भारत को पुनः विराट और गौरवशाली रूप में देखना संघ का एकमात्र लक्ष्य : श्री मोहनजी भागवत

औरंगाबाद, जनवरी 11 : प.पू. सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने रविवार को औरंगाबाद में हुए देवगिरि प्रांत के ‘महासंगम’ कार्यक्रम में 60000 स्वयंसेवकों के जनसागर को संबोधित करते हुए कहा की संघ का एकमात्र लक्ष्य है की एक सभ्य और सशक्त समाज का निर्माण किया जाए जो की आगे चलकर एक महान राष्ट्र का निर्माण कर सके और केवल इसी एकमात्र एजेंडे के साथ संघ के स्वयंसेवक दिन-रात कार्य में जुटे हुए हैं। औरंगाबाद में हुए इस कार्यक्रम में 60000 स्वयंसेवकों के अतिरिक्त आम जनता का सैलाब भी उमड़ पड़ा था।

उन्होने अपने संभाषण में कहा की इस देश में आवश्यक परिवर्तन तभी ही दिखेगा जब सारा समाज सिर्फ मूकदर्शक ना बनते हुए एकजुट हो जाए और राष्ट्रवादी ताकतों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करे। श्री मोहनजी ने कहा की यह देवगिरि प्रांत का पहला ऐसा महासंगम है जिसमें इतनी भारी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया, यह विशाल जनसैलाब तो समाज में चारों तरफ घट रहे बड़े परिवर्तन का केवल एक छोटा सा सूचक दृश्य है।

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 श्री मोहनजी ने कहा की आज सबको एक बात समझने की ज़रूरत है की आखिर राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ इस तरह के कार्यक्रम क्यों करता है; इस सवाल का सीधा सा जवाब है की राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के द्वारा किया जा रहा राष्ट्रव्यापी कार्य बहुत बड़े पैमाने पर चल और बढ़ रहा है और फिर इस बात को समझने की भी ज़रूरत है की संघ का कार्य और दायरा इतनी तेज़ी से कैसे फ़ेल रहा है, गौर करने की बात है।

श्री मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में यह भी कहा की राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की महत्वकांक्षा केवल संख्या और आकार में बढ़ने की नहीं है बल्कि हमारा लक्ष्य उससे कई बड़ा है और वह यह की हम भारत को अपने पुराने विराट और गौरवशाली रूप में पुनः देखना चाहते है। उन्होने जूलियस सीज़र का उल्लेख करते हुए आगे कहा की जूलियस आया, और लोगों पर फतह कर कब्जा कर लिया पर उसके आगे की कहानी का क्या, इसका कोई जवाब नहीं मिलता। परंतु दूसरी ओर हमारे समक्ष भगवान राम जी की जीवनी है; उनका जीवन ऐसे तरीके या शब्दों से नहीं बंधा है, बल्कि कई गुना श्रेष्ठ है। जब जीवन को जीने के लिए आवश्यक आदर्श और उसूलों की बात की जाती है तब भगवान राम का जीवन दिखाई पड़ता है। संघ की भी कहानी कुछ इसी तरह की है। यह संस्था खुद के लिए या खुद के स्वार्थ के लिए काम नहीं करती, यह तो केवल राष्ट्र को महान और सर्वश्रेष्ठ बनते देखने की इच्छुक है।

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 श्री मोहनजी ने एक छोटा सा उदाहरण देते हुए कहा की अब राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के लाखों करसेवकों द्वारा पढे जाने वाले प्रार्थना को ही देख लें; इस प्रार्थना में आरएसएस शब्द का एक बार भी ज़िक्र नहीं होता बल्कि हम सब की रोजाना यही प्रार्थना होती है की, “हे परमात्मा, आपके आशीर्वाद और हम सबके द्वारा किया जानेवाला संगठनात्मक तरीके से सामाजिक कार्य सफल हो तथा इस राष्ट्र को पुनः वही गौरवशाली स्थान मिले जो पहले था”।

संघ प्रमुख ने डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर और सर मानवेंद्र रॉय जी द्वारा किए गए उल्लेख का वर्णन करते हुए कहा की सभी मनुष्यों को अपने अंदर राष्ट्रवाद का अलख जगाना चाहिए। उन्होने यह भी कहा की आखिर इतने सालों के बाद और इतने सरकारों के शासन के बाद भी आज क्यों सरकार को साफ-सफाई के लिए याचना और जागरूकता अभियान चलाना पड़ता है। उन्होने पहले सरसंघचालक डॉक्टर हेडगेवार को याद करते हुए कहा की किस तरह से उन्होने पूरे समाज को हिन्दू सभ्यता और संस्कृति के अंतर्गत एक साथ पिरोने और जोड़ने की परिकल्पना की थी। एक सीधी, सरल और समान विचारधारा है “सब को अपनाना”। सारी दुनिया सहनशीलता की बात करती है जबकि हिन्दू संस्कृति ‘सबको अपनाने’ की बात करती है।

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 श्री मोहनजी ने टिप्पणी करते हुए कहा की हिन्दू सभ्यता सबको एक साथ लेकर चलने में भरोसा करती है और यह हजारों सालों से होता रहा है। महान आत्माएं जिन्होंने इस हिन्दू राष्ट्र की अखंडता के लिए अपना बलिदान दिया, वही हमारे पूजनीय पूर्वज है। उन्होने सभी देशवासियों से पुनः उसी सांस्कृतिक पुरातन हिन्दू विचारधारा को अपने जीवन में नए सिरे से उतारने और जीने के लिए कहा।

 श्री मोहनजी ने ज़ोर देते हुए कड़े शब्दों में कहा की समाज में व्याप्त जातिवाद और जात-पात के हिसाब से अलग अलग पीने के स्रोतों, क्रियाकर्मों के तरीकों और पूजा पाठ के अलग अलग नियमों से ऊपर उठकर सामाजिक बुराइयों जैसे छुआछूत और जात-पात को खत्म करने का आवाहन किया।

अंत में श्री मोहन भागवत ने यह याद दिलाया की जब भारत अपने पुराने सर्वश्रेष्ठ एवं गौरवशाली रूप में था तब पूरे विश्व में शांति थी। इसीलिए राष्ट्रवादी विचारों के बढ़ने हेतु आरएसएस का बढ़ना आवश्यक है। उन्होने आरएसएस के कार्य को सही ढंग से देखने और इससे जुडने की बात भी कही।

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