कार रूपी पुरुषार्थ है. गीता में जीवन का अहसास, ज्ञान और विज्ञान का अनोखा मिलाप है. वास्तव में हम सब भारतीय देवताओं, वीरों और वीरांगनाओं के अंश हैं. आत्मग्लानि में न रहते हुए सबको योग साधना करते हुए अपनी आत्मशक्ति बढ़ाने की नितांत आवश्यकता  है. उन्होंने कहा, कि सुदृढ़ पीढ़ी राष्ट्र की रीढ़ है. इसलिए हर एक को स्वस्थ, प्रसन्न, कार्यक्षम और उत्साही रहने के लिए नियमित योगासन करने चाहिए तथा विभिन्न आसन एवं प्राणायाम के प्रात्यक्षिक भी करवाए.

स्वामी गोविंददेव गिरी जी महाराज ने प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था का समर्थन किया. अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था समाप्त करवाकर उनकी शिक्षा व्यवस्था थोपी और उसके दुष्परिणाम देश को भुगतने पड़ रहे हैं, इसके कई उदाहरण उन्होंने दिए.

उन्होंने कहा कि बालकों पर संस्कार करते हुए उनमें से विद्वान, विचारक और शूरवीर नरसिंह निर्माण करने के उद्देश्य से संगमनेर में गीता परिवार की स्थापना 33 वर्ष पूर्व हुई. स्वर्गीय ओंकारनाथ जी एवं ललिता देवी मालपाणी के सशक्त समर्थन से इस पौधे का 16 राज्यों में विस्तार हुआ है. गीता ग्रंथ जीवन शिक्षा देने वाला है. उन्होंने अपने भाषण में क्रांतिकारियों के कार्य का गौरवपूर्वक उल्लेख किया.

इस अवसर पर भगवद्गीता कंठस्थ करने वाले देश के 81 छात्रों को गीताव्रती की उपाधि देकर स्वर्ण पदक के सम्मानित किया गया. उपस्थित हजारों छात्रों ने एक ही समय में एक स्वर में सुवर्णा मालपाणी जी के साथ गीता के बारहवें एवं पंद्रहवें अध्याय का पाठ करते हुए जाणता राजा मैदान का परिसर गीतामय कर दिया. गीता जयंति के उपलक्ष्य में श्रीमद्भगवद्गीता का विधिवत् पूजन भी किया गया.

कार्यक्रम में ध्रुव ग्लोबल स्कूल के छात्रों ने नृत्यवंदना प्रस्तुत की. गीता परिवार की सोलापूर शाखा के छात्र-छात्राओं ने प्रभावी नियुद्ध का प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किया. कार्यक्रम की प्रस्तावना डॉ. संजय मालपाणी ने रखी. सूत्र संचालन अरुण गौड़ ने किया.

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