प्रस्ताव-1 : भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता.

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह मत है कि भाषा किसी भी व्यक्ति एवं समाज की पहचान का एक महत्त्वपूर्ण घटक तथा उसकी संस्कृति की सजीव संवाहिका होती है। देश में प्रचलित विविध भाषाएँ व बोलियाँ हमारी संस्कृति, उदात्त परंपराओं, उत्कृष्ट ज्ञान एवं विपुल साहित्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के साथ ही वैचारिक नवसृजन हेतु भी परम आवश्यक हैं। विविध भाषाओं  में उपलब्ध लिखित साहित्य की अपेक्षा कई गुना अधिक ज्ञान गीतों, लोकोक्तियों तथा लोक कथाओं आदि की मौखिक परंपरा के रूप में होता है।

आज विविध भारतीय भाषाओं व बोलियों के चलन तथा उपयोग में आ रही कमी, उनके शब्दों का विलोपन व विदेशी भाषाओं के शब्दों से प्रतिस्थापन एक गम्भीर चुनौती बन कर उभर रहा है। आज अनेक भाषाएँ एवं बोलियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और कई अन्य का अस्तित्व संकट में है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह मानना है कि देश की विविध भाषाओं तथा बोलियों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिये सरकारों, अन्य नीति निर्धारकों और स्वैच्छिक संगठनों सहित समस्त समाज को सभी सम्भव प्रयास करने चाहिये। इस हेतु निम्नांकित प्रयास विशेष रूप से करणीय हैं:-

  1. देशभर मे प्राथमिक शिक्षण मातृभाषा या अन्य किसी भारतीय भाषा में ही होना चाहिये। इस हेतु अभिभावक अपना मानस बनायें तथा सरकारें इस दिशा में उचित नीतियों का निर्माण कर आवश्यक प्रावधान करें।
  2. तकनीकी और आयुर्विज्ञान सहित उच्च शिक्षा के स्तर पर सभी संकायों में शिक्षण, पाठ्य सामग्री तथा परीक्षा का विकल्प भारतीय भाषाओं में भी सुलभ कराया जाना आवश्यक है।
  3. राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा (नीट) एवं संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाएँ भारतीय भाषाओं में भी लेनी प्रारम्भ की गयी हैं, यह पहल स्वागत योग्य है। इसके साथ ही अन्य प्रवेश एवं प्रतियोगी परीक्षाएँ, जो अभी भारतीय भाषाओं में आयोजित नहीं की जा रही हैं, उनमें भी यह विकल्प सुलभ कराया जाना चाहिये।
  4. सभी शासकीय तथा न्यायिक कार्यों में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। इसके साथ ही शासकीय व निजी क्षेत्रों में नियुक्तियों, पदोन्नतियों तथा सभी प्रकार के कामकाज में अंग्रेजी भाषा की प्राथमिकता न रखते हुये भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  5. स्वयंसेवकों सहित समस्त समाज को अपने पारिवारिक जीवन में वार्तालाप तथा दैनन्दिन व्यवहार में मातृभाषा को प्राथमिकता देनी चाहिये। इन भाषाओं तथा बोलियों के साहित्य-संग्रह व पठन-पाठन की परम्परा का विकास होना चाहिये। साथ ही इनके नाटकों, संगीत, लोककलाओं आदि को भी प्रोत्साहन देना चाहिये।
  6. पारंपरिक रूप से भारत में भाषाएँ समाज को जोड़ने का साधन रही हैं। अतः सभी को अपनी मातृभाषा का स्वाभिमान रखते हुए अन्य सभी भाषाओं के प्रति सम्मान का भाव रखना चाहिये।
  7. केन्द्र व राज्य सरकारों को सभी भारतीय भाषाओं, बोलियों तथा लिपियों के संरक्षण और संवर्द्धन हेतु प्रभावी प्रयास करने चाहिये।

अ. भा. प्रतिनिधि सभा बहुविध ज्ञान को अर्जित करने हेतु विश्व की विभिन्न भाषाओं को सीखने की समर्थक है। लेकिन, प्रतिनिधि सभा भारत जैसे बहुभाषी देश में हमारी संस्कृति की संवाहिका, सभी भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन को परम आवश्यक मानती है। प्रतिनिधि सभा सरकारों, स्वैच्छिक संगठनों, जनसंचार माध्यमों, पंथ-संप्रदायों के संगठनों, शिक्षण संस्थाओं तथा प्रबुद्धवर्ग सहित संपूर्ण समाज से आवाहन करती है कि हमारे दैनन्दिन जीवन मेें भारतीय भाषाओं के उपयोग एवं उनके व्याकरण, शब्द चयन और लिपि में परिशुद्धता सुनिश्चित करते हुये उनके संवर्द्धन का हर सम्भव प्रयास करें।

Resolution 1

 

Need to protect and promote Bharatiya Languages

 

Praitinidhi Sabha is of the view that language is an important constituent of identity and active vehicle of the culture of any individual and society. The languages and dialects, prevalent in the country are most essential to protect our culture, noble traditions, excellent knowledge and vast literature as well as to promote creative thinking. The oral tradition of knowledge in the form of songs, idioms and folklores etc in various languages is many times more than the written literature.

 

The declining trend in the practice and usage of Bharatiya languages, elimination of their words and replacement by words of foreign languages are emerging as a serious challenge. Today, many languages and dialects have become extinct and several other are endangered. ABPS is of the opinion that the governments, other policymakers and the society, including the voluntary organizations should endeavour to undertake all kinds of efforts to protect and promote various languages and dialects of the country. In this regard, following efforts are worth undertaking:-

 

  1. Primary education across the country should only be in mother tongue or any other Bharatiya language. For this, parents should also make up their mind and the governments should formulate suitable policies and frame necessary provisions in this regard.

 

  1. Teaching, study material and option of appearing in the examinations in higher education in all faculties including the technical and medical should be available in Bharatiya languages too.

 

  1. It is a welcome initiative that the National Eligibility cum Entrance Test (NEET) and examinations being conducted by the Union Public Service Commission have now been started in Bharatiya languages. Along with this, the same option should be available for all other entrance tests and competitive examinations still not being conducted in Bharatiya languages.

 

  1. Preference should be given to Bharatiya languages in all governmental and judicial works. In addition to this, Bharatiya languages should be encouraged in Governmental and non governmental appointments, promotions and all kinds of functions instead of giving preference to English.

 

  1. The entire society including the swayamsevaks should give preference to the mother tongue in conversations and day to day interactions in the family. The tradition of collecting and reading literature in these languages needs to be cultivated. At the same time, their plays, music and folk arts should also be promoted.

 

  1. Traditionally, languages have been means to integrate the society in Bharat. So, while having pride of one’s mother tongue all should show a sense of respect for all other languages.

 

  1. Central and State governments should take effective steps to protect and promote all the languages, dialects and scripts of Bharat.

 

ABPS is in favour of learning various languages of the world to acquire diverse knowledge. But, in a multilingual country like Bharat ABPS considers it most necessary to protect and promote all the languages of Bharat as the carrier of our culture. ABPS calls upon the society including the governments, voluntary organizations, media, religious organizations, educational institutions and intelligentia to make every possible effort to promote the use of Bharatiya languages and ascertain purity of their grammar, usage of words and the scripts.

#RSSABPS

Saptrang ShortFest - All Info