जम्मू-कश्मीर के महाराजा श्री हरी सिंह जयन्ती समारोह .

नई दिल्ली, जम्मू-कश्मीर पीपल्स फोरम द्वारा के तत्वाधान में जम्मू-कश्मीर के महाराजा श्री हरी सिंह जी का जयन्ती समारोह पंडित दीनदयाल शोध संस्थान, नई दिल्ली में दिनांक 23 सितम्बर को आयोजित किया गया। जिसकी अध्यक्षता श्री अजातशत्रु (एमएलसी, जम्मू-कश्मीर, पौत्र, महाराजा) द्वारा किया गया। जिसके मुख्य अतिथि डॉ. जीतेन्द्र सिंह (राज्यमंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारत सरकार) और विशिष्ट अतिथि महाश्य धर्मपाल जी (चेयरमैन, एमडीएच) एवं बतौर वक्ता वरिष्ट पत्रकार आशुतोष भट्टनागर थे। इस कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष डॉ. स्वदेश रत्न (अध्यक्ष, मीरपुर बलिदान भवन समिति) ने किया और विषय प्रस्तावना श्री महेंद्र मेहता (संयोजक : जम्मू-कश्मीर पीपल्स फोरम) द्वारा किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाराजा हरि सिंह के पौत्र व जम्मू कश्मीर के  एमएलसी अजातशत्रु ने कहा कि हरि सिंह का नाम राज्य के उन शासकों में आता है। जिन्होंने अपने प्रगतिशील दृष्टिकोण के कारण राज्य में अनेक सुधार किये। महाराजा हरि सिंह ने राज्य में दलित समाज के लिये मंदिरों के दरवाज़े उस समय खोल दिये थे, जब अन्य रियासतों में इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। साथ में, केंद्र और जम्मू-कश्मीर राज्य में मौजूद वर्तमान सरकारों से यह कहते हुए, उन्होंने जयन्ती समारोह कार्यक्रम के मंच से विनयपूर्वक अनुरोध के साथ कहा कि महाराजा श्री हरि सिंह जी के द्वारा देश और जम्मू-कश्मीर के लिए महाराजा ने  निस्वार्थ योगदाने दी हैं और जम्मू-कश्मीर एअरपोर्ट की पहली ईट भी उन्हीं के द्वारा रखी गई थी। जिसको देखते हुए उनके यादगार में मैं अजातशत्रु महाराजा श्री हरि सिंह जी का पौत्र मांग करता हूँ कि जम्मू-कश्मीर एअरपोर्ट का नाम बदल कर महाराजा जी के नाम पे रखा जाए और उन्हें भारत रत्न आवार्ड दि जाए और उन्हें वाकई में सही श्रधान्जली अर्पित करनी है तो उनके सोच और पथ पे चलें।

इसके बाद बतौर, वक्ता वरिष्ट पत्रकार एवं जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने कहा कि इतिहास ने जितना अन्याय जम्मू कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह के साथ किया। उतना शायद किसी अन्य के साथ न किया हो। इस विषय पर जितना लिखा गया, बोला गया है। शायद ही भारत की किसी भी रियासत को लेकर इतना हो हल्ला मचा हो। आगे बोलते हुए कहा – जब किसी विषय पर जरुरत से ज्यादा लिखा, बोला या कहा जाये, स्वभाविक ही संदेह होता है। या तो सच्चाई छिपाने का प्रयास किया जा रहा है, या विषय को उलझाने की जुगत की जा रही है। जिससे सत्य तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही कुछ महाराजा हरि सिंह और जम्मू-कश्मीर को लेकर हुआ है। ‘जम्मू कश्मीर में जो कुछ हो रहा था। उसके लिये किसी न किसी को अपराधी ठहराना जरुरी था। ताकि, जनता को गुमराह कर इतिहास का पेट भरा जा सके। इसके लिए आखिर, महाराजा हरि सिंह से आसान शिकार और कौन हो सकता था? खासकर, उस समय में जब उनके अपने भी उनका साथ छोड़ कर सत्ता के साथ मिल गये हो।’

जयन्ती समारोह कार्यक्रम के अंत में दीन दयाल शोध संस्थान में बतौर मुख्य अतिथि डॉ. जितेन्द्र ने कहा – ‘हरि सिंह का नाम इसलिए इतिहास में नहीं आया क्योंकि आजादी के बाद भारत के इतिहास लेखन का काम एक खास परिवार के इशारों पर चल रहा था। आगे बोलते हुए कहा कि महाराजा हरि सिंह एक दूरदर्शी सोच के व्यक्तित्व थे। उन्होंने अपने शासन काल में राष्ट्र और समाज के हित में कई ऐतिहासिक फैसले लिए। स्वास्थ्य का क्षेत्र हो या शिक्षा का क्षेत्र, महाराजा द्वारा किये गये कार्य आज भी उनकी जनता के प्रति उनकी न्यायप्रियता को दर्शाता है।

जम्मू कश्मीर के शरहदों से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। महाराजा  हरि सिंह को यदि सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करनी है तो जम्मू-कश्मीर को उसी रूप में स्थापित किया जाये, जिस रूप में महाराजा छोड़ गये थे।  वरना हमसब वाकई में प्राश्चित से कभी-भी मुक्त नहीं हो सकते हैं! एक गीत की लाइन के साथ उधाहरण दिया। जो इस प्रकार है  – “ खुशी के साथ कुछ गम भी शामिल होता जाता है।

 

अंत में उन्होंने ज्ञापन देते हुए जम्मू-कश्मीर पीपल्स फोरम को सुझाव भी दिया कि जम्मू-कश्मीर को पुनः स्थापित करे, जिस रूप में महाराजा उसे छोड़ के गए थे और उसकी कैसी योजना बनाई जाएं? यह सुनियोजित करें कि मूल जम्मू-कश्मीर को वापस एक साथ मिला कर पूर्ण किया जाए। हम अपनी सरहदों से कभी समझौता नहीं कर सकते। चाहें, उसके लिए हमें कितना भी अपना खून-पसीने क्यूँ ना बहाना पड़ जाए। तभी महाराजा के सपने साकार हो पाएंगे।

 

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