भारत का राष्ट्र चिंतन किसी देश, समाज या वर्ग के विरुद्ध नहीं – जे. नंदकुमार जी

जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार जी ने कहा कि भारत का राष्ट्रीय चिंतन किसी भी देश, समाज या वर्ग के विरुद्ध नहीं है. हिन्दू समाज के संगठन के प्रयासों को लेकर भय और आशंकाओं का जो वातावरण तैयार किया जा रहा है, उसके लिए वे लोग जिम्मेदार हैं जो पश्चिमी विचारधारा के प्लेटफॉर्म पर खड़े होकर भारत को देखते हैं.

नंदकुमार जी ने भारती भवन में संघ दृष्टि पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि पश्चिमी दृष्टिकोण से भारत को देखने की प्रवृत्ति में बदलाव लाने के लिए हमें भारतीय शिक्षा पद्धति के गुरुत्व मध्य ( Center of Gravity) को पुनः भारत में स्थापित करने की आवश्यकता है. उन्होंने 11 सितम्बर, 1893 को स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा शिकागो में दिए गए वक्तव्य का उल्लेख करते हुए कहा कि हिन्दू धर्म ने विश्व को न सिर्फ सहिष्णुता बल्कि सर्व स्वीकार्यता का पाठ सिखाया है. भारत अठारह सौ वर्षों तक विश्व की अर्थव्यवस्था में अग्रणी रहा, लेकिन फिर भी दुनिया के किसी देश का शोषण नहीं किया. उन्होंने वीर सावरकर द्वारा दी गई हिन्दू शब्द की परिभाषा का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जो भारत भूमि को अपनी पितृभूमि एवं पुण्य भूमि मानता है, वह हिन्दू है. फिर चाहे वह किसी भी पूजा पद्धति का पालन करता हो.

हाल ही नागौर में संपन्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बैठक की जानकारी देते हुए नंदकुमार जी ने बताया कि तीन दिन तक चली बैठक में स्वास्थ्य सेवा सहज, सस्ती एवं परिणामकारी बनाने, गुणवत्तायुक्त शिक्षा तथा समाज में व्याप्त भेदभाव एवं विषमताओं को दूर कर समरसता लाने पर विस्तार से चर्चा हुई. इन विषयों पर तीन प्रस्ताव भी पारित किए गए. उन्होंने बताया कि प्रतिनिधि सभा की बैठक में एकत्रित हुए आंकड़ों के अनुसार वर्तमान समय में देश में 56 हजार 859 दैनिक शाखाएं लगती हैं.

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