श्रद्धेय नाना (श्री नारायणराव भंडारी)
आज प्रातः देहमुक्त हुए. 1936 से संघ के साथ जुड़े हुए और संघ के सहयात्री नाना ने अपने जीवन के कुछ श्रेष्ट वर्ष संघ प्रचारक के रूप में समर्पित किये और बाकि आजीवन यानि अक्षरशः आजीवन संघ कार्य किया।
संघ जीवन में उन्होंने अनेक लौकिक दायित्वों को स्वीकार उन्हें उत्तम रूप से पूर्ण भी किया। गृहस्थ के रूप में आपने पूरे परिवार को संघ के साथ जोड़ो और संघनिष्ठ बनाया।
गुजरात में अखिल भारतीय विधार्थी परिषद के आधारस्तंभो में एक नाना स्वभाव से एक सामान्य स्वयंसेवक थे। प्रत्येक परिचित को संघ कार्य से जोड़ने का अविरत प्रयत्न करते रहे.
उनका जीवन ही कार्यकर्त्ता का जीवंत उदाहरण बन गया। सदा अपने उत्साह व विचारों से वह चिरंतन युवा ही रहे , उनका जीवन सार्वजनिक जीवन में सबके लिये प्रेरक बन गया है।