प्रवचनों की सार्थकता उसका मनन कर जीवन में उतारने से होती है – डॉ. मोहन जी भागवत

सिलीगुड़ी (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने रविवार 21 फरवरी सुबह साढ़े नौ बजे (9.30) श्वेतांबर तेरापंथ संप्रदाय के प्रमुख आचार्यश्री महाश्रमण जी से ईश्वरपुर (इस्लामपुर) में मुलाकात की. सरसंघचालक जी तथा आचार्यश्री के मध्य करीब आधा घंटे तक विभिन्न विषयों को लेकर बातचीत हुई. तत्पश्चात दोनों जैन भवन के समक्ष बने विशाल पंडाल में प्रवचन मंच पर पधारे. आचार्यश्री महाश्रमण जी के प्रवचन तथा प्रतिज्ञा स्मरण के बाद संतश्री के अनुरोध पर सरसंघचालक जी का उद्बोधन हुआ.

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हर साल आचार्य महाप्रज्ञ (तेरापंथ के दसवें प्रमुख) के समय से चतुर्मास में आचार्यश्री के दर्शन व प्रवचन सुनने का लाभ प्राप्त करने के लिए पहुंचता हूं. इस बार किन्हीं कारणों से आचार्यश्री के विराटनगर चतुर्मास में उपस्थित नहीं हो पाया, तो आज यहां ईश्वरपुर में आचार्यश्री के दर्शन हेतु पहुंचा हूं. उन्होंने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के समय में तेरापंथ धर्मसंघ को पहली बार नजदीक से जानने का अवसर प्राप्त हुआ, पहली बार में ही लगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व तेरापंथ धर्मसंघ में बहुत समानताएं हैं. मैंने नियम बना लिया कि साल में एक बार अवश्य आचार्यश्री के वचनामृतों का लाभ उठाऊंगा. इसलिए आज यहां ईश्वरपुर आया हूं.

आचार्यश्री ने जो बताया उसे केवल आत्मसात करने की आवश्यकता है. क्योंकि सुनने की सार्थकता तभी साबित होती है, जब आदमी उसका मनन करते हुए उसे जीवन में उतारे. जैसे शरीर की उन्नति में हर अंग भागीदार होता है, उसी तरह समाज व राष्ट्र के उत्थान के लिए हर व्यक्ति का उत्थान होना आवश्यक है. साधु संतों का काम अच्छा मार्ग बताना है, और उस पर चलना आदमी का कर्तव्य. भारत में रहने वाले हर नागरिक को सनातन संस्कृति को अपने में उतारने से ही देश उन्नति की राह पर अग्रसर हो सकता है. सरसंघचालक जी पूर्व क्षेत्र के प्रवास के दौरान सिलीगुड़ी आए थे. उनके साथ संघ के सह सरकार्यवाह वी भगैय्या जी, अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख अद्वैतचरण दत्त जी, क्षेत्र प्रचारक प्रदीप जोशी जी एवं प्रांत प्रचारक जलधर महतो जी उपस्थित थे.

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