सिर्फ 19 साल की उम्र में देश के लिए शहीद होने वाले करतार सिंह सराभा भी शामिल हैं। उनका जन्म 24 मई, 1896 को हुआ था। मेट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए करतार सिंह अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने जब मजदूरों के साथ नस्लीय भेदभाव होते देखा तो अंग्रेजों के खिलाफ उनके दिल में नफरत भर गई। उसी समय उनका संपर्क लाला हरदयाल से हुआ। जब अमेरिका में भारतीयों ने गदर पार्टी की स्थापना की और ‘गदर’ नाम का साप्ताहिक अखबार निकालने का फैसला किया जिसकी जिम्मेदारी करतार सिंह सराभा को सौंपी गई।
सराभा ने गुप्त रूप से क्रांतिकारियों से मिलने का निश्चय किया, ताकि भारत में विद्रोह की आग जलाई जा सके। इस मकसद से उन्होंने सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, रासबिहारी बोस, शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि क्रांतिकारियों से भेंट की। उनके प्रयत्नों से जालंधर की एक बागीचे में एक मीटिंग का आयोजन किया गया जिसमें पंजाब के सभी क्रांतिकारियों ने भाग लिया। इस मीटिंग में पंजाब के क्रांतिकारियों ने यह सुझाव दिया कि रासबिहारी बोस को पंजाब में आकर क्रांतिकारियों का संगठन बनाना चाहिए। तदनुसार रासबिहारी बोस ने पंजाब आकर सैनिकों का संगठन बनाया। इसी समय उन्होंने विद्रोह के लिए एक योजना भी बनाई। इस योजना के अनुसार समस्त भारत में फौजी छावनियां एक ही दिन और एक ही समय में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह करेंगी।
गदर पार्टी ने अंग्रेजों के खिलाफ देश में विद्रोह के लिए 21 फरवरी, 1915 का दिन तय किया था। लेकिन गद्दार मुखबिर किरपाल सिंह ने ब्रिटिश सरकार को इसकी सूचना दे दी। इस बात की भनक जब क्रांतिकारियों को लगी तो उनलोगों ने विद्रोह की तारीख 19 फरवरी कर दी, इसके बारे में भी अंग्रेजों को पता लगा गया। इसके बाद अंग्रेज शासन ने उनलोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। उन्होंने अपने साथियों के साथ अपने एक हमदर्द के यहां शरण लिया था लेकिन वह भी गद्दार निकला और सभी को गिरफ्तार करवा दिया। करतार सिंह सराभा और उनके साथियों के खिलाफ राजद्रोह, डकैती और कत्ल का मुकदमा चलाया गया। अदालत ने सराभा समेत सभी 24 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई। 16 नवंबर, 1915 को करतार सिंह सराभा और उनके 6 साथियों को फांसी दे दी गई। उस समय करतार सिंह सराभा की उम्र सिर्फ 19 साल थी। सराभा और उनके साथी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए।
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