नि: स्वार्थ सेवा.

मेजर के. दिवान (सेवा निवृत) ई-मेल द्वारा आउटलुक पत्रिका के संपादक के नाम पत्र  का हिंदी भाषांतर.

(Letter’s to The Editor in OUTLOOK, June 08, 2015 Issue.)

में स्वयं को पहले भारतीय मानता हूँ, उसके बाद हिन्दू तथा रा.स्व.संघ और बीजेपी की विचारधारा के साथ सहमत नहीं हूँ. लेकिन प्रचार माध्यमो और अन्य संगठनो द्वारा संघ पर जो प्रहार किये जाते है वह सत्य है या झूठ मुझे मालूम नहीं है. परन्तु यह सब देखते हुए मुझे संघ के विषय जो वास्तविक और प्रत्यक्ष अनुभव हुआ है उसका वर्णन किये बिना नहीं रह सकता. संघ का वास्तविक स्वरुप मे आँखों देखा अहेवाल प्रस्तुत करने की इच्छा होती है.

देश के विभाजन के समय में जालंधर मे था, जहाँ मेरे पिताजी की नियुक्ति हुई थी. मेरी उम्र 7 वर्ष थी. उस समय हमारे घर के सामने एक हिन्दू फेरीवाले की हत्या हुई थी और शहर के हमारे इस क्षेत्र मे दंगा भड़क उठा. शहर भर मे दावानल जैसी स्थिती उत्पन्न हो गई थी. मेरे पिता और बड़े भाई हाथ मे बंदूक लिए छत पर हमारे रक्षक के रूप मे खड़े थे. क्योकि वहां हमारे रक्षण के लिए पुलिस आने के कोई चिन्ह नहीं दिखते थे.

तभी अचानक कही से खाखी चड्डी और सफ़ेद शर्ट पहने हाथ मे दंड लिए युवा आते दिखने लगे. रा.स्व.संघ के इन स्वयंसेवको ने हमारे क्षेत्र की रक्षा की साथ ही साथ वहां पर जो मुस्लिमो के शव पड़े थे उनकी देखभाल करते हुए उन्हें सम्मानपूर्वक दफ़न भी किया. इन युवको ने बिना किसी राजकीय स्वार्थ के यह सामाजिक सेवा की जो मैंने प्रत्यक्ष अनुभव की है. मै सोचता हूँ कि हमारी युवा पीढ़ी को भी ऐसी घटनाए उनको बारीकी से समझने के लिए पढ़ने को मिलनी चाहिए |

– मेजर के. दिवान (सेवा निवृत) ई-मेल द्वारा

MAJ K. DEWAN (RETD), ON E-MAIL

RSS is doing social service without trying to derive political mileage: ‘Letter to the Editor’ in OUTLOOK

Letter’s to The Editor in OUTLOOK, June 08, 2015 Issue.

I consider myself an Indian first, then a Hindu and don’t subscribe to the ideology of the RSS or BJP. Yet, the amount of stick the Sangh parivar takes from the media and other parties—right or wrong—compels me to narrate a real-life experience. During Partition, I was in Jalandhar, where my father was posted. I was about seven; the riots in our part of town started when one Hindu hawker was killed in front of my house. Trouble broke out like wildfire. Firearms in hand, my father and elder brother would stand guard on the roof. There was no sign of the police. Then, I saw people in khaki shorts and white shirts, sticks in hand, appear from nowhere. The RSS vol­unteers guarded our locality, saw to it there was no further trouble, took care of Muslim bodies and buried them with res­pect. They were doing social service without trying to derive political mileage. I think the youn­ger generation should also have access to stories such as this, for a nuanced perspective.

MAJ K. DEWAN (RETD), ON E-MAIL

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