भारतीय भाषा में संवाद से बढेगा देश का स्वाभिमान : अतुल कोठारी

नई दिल्ली. भारतीय भाषा मंच और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में स्पीकर हाल , कान्स्टीट्यूशन क्लब , नई दिल्ली में “भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता : चुनौतियाँ एवं समाधान” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

संगोष्ठी में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव व भारतीय भाषा मंच के संचालक श्री अतुल कोठारी ने कहा कि आज देश के लोगों में अपनी भाषा में बोलने व कार्य करने में स्वाभिमान जागृत करने की आवश्यकता है. इसके लिए प्रत्येक देशवासी को स्वयं अपना उदाहरण देकर अपनी भाषा का ब्रांड अम्बेसडर बनने का प्रयत्न करना चाहिए. उन्होंने बताया की यह एक भ्रम है कि अंगरेजी पत्रकारिता हिंदी के पत्रकारिता के मुकाबले अधिक शोधपरक और तथ्यपूर्ण होती है. श्री कोठारी ने चिंता प्रकट कर कहा की भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में संघर्ष शुरू हो गया. आज आवश्यकता है कि इस मत भिन्नता का त्याग करते हुए एक ऐसे मंचों की स्थापना की जाए, जो सार्वजनिक तौर पर भारतीय भाषाओं की बेहतरी के लिए काम करे. भारतीय भाषा मंच इस दिशा में कार्य कर रहा है. उन्होंने कहा की स्वतंत्र भारत में जितने लोग हुए उनके द्वारा भारतीय भाषाओं भारतीय भाषाओं को लेकर अनेक कार्य किये गए हैं, किन्तु आज-कल लोग मानस के हिसाब से भी चलते हैं, जिससे हमारी भाषाओं में टकराव नजर आता है.

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि भले ही हम पढ़ते अंगरेजी में हों मगर समझने का काम भारतीय भाषाओं में ही होता है. हमें अपने भविष्य को ध्यान में रखकर अपनी आगामी योजनाओं को बनाना होगा. लगभग 90 प्रतिशत संवाद का काम देश में भारतीय भाषाओं में होता है. मगर प्रशासन हमारे साथ संवाद भारतीय भाषाओं में नहीं करता. इस दृष्टि से क्या हमें क्या हमें अपनी मातृभाषा में बोलने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए. कई शोधों से यह बात स्थापित हो चुकी है कि संस्कृत विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा है, साथ ही अंगरेजी उतनी ही अवैज्ञानिक. हमें यह सोचना होगा कि किस ओर जाना है. उन्होंने बताया की विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले सात समाचार पत्रों का विश्लेषण किया गया. विश्लेषण में पाया गया कि एक महीने में 22000 अंगरेजी के शब्दों का प्रयोग हिंदी के समाचार पत्रों द्वारा किया गया. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रयास से हिंदी विशेषज्ञों और संपादकों ने मिलकर अंगरेजी के इन शब्दों के स्थान पर हिंदी के समानार्थी शब्दों की सूची उपलब्ध करवाई. सभागार में उपस्थित युवाओं को संकल्पित करते हुए प्रो. कुठियाला ने कहा की वे सोशल मीडिया पर हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दें.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुधीर चौधरी ने भाषाई पत्रकारिता की चुनौतियों के कारणों पर अपनी राय रखते हुए कहा कि हिंदी के तथाकथित ठेकेदार तो बहुत हैं मगर अनुसरण करने वाले कम, जबकि अंगरेजी में अनुसरण करने वाले ज्यादा हैं. वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के पॉवर लैंग्वेज सर्वे का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि 2050 तक हिंदी विश्व में 10 बड़ी भाषाओं में से एक होगी. पिछले वर्ष ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी में 500 नए शब्द सम्मिलित किये गए हैं, इनमें से 240 शब्द भारतीय भाषाओं से लिए गए हैं, यह हिंदी के बढ़ते प्रभाव का परिचायक है.

मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार श्री विजय क्रांति ने कहा कि आज हिंदी निरंतर आगे बढ़ रही है, पठनीयता के सन्दर्भ में आज 10 बड़े समाचार पत्रों में से 9 हिंदी की हैं. विज्ञापन का लगभग पूरा क्षेत्र हिंदी भाषा में ही है. भारतीय भाषा में पत्रकारिता की चुनौतियों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया में एनजीओ मानसिकता से आए लोगों का भाषा से कोई सरोकार नहीं होता, उन्हें महज मुनाफे से मतलब होता है. इससे न सिर्फ भाषाई अस्मिता खतरे में पड़ी है बल्कि पत्रकारिता की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में है.

भारतीय भाषा मंच के राष्ट्रीय संयोजक श्री वृषभ प्रसाद जैन ने पत्रकारिता के इतिहास और भारतीय भाषा संघर्ष पर खुलकर अपनी राय रखी. उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता एवं उनके सामने आने वाली चुनौतियों को सबके सम्मुख रखा.

10 दिसंबर को आयोजित इस संगोष्ठी में मंच सञ्चालन प्रो. अरुण कुमार भगत ने किया. कार्यक्रम में शिक्षा बचाओ आन्दोलन के संचालक श्री दीनानाथ बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार नंद किशोर त्रिखा, रामजी त्रिपाठी, राजनीतिक चिंतक अवधेश कुमार व बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी व पत्रकारिता के छात्र उपस्थित थे.

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