महावीर चक्र से सम्मानित घातक प्लैटून के कमांडर कैप्टन नीकेजाको केंगुरुसे  (नींबू साहब)

बलिदान दिवस – 28 जून 1999

  • नागा फ़ौजी ने जब नंगे पांव पाक फ़ौज पर धावा बोला (Kargil War)
  • इंडियन आर्मी में थे नींबू साहब.
  • कारगिल में द्रास पर चढ़ना था. 16 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई, माइनस दस डिग्री का टेम्प्रेचर.
  • सबसे आगे नींबू साहब थे. वो जिस कबीले से आते थे, वहां युद्ध सिर्फ़ लड़ा नहीं जाता था. जीतने के बाद दुश्मन का सिर उतार कर ले आते थे.

नागालैंड की राजधानी कोहिमा से 22 किलोमीटर दूर उत्तर में एक गांव है नाम है नेरहेमा. नेरहेमा का हिंदी में मतलब होता है, “योद्धाओं का घर”. इस गांव में रहता था, नागा जनजाति का एक क़बीला. जो जाना जाता था हेड हंटिंग के लिए. हेड हंटिंग यानी जब भी लड़ाई होती, ये लोग दुश्मन को मार कर उसका सर उतार लाते थे. इसी गांव में साल 1974 में 15 जुलाई के रोज़ जन्मे नीकेजाको केंगुरुसे. घरवाले प्यार से नेंबु कहकर बुलाते थे.

उन्होंने सेकेंड राजपूताना राइफल्स जॉइन की. सब उन्हें नींबू कहकर बुलाने लगे. दोस्त नींबू कहते थे, तो उनके जूनियर, नींबू साहब. कारगिल की लड़ाई के दौरान कैप्टन नीकेजाको को घातक प्लैटून का कमांडर बनाया गया. 28 जून 1999 को कारगिल में आर्मी के सामने ऐसा ही एक मिशन आया. द्रास सेक्टर में लोन हिल नाम की पीक पर क़ब्ज़ा करना था. लेकिन रास्ते में पड़ती थी ब्लैक रॉक नाम की एक चट्टान, जिस पर से पाकिस्तानी आर्मी लगातार भारतीय सैनिकों पर गोलीबारी कर रही थी. इस पोस्ट को नष्ट करना ज़रूरी था.

इस काम की ज़िम्मेदारी घातक प्लैटून को दी गई. जवानों को लीड करते हुए कैप्टन नीकेजाको ऊपर की ओर बढ़े. हड्डियां जमा देने वाला मौसम और ऐसे में ऊपर से नीचे की ओर चलती दुश्मन की गोलियां. ऐसी ही एक गोली कैप्टन नीकेजाको के पेट में लगी. उनके पीछे चल रहे जवान ने पूछा, क्या हुआ नींबू साहब? नींबू साहब ने जवाब दिया, कुछ नहीं, बढ़ते रहो. कुछ देर में नींबू साहब और उनकी पलटन पाकिस्तानी पोस्ट के काफ़ी नज़दीक पहुंच गई. लेकिन अभी एक आख़िरी चढ़ाई बाक़ी थी. एक सीधी चट्टान जिस पर बिना रस्सियों के नहीं चढ़ा जा सकता था. रस्सी बांधने के लिए नींबू साहब ने चट्टान में एक क़ब्ज़ा फ़ंसाने की कोशिश की. लेकिन जब भी वो ऊपर चढ़ने की कोशिश करते, बर्फीली चट्टान में उनका पैर फिसल जाता.

माइनस 10 डिग्री पर जूता उतारा

चट्टान पर उनका जूता बार बार फिसल रहा था. कुछ सोचकर अचानक उन्होंने अपने जूते उतारने शुरू कर दिए. उनके साथी इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, नींबू साहब ने नंगे पैर चट्टान पर ऊपर चढ़ गए. ये सब हो रहा था 6 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई और माइनस दस डिग्री तापमान में. फिर भी कंधे पर RPG रॉकेट लांचर लिए नींबू साहब को किसी चीज़ की चिंता नहीं थी. वो खुद भी चट्टान पर चढ़े और अपने साथियों को भी चढ़ाया.

ऊपर चढ़ने के बाद नींबू साहब ने रॉकेट लांचर से फ़ायर किया और एक के बाद एक, सात पाकिस्तानी बंकरों को नष्ट कर दिया. जवाब में दूसरी तरफ़ से भी गोलियों की बारिश हुई. दो पाकिस्तानी फ़ौजी नींबू साहब की ओर बढ़े. उन्होंने अपना कमांडो नाइफ़ लिया और हैंड टू हैंड कॉम्बैट में दोनों को ढेर कर दिया. अपनी राइफ़ल से उन्होंने दो और पाकिस्तानी सैनिकों को निशाना बनाया. लेकिन इस दौरान खुद भी गोलियों से बच नहीं पाए. कुछ देर बाद नींबू साहब के साथियों ने पोस्ट को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. जीत की ख़ुशी में एक सिपाही ने देखा, नींबू साहब एक खाई में गिरे पड़े थे. जवानों की आंखो से आंसू गिरे और मुंह से ये आवाज़ निकली.

“ये आपकी जीत है नींबू साहब, ये आप की जीत है”

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