By Daya Sagar a Sr. journalist and a social activist 09419796096 dayasagr45@yahoo.com
पिछले कई दशकों में किस प्रकार से केन्द्र सरकारें जम्मू कश्मीर से सम्बन्ध रखने बाले मसलों को संभालते रही हैं इस पर कई प्रकार के प्रश्न इन कुछ दिनों में भारत के पूर्व रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के प्रमुख ए.अस. दुलत के वक्ताब्यों ने लगा दिए हैं. जम्मू कश्मीर की समस्याओं को जाति तोर पर हैंडल किया जाता रहा है न कि रियासत के हित में. इस लिए अगर जम्मू कश्मीर के हालात को मोदी सरकार सुधारना चाहती है तो इस सरकार को हर स्तर पर अपने विचारकों और सलाहकारों को फिर से परखना होगा. कम से कम अब तो केन्द्र और राज्य सरकार को राजनीतिक स्वार्थ और भाई भतीजाबाद से ऊपर उठना होगा और इस राज्य की स्थिति को निष्कपट डंग से लेना होगा.
ऐसे ही मुफ़्ती मोहमद सईद ने मुख्यमंत्री का कार्यभार हाथ में लेते ही बड़े साफ़ शब्दों में पहले ही दिन कह दिया था कि पीडीपी और बीजेपी २ ऐसे दल हैं जेसे कि एक नार्थ पोल हो और दूसरा साउथ पोल. आम आदमी की समाज से अगर इस का अर्थ निकालें तो दोनों दल साथ साथ चलते हुए भी एक दूसरे के साथ नहीं हो सकते. पर एक आशाबादी के शब्दों में अगर कोई यह सन्देश लेना चाहे कि चुम्बक की तरह दोनों एक दूसरे की और आकर्षित हुए है और एक तरह से इन्हों ने एक दूसरे के गले लगने का प्रयास किया है तो यह एक सुखद विचार होगा और इसी प्रकार का विश्लेषण बीजेपी के कुछ शीर्ष नेताओं ने भी गठबंधन के बारे में व्यक्त किया है, हाँ राजनितिक हित तो मिलते दिख रहे हैं पर दिल मिल रहे हैं लगता है ऐसा लोगों को नहीं लग रहा है.
विपरीत विचारधारा के बाबजूद भी अगर दो लोग साथ चलते हैं तो यह सराहने की बात है. पर जन हित और राष्ट्रहित के लिए यह भी देखने की अवश्यकता है कि विचारधारा में अंतर क्या आर्थिक और विकास की प्राथमिकताओं का है , क्या अंतर सामाजिक प्राथमिकताओं का है , क्या अंतर राष्ट्रहित से संबंधित अंतरराष्ट्रीय महत्त्व बाले दृष्टिकोण का है ?. और अगर उत्तर और दक्षिण ध्रुब जैसी दूरी अंतर राष्ट्रहित से संबंधित अंतरराष्ट्रीय महत्त्व बाले दृष्टिकोण से भी जुडी है तो इस में कहाँ तक दूरी साथ आने के बाद कम हुई है इस का आकलन करना अति अवश्यक है. खास कर जम्मू कश्मीर के संधर्व में ऐसा आकलन करना इस लिए भी आवश्यक है क्यों कि जम्मू कश्मीर के लोगों को विचारधारा और राजनीतिक धारणाओं के स्तर पर बंटा हुआ दिखाए जाने की कोशिश आज भी पहले की सरकारों के समय की तरह की जा रही है.
एक दल अगर किसी खास क्षेत्र पर डेवलपमेंट के लिए केन्द्रित करता है तो इस पर विवाद हो सकता है पर अगर एक दल जम्मू कश्मीर के भारत के साथ अधिमिलन को पूर्ण भारतीयता की तरह देखता है और दूसरा राष्ट्रियता में प्रत्यक्ष अप्रत्क्ष रूप में कहीं पर पाकिस्तान की भागीधारी देखता है तो जब तक दोनों वोट की राजनिति को त्याग कर एक दूसरे के साथ अपने राष्ट्रियता से जुडी सूक्षम धारणाएं नहीं सुधारते तब तक उन के साथ चलने से किसी का भला होगा इस की आशा करना उचित नहीं है क्यों की ऐसा किए बिना जम्मू कश्मीर में राष्ट्रहित से जुडी उन राजीनीतिक और भावनात्मक भ्रान्तिया को दूर नहीं किया जा सकता जिन से प्रथकतावाद और आतंकवाद को भी सहारा मिलता है.
कम से कम पिछले 10 साल से लगातार आर्म्ड फोर्ससिस ( जम्मू कश्मीर ) स्पेशल पावर्स एक्ट 1990 एक विवाद का विषय बना हुआ है और इस पर नेशनल कांफ्रेंस , पीडीपी और खासकर कश्मीर घाटी के मुख्यधारा के कहे जाने बाले नेता भी प्रश्न खड़े करते आ रहे हैं और ऐसे सन्देश आम आदमी तक पहुँच रहे हैं कि केंद्र सरकार ने इस को बिना जरूरत के जम्मू कश्मीर में एक तरह से सेना प्रभुत्ब बनाने के लिए थोपा है. यहाँ तक कि इस का जिक्र बीजेपी पीडीपी एजेंडा फॉर एलायन्स में भी है और पीडीपी के नेता इस याद भी दिलाते रहते हैं. केन्द्र सरकार और स्थानीय बीजेपी के नेता अफ्स्पा पर मीडिया के जरिये पीडीपी से बात करते दिखते हैं जो ठीक नहीं है जिस से अफ्स्पा एक रीजनल और राजनीतिक मुद्दा ज्यादा लगता है.
ऐसा होने से बीजेपी-पीडीपी सरकार बनने पर जो एक दिल मिलने की आशा बनी थी बह धूमिल होती लगती है इस लिए पीडीपी को भी अफ्स्पा के विषय को अब वोट की राजनीती से ऊपर उठकर देखना चाहिए. अगर मुफ़्ती साहिब को लगता है कि भारत के जम्मू कश्मीर राज्य की कश्मीर घाटी में आतंकवाद और पाकिस्तान समर्थक तत्व अब बेअसर हो गए हैं तो पीडीपी-बीजेपी सरकार को कश्मीर घाटी के बाहर रह रहे कश्मीरी पंडितों की बापसी को अपना मुख्य मुद्दा बनाना चाहिए न कि टूरिस्टो को घाटी की खूबसूरती की और आकर्षित करने को. इस के साथ ही मुफ़्ती सरकार के मंत्रिओं को अपने साथ एस्कॉर्ट ड्यूटी पर सुरक्षा बल घटा कर सुधरे हालात को केन्द्र को दीखाना चाहिए.
जम्मू कश्मीर में बीजेपी पीडीपी सरकार 6 साल चलती है या नहीं यह कोई महत्व नहीं रखता. महत्त्व इस बात है कि क्या बीजेपी पीडीपी सरकार धर्म और क्षेत्रबाद की नीतिओं से परे हट कर जम्मू कश्मीर, खास कर के कश्मीर घाटी, को प्रथिक्ताबादी तत्बों और विचारधारों के जंजाल से किस हद तक बाहर निकलने में कामजब होती है.
पीडीपी- बीजेपी की सरकार ने अभी एक महीना भी पूरा नहीं किया था कि सरकार के घटक दल पीडीपी की और से कुछ ऐसे वक्तब्य आए जिन से राजनीतिक और अन्तराष्ट्रीय महत्व के विवाद पैदा हो सकते थे और कुछ हुए भी. जैसे की सरकार की और से यह आदेश आना की जम्मू कश्मीर के राज्य झन्डे का स्तर भारत के राष्ट्रध्वज के बराबर है, बीजेपी पीडीपी के अजेंडा फॉर एलायन्स में यह कहना की जम्मू कश्मीर के सम्बेधानिक विशेष दर्जे को ऐसे ही बनाए रखा जाएगा और इस एजेंडा में पीडीपी के सेल्फ रूल की कोई बात नहीं की गई थी जब के पीडीपी के सेल्फ रूल में जम्मू कश्मीर की भारत और पाकिस्तान से सम्बन्ध रखने बाली अन्तराष्ट्रीय महत्व बाली बातों की चर्चा है. बीजेपी को इस बारे अपना पक्ष रखना चाहिए था पर ऐसा न कर के बीजेपी ने अपने पर सवाल खड़े कर लिए हैं.
इस को जम्मू कश्मीर के लोगों का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि ऐसे विवादों को भी महीनों पनपने दिया गया है जिन का निबारण कुछ दिनों या घंटों में हो सकता था. मोदी सरकार में एक राज्य मंत्री ने दावा किया था कि उस के प्रयासों से आल इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज को भारत सरकार ने जम्मू रीजन के लिए 2015-16 की बजट में रखा था. जब कि बीजेपी-पीडीपी सरकार के एजेंडा फॉर एल्लांस में यह साफ़ लिखा जा चुका था कि ऐम्स कश्मीर घाटी में खोला जाएगा. जम्मू कश्मीर के उपमुख्यमंत्री के नाम से यह भी समाचार छपा था कि एम्स घाटी से कोई ले नहीं सकता.
कश्मीर के नेता और जम्मू के लोग विवादों के घेरे में घिरना शुरू हो गए. जम्मू रीजन में तो एक सर्वदल समिति भी आन्दोलन के लिए गठित हो गई. बीजेपी के एक अन्य राष्ट्रीय नेता ने २६ मई को यह कह कर कि एम्स जम्मू और श्रीनगर के बीच किसी स्थान पर बनाना चाहिए. 27 मई को जम्मू में बंद किया गया और गृहमंत्री ने जम्मू में कहा कि इस बारे में प्रधानमंत्री से बात की जाएगी और बीजेपी के सांसद जुगल किशोर जी और विधायक निर्मल सिंह जी (जो उपमुख्यमंत्री भी है) को दिल्ली आने के लिए कहा. इस से एक बात साफ़ हो जाती है कि राज्य मंत्री जतिंदर सिंह ने जो कहा था वह सही नहीं था. तब भी बीजेपी नेताओं ने विवाद की नाजुकता को नहीं समझा और 4 जून को प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री ने फिर मीडिया के सामने कहा कि जम्मू कश्मीर में कहीं भी एम्स बनने से पहले जम्मू में बनेगा. मुफ़्ती सरकार में एक मंत्री और एक बीजेपी के शीर्ष नेता ने 11 जून को कहा कि जम्मू के लिए भी एम्स की घोषणा जल्द ही ( एक सप्ताह के अंदर) कर दी जाएगी. एम्स के लिए बनी सर्वदल समिति के सदस्य 12 जून को क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे और उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह जी ने 18 जून को समिति से दिली से जम्मू के लिए एम्स लाने के लिए कम से कम 33 दिन यानी 20 जुलाई तक का समय माँगा और हड़ताल कुछ समय के लिए निलंबित हो गई.
जरा सोचिये जब 11 जून को एक बीजेपी के मंत्री और एक शीर्ष नेता ने कहा था कि केन्द्र सरकार कुछ दिनों में जम्मू को भी एम्स दे देगी तो फिर निर्मल सिंह जी ने एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी 18 जून को 2 महीने का समय क्यों माँगा? इससे निष्कर्ष निकलता है कि केंद्र के एक राज्य मंत्री और जम्मू कश्मीर के शीर्ष नेताओं ने भी एम्स पर झूठ बोला था. अब घाटी के कुछ लोग यह मांग कर रहे हैं की अगर जम्मू को केन्द्र एम्स देता है तो फिर घाटी को आईआईटी और आईआईम भी मिलना चाहिए. इस लिए अगर जम्मू कश्मीर का वातावरण १ मार्च के बाद भी नहीं सुधरा है तो इस के लिए बीजेपी भी सवालों के घेरे में आ सकती है. क्षेत्रबाद और धार्मिक उन्माद पैदा करने बालों को आज भी इस प्रकार की बातों से सहारा मिल रहा है. कांग्रेस के सत्ता से बाहर जाने के बाद भी अगर केन्द्र की जम्मू कश्मीर बारे निति में कोई अंतर नहीं पड़ा है तो यह एक चिंता की बात होनी चाहिए. जिस प्रकार के disclosures डुलत ने किए हैं उन से राष्ट्र हित और सुरक्षा में कम करने बाले सरकारी तंत्र पर भी प्रश्न लग गये हैं और अब तक उच्चस्तर का कोई कमीशन सरकार को ए एस डुलत द्वारा किए खुलासों पर बिठा देना चाहिए था पर क्यों ऐसा नहीं किया गया है इस का भारत के लोगों को सरकार से उत्तर मांगना चाहिए.