मेजर रामास्वामी परमेश्वरन भारत और श्रीलंका के बीच हुए अनुबंध के तहत भारतीय शांति सेना में 30 जुलाई 1987 को श्रीलंका पहुचे. इस अभियान को “ऑपरेशन पवन” नाम दिया गया. वहां पहुचते ही उन्हें कई मोर्चो पर तमिल टाइगर्स का सामना करना पड़ा.
24 नवम्बर 1987 उनकी बटालियन को सुचना मिली कि एक गाँव मे गोला बारूद किसी घर में उतरा गया है. मेजर रामास्वामी ने अपने दल के साथ उस घर की पहचान कर उसे चारो तरफ से घेर लिया. 25 नवम्बर की सुबह घर की तलाशी ली गई लेकिन कुछ नहीं मिला. आखिर वे लोग वापस चल पड़े. तभी पास के एक मंदिर के बगीचे से गोलीबारी शुरू हो गई. दुश्मन की गोलीबारी में दल का एक जवान शहीद हो गया. मेजर रामास्वामी रणनीति के तहत गोलीबारी करते हुए मंदिर के सामने जा पहुंचे. जहाँ उनका सामना तमिल टाइगर्स से हो गया और स्थिती आमने सामने मुठभेड़ की बन गई.
तभी एक उग्रवादी की गोली सीधे मेजर रामास्वामी की छाती मे लगी. यह एक प्राणघाती हमला था लेकिन मेजर ने इसकी परवाह न करते हुए झपट कर उस उग्रवादी की रायफल छीन उस दुश्मन का काम तमाम कर दिया. छाती में गोली लगने से मेजर रामास्वामी निढाल हो गए तब भी वो साहसपूर्ण नेतृत्व क्षमता दिखाते हुए अपने दल को निर्देश देते रहे उनके दल ने फुर्ती से दुश्मन को घेर लिया. उग्रवादी जंगल की ओर भागने लगे मेजर के दल ने पीछा कर 6 उग्रवादियो को मर गिराया और उनसे बड़ी मात्रा में गोला बारूद बरामद किया. इस तरह मेजर रामास्वामी परमेश्वरन श्रीलंका में ऑपरेशन पवन में शहीद हो गए.
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन को उनकी वीरता एवं नेतृत्व क्षमता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
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