कभी हुआ करता था कि मजदूर संगठन की बात घोर पूंजीपति विरोध से ही प्रारंभ हुआ करती थी। रोजगार देने वाले व रोजगार प्राप्त करने वाले मे सौहाद्र, समन्वय व संतोष की न तो कामना की जाये और न ही आशा की जाये, यही कार्ल मार्क्स के मजदूरों को दिये गए संदेश का अर्थ था। कम्युनिस्टों के नारे थे ‘‘चाहे जो मजबूरी हो, माँग हमारी पूरी हो; दुनिया के मजदूरो एक हो; कमाने वाला खायेगा’’। यहीं से पश्चिमी दृष्टि के मजदूर संगठनों व भारतीय दृष्टि के मजदूर संगठनों मे विभेद की लाइन प्रारंभ होती है। मालिक, मजदूर व राष्ट्र, तीनों दृष्टि की कृतित्व शैली यदि किसी मजदूर नेता मे दिखी तो वे दत्तोपंत जी ठेंगड़ी थे। ठेंगड़ी जी के आंदोलन ने नारा दिया – ‘‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम; मजदूरो दुनिया को एक करो; कमाने वाला खिलायेगा’’। 2002 में राजग शासन द्वारा दिये जा रहे ‘पद्मभूषण’ अलंकरण को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि जब तक संघ के संस्थापक पूज्य डा. हेडगेवार और श्री गुरुजी को ‘भारत रत्न’ नहीं मिलता, तब तक वे कोई अलंकरण स्वीकार नहीं करेंगे। कार्ल मार्क्स व दत्तोपंत जी मे यही मूल अंतर था। मार्क्स की मजदूर नीति शासकीय व आर्थिक स्वीकार्यता की धूरी पर घूमती थी जबकि ठेंगड़ी जी की नीति नैतिक व सामाजिक स्वीकार्यता के आधार पर कार्यरत रहती थी। कार्ल मार्क्स पर उन्ही के देश जर्मनी के ब्यौर्न और सीमोन अक्स्तीनात बंधुओं ने एक पुस्तक अभी अभी प्रकाशित की है। इस पुस्तक का नाम है, “मार्क्स और एंगेल्स अंतरंग” (मार्क्स उन्ट एंजेल्स इन्टीम)। सीमोन अक्स्तिनास्त को एक दिन अचानक मार्क्स के कुछ तथ्य व उद्धरण मिले जो सामाजिक आधार पर अत्यंत ही निकृष्ट थे। इसके बाद अक्स्तिनास्त बंधु कार्ल मार्क्स पर शोध करने लगे। उन्होने मार्क्स के कई सारे कार्यों, संदर्भों, उद्धरणों व भाषणों को इस पुस्तक मे प्रकाशित किया है जिनसे इस कम्युनिस्ट नेता की छवि ही बदल जाती है व यह धारणा सुदृढ़ होती है कि कम्युनिस्टों की कार्यशैली सदा ही बाहर कुछ और व भीतर कुछ और रहती है। “दास केपिटल” की डेढ़ सौवें वर्ष पर इस पुस्तक का प्रकाशन व इसे हाथों हाथ लिया जाना मार्क्स के वैचारिक ह्रास का बड़ा परिचायक है। मार्क्स व एंजिल्स के वैचारिक ढलोसले को उघाड़ती यह पुस्तक सम्पूर्ण मार्क्सवादी विचार पर एक बड़ा प्रश्न उठाती है। मार्क्स के सौ वर्ष बाद जन्मे दत्तोपंत जी ठेंगड़ी अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से सम्पूर्ण मार्क्सवाद को खारिज करते हैं यह कोई कथित रूप से कथित ठेंगड़ीवाद का परिणाम नहीं अपितु भारतीय दर्शन व विचार का परिणाम है। यही मूल अंतर है मार्क्सवाद मे व ठेंगड़ी जी के भारतवाद मे। यही कारण है कि भारत वर्ष में ही नहीं बल्कि विश्व भर के मजदूर-किसान और श्रमिक वर्ग में दत्तोपंत जी ठेंगड़ी जी का नाम अत्यंत आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जब हमारा देश अपनें पैरों पर खड़ा होनें और आर्थिक आत्म निर्भरता के लिए ओद्योगीकरण की राह पर चलनें को उद्दृत हुआ तब पचास व साठ के दशक में स्वतंत्र भारत में मजदूर संगठन और मजदूर राजनीति नाम के नयें ध्रुवों का उदय हुआ था. मजदूर संगठन और मजदूर राजनीति के बारीक किन्तु बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील भेद भारतीय शैली से पहलेपहल दत्तोपंत जी ठेंगडी ने ही समझा और आत्मसात किया था. मजदूरों से बात करते-उनकी समस्याओं को सुनते और संगठन गढ़ते-करते समय जैसे वे आत्म विभोर ही नहीं होतें थे वरन सामनें वाले व्यक्ति या समूह की आत्मा में बस जाते थे और उसके मुख से वही निकलवा लेते थे जो वे चाहते थे और जिस रूप में वे चाहते थे। मात्र 15 वर्ष की किशोरावस्था में ही वे आर्वी नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष निर्वाचित हो गए थे, तब अपनी संवेदन शीलता का परिचय देते हुए इन्होनें निर्धन विद्यार्थियों के लिए स्कालरशिप की योजना बनाई थी।
दत्तोपंत जी कानून की शिक्षा प्राप्त कर वकील बनें किन्तु वकालत उन्हें रास न आई और वे आरएसएस के प्रचारक रूप में कार्य करने लगे।प्रचारक के तपस्वी कार्य पर निकलनें की प्रेरणा के मूल में श्री गोलवलकरजी का सान्निध्य और उनकें साथ किये प्रवास ही रहे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूल विचारों से सदा प्रेरित और उद्वेलित दत्तोपंत जी सन 1942 से सन 1945 तक केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक के दायित्व को निर्वहन कर 1945 से सन 1948 तक बंगाल में प्रांत प्रचारक के दायित्व को संभालें रहे और तब 1949 में गुरूजी ने ठेंगड़ीजी को मजदूर क्षेत्र का संगठन और नेतृत्व करने का आदेश दिया। इसके बाद तो जैसे दत्तोपंत जी का जीवन किसान व मजदूर क्षेत्र की ही पूंजी बन गया। अक्तूबर 1950 में दत्तोपंत जी को इंटक का राष्ट्रीय परिषद सदस्य बनाया गया और फिर इन्हें मध्यभारत के इंटक के संगठन मंत्री का दायित्व सौंपा गया। इसके बाद 1952 से 1955 के मध्य कम्युनिस्ट प्रभावित आल इंडिया बैंक एम्प्लाईज एसो. के प्रांतीय संगठन मंत्री रहे और पोस्टल, जीवन-बीमा, रेल्वे, कपडा
ठेंगड़ी जी संघ के विराट संसार में जैसे एक घुमते-विचरते धूमकेतु थे, संघ के अनेक आनुषांगिक संगठनों को उनका स्पर्श और स्नेह मिला। हिंदुस्तान समाचार के आप संगठन मंत्री रहे और 1955 से 1959 तक मध्यप्रदेश तथा दक्षिण में भारतीय जनसंघ की स्थापना और जगह-जगह पर जनसंघ के विस्तार का कार्य भी किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य रहे और भारतीय बौद्ध महासभा, मध्य प्रदेश शेडयूल कास्ट फेडरेशन के कार्यों में सतत निर्णायक दृष्टि रखते रहे। ठेंगड़ी जी ने ही 1955 मे पर्यावरण मंच व सर्व धर्म समादर मंच की स्थापना की। इन सभी कार्यों को करते हुए दत्तोपंत जी ने 23 जुलाई 1955 को भारतीय मजदूर संघ का स्थापना यज्ञ पूर्ण किया। आज भारतीय मजदूर संघ एक करोड़ सदस्यों तक पहुंचता हुआ एक विराट संगठन है। 1967 में उन्होने भारतीय श्रम अन्वेषण केन्द्र की स्थापना कराई और 1990 में स्वदेशी जागरण मंच स्थापित किया। भारतीय संसद में 12 वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य रहते हुए भारतीय मजदूर संघ का ध्वज उठाये दत्तोपंत जी ने अनेकों देशों की यात्राएं की थी। पुरे विश्व में मजदूर संगठनों के कार्यक्रमों में इन्हें बुलाया जाता रहा। विश्व के सभी छोटे बड़े देशों सहित चीन और अमेरिका के मजदूर संगठनों के कार्यों और पद्धतियों में ठेंगड़ी जी ने अपनी छाप छोड़ी थी। चीन प्रवास मे ठेंगड़ी जी के मजदूरों को दिये गए उद्बोधन का चीनी रेडियो से प्रसारण चीन जैसे बंद खिड़की वाले देश मे होना कौतूहल व आश्चर्य का विषय बना था।
- Praaveen Gugnani, guni.pra@gmail.com 9425002270