भोपाल (विसंकें). निनौरा-उज्जैन में अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ के दूसरे दिन ‘कृषि एवं कुटीर’ कुंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि प्रकृति से अधिक से अधिक लेने की सोच के कारण ही असंतुलन हुआ है. प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार की प्रवृत्ति दानवीय प्रवृत्ति है. हमें अपने मूल की ओर लौटना ही होगा. प्रकृति के साथ मित्रता करनी होगी. उन्होंने कहा कि अन्न देने वाली माता वसुंधरा का सम्मान और हरित क्रांति की समीक्षा होनी चाहिये. पिछले 50 साल में हमने हरित क्रांति से क्या खोया और क्या पाया, इसका आंकलन होना चाहिए. हमारी अन्न देने वाली भूमि सुरक्षित रहे, इसके प्रयास होने चाहिएं. प्राचीन एवं वर्तमान में संतुलन बनाकर कार्य करना होगा. उन्होंने कहा कि इसकी शुरूआत विचार कुंभ से हो रही है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आदर्श कृषि फार्म बनाकर वहां प्रयोग करेंगे. प्रयोग सफल होने पर उन्हें किसानों तक ले जायेंगे. प्रदेश में सिंचाई का रकबा 7.5 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 36.5 लाख हेक्टेयर कर दिया गया है. किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर लोन दिया जा रहा है. कृषि विकास दर लगातार चार वर्ष से बीस प्रतिशत से अधिक है. कृषि उत्पादन में हम हरियाणा और पंजाब से भी आगे निकल गये हैं.
जया जेटली ने कहा कि कृषि एवं कुटीर उद्योग का अटूट रिश्ता है. कृषि के उत्पादन में कारीगरों की उपयोगिता किसी से छिपी नहीं है. कृषि की लागत, संभावनाएं और कृषकों की उम्मीदों के बारे में समग्र रूप से विचार होना चाहिये.
योगगुरू स्वामी रामदेव ने कहा कि हम सब हेंड मेड सामान का उपयोग करने का संकल्प लें. हेंड मेड सामान का ही फैशन होना चाहिये. बुनकरों द्वारा बनाये जाने वाले कपड़ों का उपयोग करेंगे तो लाखों बुनकरों को रोजगार मिलेगा. जींस पहनो, तो वह भी देशी हो. वे मध्यप्रदेश में शीघ्र ही फूड पार्क बनायेंगे. पूरे देश में 4 गौ-अनुसंधान केन्द्र स्थापित करेंगे. उन्होंने बताया कि विनाशकारी विकास की जगह समग्र विकास को अपनाना होगा. पारम्पारिकता और आधुनिकता के साथ चलकर आर्थिक एवं वैचारिक दरिद्रता दूर की जा सकती है. बाबा रामदेव ने कहा कि कम लागत, ज्यादा उपज की नीति पर कार्य करना होगा. साबुन, टूथपेस्ट तथा पतंजलि आश्रम में बनने वाले अन्न उत्पादों का प्रशिक्षण नि:शुल्क देंगे. छोटे-छोटे स्थानों पर फूड प्रोसेसिंग यूनिट बननी चाहिये.
मशहूर पर्यावरणविद तथा वैज्ञानिक वंदना शिवा ने कहा कि विश्व युद्ध में एक्सप्लोसिव बनाने वाले लोग अब कृषि के लिए रसायन बना रहे हैं. हरित क्रांति के पहले नदियाँ सूखती नहीं थी. रासायनिक खेती हिंसा की खेती है. उन्होंने अहिंसक खेती पर जोर देते हुए कहा कि कृषि, रोटी और स्वास्थ्य को साथ में जोड़कर देखना होगा. नब्बे प्रतिशत अनाज बायो-फ्यूल और जानवरों के लिए उपयोग किया जा रहा है. दाल की फसल 140 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देती है. हर साल लगभग 70 अरब रूपये रासायनिक खेती पर खर्च हो रहे हैं. जबकि वैदिक खेती द्वारा दस गुना उत्पादन किया जा सकता है. इससे जल-संरक्षण भी किया जा सकता है.
सांसद अनिल माधव दवे ने कहा कि आर्थिक व्यवस्था को ठीक करना है, तो शून्य बजट खेती की नीति बनानी होगी. घर की देशी गाय घर लौटनी चाहिये. गाय के गोबर और गौ-मूत्र से कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ ही मिट्टी का क्षरण रोका जा सकता है. यह विडंबना ही है कि किसानों द्वारा उत्पादित सामग्री का मूल्य उपभोक्ता तय करते हैं, जबकि अन्य उत्पादों का मूल्य उत्पादक तय करता है. मूल परम्परा में वैज्ञानिक परम्परा को जोड़ना चाहिये. प्रकृति में सभी जीव और वनस्पतियों में भोजन की स्वावलम्बी व्यवस्था है.
बैक टू विलेज संस्था के को-फाउंडर आईआईटियन मनीष कुमार ने कहा कि प्रतिदिन किसान कृषि छोड़कर शहर की ओर भाग रहे हैं. अगर अवसर मिले तो 60 प्रतिशत किसान खेती छोड़ देंगे. यह सब उन्हें सम्मान नहीं मिलने के कारण हो रहा है. युवा नीड बेस्ड कार्य करें, तो सफलता जरूर मिलेगी. जो फसल जिस क्षेत्र में होती है, वहीं पर उसका उत्पादन बढ़ाने के प्रयास होने चाहिये. भगवान के बाद किसान है, क्योंकि वह हमारा अन्नदाता है. कृषि को बचपन से ही पढ़ाया जाये. योग्य युवाओं को कुछ प्रोत्साहन राशि देकर सामाजिक क्षेत्र में कार्य के लिए प्रेरित करने पर क्रान्ति आ सकती है. खेती करके भी अच्छी जिन्दगी को जिया जा सकता है, का भाव पैदा होना चाहिये. उन्होंने कहा कि आज धान का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 55 से 60 क्विंटल हो रहा है, जबकि सन् 1955 में कुछ किसान 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन कर रहे थे.