देश के हिन्दुओं को राम मंदिर के लिए लड़ना नहीं अड़ना है – डॉ. मोहन भागवत जी

नागपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि पाठशालाओं में “justice delayed is justice denied” ऐसा वाक्य पढ़ाया जाता है. जिसका अर्थ होता है कि, “न्याय में विलंब अन्याय है”. लेकिन राम मंदिर के बारे में सर्वोच्च न्यायालय कि भूमिका को देखते हुए ऐसा लगता है कि इस वाक्य को पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए. सरसंघचालक जी राम मंदिर निर्माण के लिए नागपुर में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित हुंकार सभा में संबोधित कर रहे थे.

राम मंदिर निर्माण के लिए सदन में कानून पारित करवाने हेतू सरकार पर दबाब बनाने के लिए ईश्वरराव देशमुख महाविद्यालय में हुंकार सभा का आयोजन किया गया था. जिसमें ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, साध्वी ऋतंभरा, देवनाथ पीठाधीश्वर जितेंद्रनाथ महाराज और विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष अलोक कुमार प्रमुख रूप से उपस्थित थे.

मोहन भागवत जी ने कहा कि राम मंदिर से जुड़े पहले आंदोलन में उन्होंने 1987 में हिस्सा लिया था. इस घटना को पूरे 30 वर्ष बीत चुके हैं. इसके बाद भी मंदिर नहीं बना और इस प्रकार से हुंकार सभा आयोजित करनी पड़ रही है. यह देश और समाज के सामने सबसे बड़ी विडंबना है. देश जब गुलाम था तो भारतीय लोक अपने मन से कोई फैसला नहीं कर पाते थे. लेकिन आजादी के बाद सरदार वल्लभबाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मंदिर का निर्माण हुआ. राम मंदिर का मसला भी ठीक उसी तरह का है. बाबर एक आक्रांता था. उसका देश के मुस्लिम समुदाय से कोई संबंध नहीं था. इस बाबर के सेनापती ने तलवार के दम पर राम मंदिर को ध्वस्त कर वहां ढाचा खड़ा करने का प्रयास किया था. इसलिए बाबर और बाबरी का देश के मुसलमानों से संबंध जोड़ना अनुचित है.

उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि पर पुरातत्त्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं. जिसे कानूनी तौर पर पुख्ता सबूत माना जाता है. समाज केवल कानून के अक्षरों से नहीं चलता, जनता और न्याय व्यवस्था को एक-दूसरे को समझने की आवश्यकता है. देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ कर दिया है कि यह मामला उनकी वरियता का नहीं है. इस निर्णय को बार-बार टाला जा रहा है. इस मामले में रोड़ा अटकाने वालों के पास कोई तथ्य नहीं है. इसलिए वह इसे लंबा खींचना चाहते हैं. लेकिन अब देश के हिन्दुओं को राम मंदिर के लिए लड़ना नहीं अड़ना है. अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए 1980 से जो प्रयासरत हैं, उन्हीं के हाथों मंदिर खड़ा करवाना है.

अयोध्या में मंदिर निर्माण हेतु सरसंघचालक ने धैर्य, दृष्टी, दक्षता और मती के अनुसार आचरण चार बते बताईं. जिस प्रकार हनुमान ने धैर्य, दृष्टी, दक्षता और बुद्धियुक्त व्यवहार से समुद्र पर राज करने वाली सिंहीका राक्षसी को समाप्त किया था. हनुमान के उन्हीं गुणों को आचरण में उतारते हुए हमें पूरे देश में जनजागरण करना होगा, जिससे जनता जागृत हो और सरकार पर दबाव बनाए कि वह जल्द से जल्द राम मंदिर निर्माण का मार्ग बनाए.

मैं ये धैर्य रखने के लिए नहीं कह रहा हूं कि आप निर्णय की प्रतीक्षा करो. एक साल पहले मैंने ही कहा था धैर्य रखो. अब मैं कहता हूं कि अब धैर्य का काम नहीं, अब तो हमको जनजागरण करना पड़ेगा. अब तो हमको कानून की मांग करनी है. हां, ये नारा अच्छा है, लेकिन जहां देना वहीं देना, ये धैर्य रखना है. अपनी उत्कटता को व्यक्त कैसे करना उसके लिये धैर्यपूर्वक सतत् प्रयास करते हुए, मेरे मन की इच्छा है, समस्त साक्षात्कारी संतों की इच्छा है, सामान्यजनों की इच्छा है, और इसके पहले जिनकी नहीं थी उऩकी भी इच्छा है कि अब जल्दी-जल्दी भव्य राम मंदिर बने. अब ये इस आंदोलन का हमारा निर्णायक चरण हो और ऐसा जोर हम लगाएं कि भव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद ही जागरण का काम रुके. उसके बाद कारसेवकों को वहां जाना पड़ेगा, इतना आह्वान में करता हूं.

मोदी जी, भागवत जी की इच्छा को आज्ञा मानें – साध्वी ऋतंभरा दीदी

साध्वी ऋतंभरा जी ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बने यह पूरे देश की इच्छा है. यदि न्यायालय द्वारा इसमें विलंब हो रहा है तो संसद में कानून बनाना चाहिए. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने यही इच्छा व्यक्त की है. भारतीय सभ्यता में बड़ों की इच्छा को आज्ञा माना जाता है. इसलिए मोदी जी सरसंघचालक की इच्छा को आज्ञा समझ के संसद में राम मंदिर के लिए कानून बनाएं. रैली में उपस्थित 60 हजार रामभक्तों को संबोधित करते हुए ऋतंभरा दीदी ने कहा कि, देश में अब करोड़ों हिन्दुओं की आस्था से अधिक समलिंगी लोगों के मुद्दे अधिक प्रभावशाली हो गए हैं. इसलिए समलिंगियों के मामले में फैसला आ जाता है, लेकिन राममंदिर का मामला वहीं उलझा रहता है. देश में कुछ लोगों को लगता है कि वह नित नए हथकंडों से राम जन्मभूमि के मामले को उलझा देंगे. लेकिन वह ध्यान रखें कि यदि उनके पास हथकंडे हैं तो संतो के पास आस्था, त्याग और बलिदानों के डंडे हैं. हमारी सभ्यता प्राचीन काल से शक, हुण, मुगल सभी को स्वीकारते आई है. इतना ही नहीं हमने धर्म के आधार पर हुए देश के दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन को भी स्वीकार किया है. अब बड़ा दिल करने की बारी दूसरे पक्ष की है. यदि प्रधानमंत्री इस मामले में संसद में कानून बनाते हैं तो वह कालजयी हो जाएंगे. कई बार ऐसा होता है कि बच्चा जब तक रोता नहीं मां उसे दूध नहीं पिलाती. शायद सरकार भी इसी इंतजार में बैठी हो. इसलिए देश के सभी हिन्दुओं को आपसी भेदभाव को भुला कर सरकार पर दबाव बनाना चाहिए. राम मंदिर का मुस्लिमों से ज्यादा हिन्दू विरोध करते हैं. अब समय आ गया है कि हम संयुक्त रूप से अपनी मांग सरकार के सामने रखें. न्यायालय ने तो भूमिका साफ कर दी है. इसलिए संसद में कानून बनाने के लिए हमें सरकार पर दबाव बनाना होगा.

ऋतंभरा दीदी ने कांग्रेस नेता सीपी जोशी की आलोचना की. उन्होंने कहा कि अपने बयान से हिन्दुओं को जाति, पंथ, संप्रदायों में विभाजित करने वाले सी.पी. जोशी कैंची की तरह हैं, जो केवल काटना जानती है. दूसरी ओर संत समाज सुई-धागा है जो सिलाई से पूरे हिन्दू समाज को जोड़े रखता है.

सरकार फायदे में रहेगी – शंकराचार्य

ज्योतिषपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने कहा कि अयोध्या में मंदिर के प्रमाण मिलने के बाद भी सर्वोच्च न्यायालय ने टायटल सूट को पार्टीशन सूट में तब्दील कर दिया है. यह देश के हिन्दुओं की जनभावना का अनादर है. इस मामले में जल्द फैसला होना चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता तो सरकार का यह कर्तव्य है कि वह संसद में कानून बनाए. इसी में सरकार का हित होगा. राज्य सभा में बहुमत की मुश्किल पेश आ रही हो तो प्रधानमंत्री संसद का संयुक्त अधिवेशन बुला कर कानून पारित करें. यदि उसके बाद भी कोई रोड़ा अटकाता है तो वह बेनकाब हो जाएगा. ऐसा हुआ तो उसका फायदा भी सरकार को मिलेगा और सरकार फिर से सत्ता में आएगी. इस अवसर पर शंकराचार्य ने इलाहबाद और फैजाबाद के नामांतरण की प्रशंसा करते हुए दिल्ली का नाम बदल कर इंद्रप्रस्थ रखने की मांग की

संसद में अध्यादेश लाना संभव – आलोक कुमार

विहिप के कार्याध्यक्ष अलोक कुमार जी ने कहा कि अयोध्या मामले में किसी भी प्रकार की कोई कानूनी जटिलता नहीं है. इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज हो चुकी है. लेकिन राम जन्मभूमि का तीन हिस्सों में विभाजन किया गया है. जमीन के विभाजन का यह मसला सर्वोच्च न्यायालय के सामने विचाराधीन है. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में जल्दी फैसला नहीं करना चाहता. इसलिए सरकार कानून से इस मामले का निपटारा कर सकती है. इससे पहले भी, एससी -एसटी एक्ट, शहाबानो जैसे मामले सरकार ने कानून से निपटाए हैं. इसलिए राम जन्मभूमि मामले में भी सरकार अध्यादेश पारित कर जनभावना का आदर करे.

कड़ा संघर्ष होगा – जितेंद्रनाथ महाराज

देवनाथ पीठाधीश्वर जितेंद्रनाथ महाराज ने कहा कि एक ओर सर्वोच्च न्यायालय समलैंगिकता, महिलाओं के विवाहबाह्य संबंध, पटाखे और शबरीमला जैसे कई गैर जरूरी मामलों का निपटारा करते आया है. वहीं करोड़ों हिन्दुओं की आस्था से जुड़े राम मंदिर के विषय को बार बार टाला जा रहा है. इसलिए अब याचना नहीं रण होगा, संघर्ष बड़ा कड़ा होगा. उन्होंने हिन्दू समाज को सरकार पर कानून बनाने के लिए दबाव डालने का आवाहन किया.

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