भविष्य का भारत – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण

तीन दिवसीय व्याख्यानमाला का अंतिम दिन, प्रश्नोत्तर सत्र

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने भारत के समाज में सामाजिक विषमता को बढ़ाने वाली सभी बातों का समूल नाश करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि आरक्षण की व्यवस्था तब तक जारी रहने चाहिए, जब तक इससे लाभान्वित होने वाला वर्ग स्वयं इसकी आवश्यकता से इंकार नहीं करता. अगर इसमें100-150 वर्ष भी लगते हैं तो भी यह वांछनीय ही होगा. आरक्षण समस्या नहीं है, आरक्षण की राजनीति समस्या है.

सरसंघचालक राजधानी के विज्ञान भवन में तीन दिन से चल रही ‘भविष्य का भारत – संघ का दृष्टिकोण’ विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला के समापन सत्र में आमंत्रित विशिष्टजनों के प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे. उन्होंने कहा कि संघ अंतरजातीय विवाह का पूर्ण समर्थन करता है. यह परिवारों और समाज की एकरसता को बढ़ाने वाली प्रक्रिया साबित होनी चाहिए. संघ से जुड़े परिवारों में अंतरजातीय विवाह बड़े पैमाने पर हुए हैं. राम जन्मभूमि से जुड़े प्रश्न पर कहा कि ‘अयोध्या में रामजन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर का निर्माण बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था. यदि हो गया तो ‘हिंदू मुस्लिम एकता’ को पुष्ट करेगा. यह काम सद्भावना से हुआ तो मुस्लिमों पर जो अंगुली उठती है, वह उठना बंद हो जाएगी.

देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़े एक प्रश्न पर उन्होंने कहा कि ‘हंगामा पैदा करने वाले से तो सख्ती से निपटा जाना ही चाहिए. ऐसे लोगों के समर्थन में समाज से किसी को खड़ा नहीं होना चाहिए.’ ‘समाज की कमजोरी का लाभ कोई न उठा सके, इसकी चिंता की जानी चाहिए.’

मुस्लिमों के साथ संघ के संबंध के प्रश्न पर सरसंघचालक ने कहा कि ‘संघ हर उस भारतवंशी को हिंदू मानता है जो अपनी मातृभूमि को, भारत की संस्कृति को और इसके पूर्वजों को अपना मानता है.’

उन्होंने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा कि ‘कौरवों और पांडवों में से किस का साथ दिया जाए, उसे लेकर यादवों में भी मतभेद थे. लेकिन भगवान कृष्ण ने स्पष्ट कहा कि हमें सर्वश्रेष्ठ संभव विकल्प का साथ देना चाहिए.’

जनसंख्या नियंत्रण और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के प्रश्न पर उन्होंने कहा ‘एक समुचित और सुविचारित जनसंख्या नीति बनाई जानी चाहिए. जनसांख्यिकीय संतुलन स्थापित किया जाना चाहिए. साथ ही यह भी कहा कि जहां इसकी आवश्यकता ज्यादा है, वहां इसे प्राथमिकता से लागू किया जाना चाहिए. लेकिन इसके लिए पहले लोगों का मन बनाने की जरूरत है. ‘जिस भी वर्ग में जन्मदर की जो भी स्थिति है, उसके लिए समाज जिम्मेदार है.’

कन्वर्जन के संबंध में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. भागवत ने कहा ‘अगर सभी धर्म समान हैं तो फिर कन्वर्जन का औचित्य ही क्या है. विश्व में जहां भी कन्वर्जन कराया जा रहा है, उसका उद्देश्य बेहद संदिग्ध है. इसका विरोध होना चाहिए.’

लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े प्रश्न पर उन्होंने कहा ‘उन्हें अपनी सुरक्षा के सजग और सक्षम बनाना पड़ेगा. साथ ही समाज को महिलाओं को देखने की अपनी दृष्टि बदलनी पड़ेगी.’

अंत में उन्होंने संघ को लेकर भ्रम में रहने वाले हर किसी से आह्वान किया कि वह संघ को यदि समझना चाहते हैं तो पहले नजदीक से देखें इसके बाद अपना मत बनाएं. साथ ही उन्होंने आह्वान किया कि आप समाज के लिए जो भी संभव हो वह काम करें, लेकिन निष्क्रिय न रहें. राष्ट्र के स्वत्व को खड़ा करने में जो भी कर सकते हैं वह करें. उन्होंने कहा ‘संकटों से जूझ रही दुनिया को आज एक तीसरा रास्ता चाहिए और वह दिशा देने की अंतर्निहित शक्ति केवल भारत के पास है.’

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