जोधपुर ८ अगस्त २०१५। १५ अगस्त को विभाजन के प्रति वेदना मन में है। राष्ट्र स्वाधीन हुआ किन्तु दुर्भाग्यवश विभाजन भी हुआ , विभाजन मजहब आधारित हुआ जो षड्यंत्र का परिणाम था। मुस्लिम मूलतः राष्ट्रवादी थे मजहब के नाम पर षड्यंत्र पूर्वक अलगाव पैदा कर अलगाववादी बनाया गया। क्या 1857 का वृह्द भारत या कहे अखंड भारत का परिदृश्य पुनः है ? संभव है सम्भावना है। उक्त विचारो को प्रकट करते हुए प्रोफेसर सदानंद सप्रे ने कहा कि परिस्थिति निर्माण से विचार व् भाव पैदा कर अखंड भारत का परिदृश्य संभव हैं।
इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स के सभागार में मरू विचार मंच द्वारा आयोजित “अखंड भारत : संकल्पना एवं चिंतन” विषयक संगोष्ठी एवं व्याख्यान में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विश्व विभाग के सह संयोजक प्रोफेसर सदानंद सप्रे ने कहा कि १८५७ के परिदृश्य के समक्ष आज का मानचित्र रखेंगे तो पता चलेगा कि केवल एक भाग ही स्वाधीन हुआ है।
1857 के स्वाधीनता संग्राम का दृश्य व् इतिहास उकेरते हुए प्रो. सप्रे ने अंग्रेजों की मानसिकता व भारतीय समाज के आंदोलन का विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि 1857 का संग्राम कुचलने के बाद ऐसा लगता था की अब स्वाधीन नहीं होंगे लेकिन 90 वर्षों में यह हो गया। यहूदियों को विपरीत परिस्तिथियों में रहते हुए भी 1700 -1800 वर्षो के संघर्ष व् संकल्पशक्ति से पुनः राष्ट्र प्राप्ति व् स्वाधीनता मिली, यह असम्भव से सम्भव का बहुत बड़ा उदाहरण व मिसाल है.
राष्ट्र के जीवन में 100 -200 या 400 -500 अथवा 1700 -1800 वर्ष कोई मायने नहीं रखते , भाव व विचार तथा संकल्प मौजूद व् जीवित रहना चाहिए। भारत व् नेपाल राष्ट्र पृथक है राजनैतिक दृष्टि से किन्तु आम भारतीय व नेपाली इसे अलग नहीं मानता, अपनत्व भाव है। क्या पाकिस्तान पृथक राजनीतिक राष्ट्र रहते हुए नेपाल जैसे भाव वाला नहीं हो सकता क्या ?
प्रो. सप्रे ने राष्ट्र की स्वाधीनता का इतिहास व् विचार समाज के समक्ष सही तरीके से रखने व् पुनः विचार करने पर बल दिया। 1857 का संग्राम , 1905 का बंग -भंग आंदोलन व 1937 में हुए चुनाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने मुस्लिम समाज की राष्ट्रीय मानसिकता का दृश्य रखा और स्पष्ट किया कि मुस्लिम पूर्व में कभी भी मज़हब आधार पर अलग महसुस नहीं करता न ही उनके मन , मस्तिष्क में मज़हब आधारित अलग राष्ट्र का विचार था। 1857 व् 1905 के आंदोलन में सभी मुस्लिम साथ थे। यही नहीं 1937 में अंग्रेजों पहली बार समुदाय की सीटे आरक्षित कर अलगाववाद पैदा करने की नाकाम कोशिश की। उस वक्त भी मुस्लिम लीग को आरक्षित सीटों पर 20 % वोट मिले थे, क्योंकि भारतीय समाज मज़हब आधारित था ही नहीं, वो संस्कृति आधारित था.
मोहम्मद करीम छागला जी की आत्मकथा को उद्धत करते हुए कहा कि मुस्लिम सोच वैसी थी जिसमे उन्होंने कहा था कि “Ï am muslim by religion but hindu by race” हिन्दू एक संस्कृति है मज़हब नहीं। हिन्दू को धर्म के नाम पर तथाकथित साम्प्रदायिक मानसिकता वाले, बौद्धिक आतंक फ़ैलाने वालो की साजिश बताया।
प्रो. सप्रे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि क्या इतने बड़े राष्ट्र में मज़हब विभाजन सम्भव है क्या ? यह नेतृत्व के कमजोरी थी कि उस वक्त राष्ट्रवादी मुस्लिमो की भावनाओं व् विचारों का सरंक्षण नहीं किया व् अंग्रेजो की चाल का शिकार हुए। यह आज भी संभव नहीं है।
हिन्दू संस्कृति है, जीवन पद्धति है जो हज़ारों वर्षों से पल्लवित होती आ रही है जिसका ऐतिहासिक प्रमाण है।
क्या हम अलगाववाद के विचारों के साथ जीते हुए मज़हब के आधार पर पूर्ण पृथक राज्य की कल्पना अब भी साकार होने की सोच सकते है क्या ? सम्भवतः नहीं।
प्रो. सप्रे ने अपने उध्बोधन में आगे कहा कि पाकिस्तान के निर्माण की पृष्टभूमि को ध्यान से देखना होगा। जिस मुस्लिम लीग को 1937 में आरक्षित सीटों पर जो मुस्लिम समुदाय के लिए ही थी पर केवल 20 % सफलता ही मिली थी ,उसी मुस्लिम लीग को 9 वर्ष बाद 1946 में 90% वोट के साथ 40% सीटों पर सफलता मिलि. २० फ़रवरी १९४७ को अंग्रेजों ने घोषणा की थी कि जून १९४८ तक स्वतन्त्र कर देंगे लेकिन फिर ३ जून १९४७ को कहा कि १५ अगस्त १९४७ को ही स्वतंत्र कर देंगे यह परिवर्तन कबीले गौर है इस पर शोधार्थियों को चिंतन कर सही तस्वीर समाज राष्ट्र के समक्ष रखनी चाहिए। यह आश्चर्यजनक परिवर्तन षड्यंत्र कारक थे।
भारत-पाक के रिश्ते ठीक वैसे हो जैसे भारत-नेपाल यही अखण्ड भारत के संकल्पना है। यह संभव है परिस्थिति निर्माण से। हमें सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय को अलगाववादी नहीं मानना चाहिये न ही पुरे समुदाय को राष्ट्रविरोधी कहना चाहिए। राष्ट्रवादी मुस्लिम भाईयो को सरंक्षण व् प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है वो ही परिस्तिथि निर्माण करेंगे। पूर्व में भी राष्ट्रवादी मुस्लिम के प्रति समाज व् नेतृत्व उदासीन रहा जिसका परिणाम पाकिस्तान है। यह त्रुटि हमें दोहराना नहीं चाहिए। १९३७ तक बहुत कम मुस्लिम अलगाववादी थे।
अलगाववादी मुस्लिमो को आज भी राष्ट्र में शक्ति प्राप्त नहीं होती उनका शक्ति स्त्रोत -धन आज भी बाहरी है। हमें उस स्त्रोत को कमजोर करने का भी चिंतन करना चाहिए। परिस्तिथि निर्माण से परिवर्तन सम्भव केवल कुछ प्रतिशत परिवर्तन से ही समाज का परिदृश्य तुरंत बदलता है।
अपने उध्बोधन को विराम देते हुए प्रो सप्रे ने समाज से सकारात्मक चिंतन व् समग्र दृष्टि से विचार करते हुए अखण्ड भारत की संकल्पना को साकार करने का आव्हान किया।
अध्यक्षता इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स जोधपुर के अध्यक्ष श्री आर के विश्नोई ने की एवं धन्यवाद ज्ञापन महानगर संयोजक डॉ. जी. एन. पुरोहित ने किया।