माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में डॉ. मनमोहन वैद्य जी का विद्यार्थियों के साथ संवाद एवं भारत की अवधारणा विषय पर व्याख्यान
भोपाल (विसंकें). डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि भारत दुनिया में एक विशेष स्थान क्यों रखता है? उसकी पहचान क्या है? उसकी विशेषता क्या है? भारत की संस्कृति में सबके लिए स्थान और सम्मान क्यों है? जब हम इन प्रश्नों के उत्तर तलाशते हैं, तब हमें ध्यान आता है कि अध्यात्म भारत के चिंतन का आधार है, जो भारत को दुनिया में विशेष बनाता है. डॉ. वैद्य ‘भारत की अवधारणा’ विषय पर पत्रकारिता एवं संचार के विद्यार्थियों के साथ संवाद कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के तत्वावधान में रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला जी ने की.
मुख्य अतिथि डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि अध्यात्म, जीवन के प्रति विशिष्ट दृष्टि, सर्वसमावेशी सिद्धांत, विद्या एवं अविद्या की परंपरा, यह भारत की विशेषता है. भारत में जीवन को देखने की एक विशिष्ट दृष्टि है. यहां अनेक विविधताओं को जोड़ने वाला तत्व अध्यात्म है. इसी कारण हम मानते हैं कि सबमें एक ही तत्व व्याप्त है. सब एक ही चैतन्य का अंश हैं. इसी विचार के कारण हम अनेकता में एकता को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि एक ही तत्व है, जो अनेकता में अभिव्यक्त हुआ है. भारत में विविधता में भेद नहीं है. जबकि भारत के बाहर ऐसा नहीं है. पश्चिम में सबको अलग-अलग देखा जाता है. इस संबंध में उन्होंने असहिष्णुता-सहिष्णुता की बहस का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की सोच सहनशीलता, एक-दूसरे के सम्मान के विचार से भी आगे जाती है. शिकागो व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में उसको प्रस्तुत किया है. विश्व धर्म सभा में जब सभी पंथ स्वयं को ही श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे, तब स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत का विचार सभी सत्यों को स्वीकार करता है.
पश्चिम के मापदण्डों पर भारत को समझना मुश्किल
उन्होंने कहा कि पश्चिम की परिभाषाओं, अवधारणाओं और मापदण्डों के आधार पर भारत को समझना मुश्किल है. पश्चिम में ‘राष्ट्रवाद’ के साथ हिंसा का इतिहास जुड़ा है, जबकि भारत में राष्ट्र के संबंध में अलग प्रकार से विचार किया गया है. भारत में ‘नेशन’ का पर्याय ‘राष्ट्र’ नहीं है. भारत में यहां के लोग राष्ट्र हैं. उन्होंने बताया कि भारत में राजनीतिक व्यवस्था को अधिक बल नहीं दिया गया. यहां समाज सत्ता प्रमुख रही. समाज अपनी व्यवस्थाएं स्वयं कर लेता था, वह राज्याश्रित नहीं था. सबसे अधिक कृतज्ञता जिसके प्रति प्रकट करनी होती है, उसे भारत में माता का स्थान दिया जाता है. धर्म और मजहब के संबंध में उन्होंने कहा कि मजहब नितांत व्यक्तिगत मामला है. प्रत्येक व्यक्ति का अपना मजहब हो सकता है. लेकिन, धर्म इससे अलग है. अपने मत का दायरा बड़ा करना ही धर्म है. अर्थात् अपने से बाहर सोचना और दूसरे के हित की चिंता करना धर्म है. इस अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला जी ने कहा कि ‘मैं ही’ नहीं, बल्कि ‘मैं भी’ भारत की अवधारणा है. अर्थात् अपने साथ समाज और देश की चिंता करना ही भारतीय विचार है. इस मौके पर लेखक एमआर पात्रा की पुस्तक ‘एडवरटाइजिंग एण्ड मार्केटिंग कम्युनिकेशन’ का भी विमोचन किया गया. कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ. राखी तिवारी ने किया, अतिथि परिचय नवीन मीडिया विभाग की अध्यक्ष डॉ. पी. शशिकला ने करवाया कराया और आभार प्रदर्शन संचार शोध विभाग की अध्यक्ष मोनिका वर्मा ने किया.