डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जिन्होंने अपना समूचा जीवन हिंदू समाज व राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया था. शास्त्र के ज्ञाता केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 ( गुडी पड़वा के दिन) को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था. डॉ. हेडगेवार को प्रारंभिक शिक्षा उनके बड़े भाई द्वारा प्रदान की गई. मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद हेडगेवार ने चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई करने के लिए कोलकाता जाने का निर्णय किया. प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी और मोतियाबिंद पर पहला शोध करने वाले डॉ. बी.एस. मुंजू ने हेडगेवार को चिकित्सा अध्ययन के लिए 1910 में कोलकाता भेजा था.
कलकता में रहते हुए डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अनुशीलन समिति और युगांतर जैसे विद्रोही संगठनों से अंग्रेजी सरकार से निपटने के लिए विभिन्न विधाएं सीखीं. अनुशीलन समिति की सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही वह राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आ गए. केशब चक्रवर्ती के छद्म नाम का सहारा लेकर डॉ. हेडगेवार ने काकोरी कांड में भी भागीदारी निभाई थी जिसके बाद वह भूमिगत हो गए थे. इस संगठन में अपने अनुभव के दौरान डॉ. हेडगेवार ने यह बात जान ली थी कि स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी सरकार से लड़ रहे भारतीय विद्रोही अपने मकसद को पाने के लिए कितने ही सुदृढ क्यों ना हों, लेकिन फिर भी भारत जैसे देश में एक सशस्त्र विद्रोह को भड़काना संभव नहीं है. इसीलिए नागपुर वापस लौटने के बाद उनका सशस्त्र आंदोलनों से मोह भंग हो गया. नागपुर लौटने के बाद डॉ. हेडगेवार समाज सेवा और तिलक के साथ कांग्रेस पार्टी से मिलकर कांग्रेस के लिए कार्य करने लगे थे. कांग्रेस में रहते हुए वह डॉ. मुंजू के और नजदीक आ गए थे जो जल्द ही डॉ. हेडगेवार को हिंदू दर्शनशास्त्र में मार्गदर्शन देने लगे थे.
इसके बाद डॉ. केशवराम हेडगेवार को उन लोगों के बीच पहचाना गया, जो ‘हिंदुत्व’ और ‘भारत’ की खो चुकी अस्मिता को पुनर्स्थापित करने के लिए संघर्षरत थे. अपना स्वप्न साकार करने के लिए डॉ. हेडगेवार ने सन् 1925 में ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ स्थापना की.
डॉ. हेडगेवार के व्यक्तित्व को समग्रता व संपूर्णता में ही समझा जा सकता है. उनमें देश की स्वाधीनता के लिए एक विशेष आग्रह, दृष्टिकोण और दर्शन बाल्यकाल से ही सक्रिय थे. ऐसा लगता है कि जन्म से ही वे इस देश से, यहां की संस्कृति व परंपराओं से परिचित थे. यह निर्विवाद सत्य है कि उन्होंने संघ की स्थापना देश की स्वाधीनता तथा इसे परम वैभव पर पहुंचाने के उद्देश्य से ही की थी. इस कार्य के लिए उन्होंने समाज को वैसी ही दृष्टि दी जैसी गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दी थी. हेडगेवार ने देश को उसके स्वरूप का बोध कराया. उन्होंने उस समय भी पूर्ण स्वाधीनता और पूंजीवाद से मुक्ति का विषय रखा था, जबकि माना जाता है कि कांग्रेस में वैसी कोई सोच नहीं थी.
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ शाखा के माध्यम से राष्ट्र भक्तों की फौज खड़ी की. उन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिए नए तौर-तरीके विकसित किए. इन्होंने सारी जिन्दगी लोगों को यही बताने का प्रयास किया कि नई चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें नए तरीकों से काम करना पड़ेगा, स्वयं को बदलना होगा, पुराने तरीके काम नहीं आएंगे. उनकी सोच युवाओं के व्यक्तित्व, बौद्धिक एवं शारीरिक क्षमता का विकास कर उन्हें एक आदर्श नागरिक बनाती है.
डॉ. साहब १९२५ से १९४० तक, यानि मृत्यु पर्यन्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहे। २१ जून, १९४० को इनका नागपुर में निधन हुआ। इनकी समाधि रेशम बाग नागपुर में स्थित है, जहाँ इनका अंत्येष्टि संस्कार हुआ था।