मा. सूर्यकृष्ण जी का जीवन कर्मठता का श्रेष्ठ एवं आदर्श उदाहरण है – भय्याजी जोशी

नई दिल्ली (इंविसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी ने संघ के वरिष्ठ प्रचारक सूर्यकृष्ण जी को दिल्ली स्थित संघ कार्यालय केशव कुंज में आयोजित श्रद्धान्जलि सभा में पुष्पांजलि अर्पित की. भय्याजी जोशी ने स्वर्गीय सूर्यकृष्ण जी का स्मरण करते हुए कहा कि ऐसे एक श्रेष्ठ व्यक्ति को हम श्रद्धान्जलि अर्पित करने के लिए एकत्र हैं, जिन्होंने अपनी कई काव्य पक्तियों को स्वयं जी कर अर्थ प्राप्त करा दिया है. पांच-छह वर्ष की आयु में संघ में प्रवेश उनका हुआ होगा, कोई समझदारी तो नहीं रही होगी उस समय. परन्तु एक 5-6 वर्ष की आयु में कोई बालक संघ में प्रवेश करता है और 82 की आयु पूरी करते-करते यहीं पर अपना जीवन समर्पित करता है, यह आज के व्यवहारिक जीवन के जगत में इतना आसान नहीं है.

सरकार्यवाह जी ने कहा कि संघ की प्रार्थना की पंक्तियों में अगर कहा गया होगा कि – ‘पतत्वेषकायो नमस्ते-नमस्ते.’ इस पंक्ति का अर्थ अगर समझना है तो मैं समझता हूं कि स्वर्गीय सूर्यकृष्ण जी का जीवन ही हमको समझना होगा. जीवन का प्रारम्भ हुआ होगा संघ जीवन में और जैसा अभी बताया गया है कि 1954 में प्रचारक बने. अगर उस कालखण्ड का हम स्मरण करते हैं तो बड़ा विचित्र कालखण्ड वो रहा है. किसी प्रकार के अनुकूल वातावरण में कोई किसी काम के लिए समर्पित होता है तो समझ सकते हैं, परन्तु वर्ष 54-55 का जो कालखण्ड है वो अत्यंत प्रतिकूल वातावरण था. तमाम जीवन में संघ को कटघरे में खड़ा कर दिया गया. महात्मा गांधी जी के हत्यारे के विषय को लेकर, समाज की ओर से उपेक्षा है. उस समय ऐसे जीवन में प्रचारक बनना, यानि अंगारों पर चलने से कुछ कम नहीं था. पर, जिन्होंने तन समर्पित मन समर्पित यह पंक्तियां जीवन में बार-बार सुनी होंगी, उन्हें इस प्रकार के अंगारों का भय मन के अंदर नहीं होता है. चल पड़े हैं, सब प्रकार के चढ़ावों-उतारों को संघ को देते हुए सब प्रकार की अपनी सारी शक्ति उन्होंने इस काम के लिए लगाई. हमने उस जीवन को आदर्श के रूप में जीते-जागते देखा है. शरीर दुर्बल हुआ होगा पर मन तो दुर्बल नहीं हुआ. शरीर की सब प्रकार की व्याधियों को मात करते हुए मन की उस शक्ति के साथ चलने वाला ऐसा पुरुषार्थी व्यक्तित्व अर्थात वो सूर्यकृष्ण जी हैं. वो विधि स्नातक तो नहीं बने, उनके नाम के किसी साहित्य कृति, साहित्य का निर्माण नहीं हुआ. पर, उस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को एक सही दिशा बताना यह तभी हो सकता है, जब व्यक्ति कहता है कि तन समर्पित, मन समर्पित. यह कहने वाला व्यक्ति, कहने वाला ही नहीं जिसको उन्होंने जीवन का अंग बनाया, वही व्यक्ति यह सब काम कर सकता है. जब मैं संघ के लिए समर्पित हूं तो जो संघ कहेगा, मैं करूंगा. यह कर्मठता का एक बहुत श्रेष्ठ उदाहरण है. इसलिए उनका जीवन कर्मठता का आदर्श उदाहरण हम सबके सामने है.

भय्याजी जोशी ने कहा कि आज समाज जीवन में अध्ययन करते-करते व्यक्ति के अपने-अपने विचार, स्वयं के विचार तैयार होते जाते हैं, परन्तु संघ जीवन में इस प्रकार के संस्कारों को, श्रेष्ठ संस्कारों को संक्रमित करते हुए व्यक्ति को अपने विचारों को भी छोड़कर जो देशहित के विचार हैं, उसको ही मैं स्वीकार करूंगा, तो एक वैचारिक समर्पण इतना आसान नहीं होता. अपना-मेरा विचार कुछ नहीं है, मेरा विचार वही है जो संघ का विचार है. बहुत बार व्यक्तिगत जीवन में व्यक्ति कहते हैं कि मेरी राय यह है, शायद उन्होंने मेरी राय शब्द का प्रयोग किसी बात को समझाने के लिए ही किया होगा. अपने अहंकार के रूप में नहीं. इस प्रकार की एक वैचारिक प्रतिबद्धता, आइडोलोजिकल कमिटमेंट उनके जीवन में दिखाई देती है, संगठन के प्रति पूर्ण समर्पण. अन्यथा साहित्य परिषद् जैसा काम जो कोई बहुत प्रसिद्धि के प्रकाश में आने वाला काम तो नहीं था, अधिवक्ता परिषद् के कार्य का मार्गदर्शन करना तो प्रसिद्धि के कई प्रकार से कोसों दूर रहने वाला काम है. ऐसे कार्य को खड़ा करना स्वीकार करते हुए, तन-मन से स्वीकार करते हुए, क्यों, क्योंकि संघ की योजना है कि मैं यह काम करूं, उस काम के लिए वो अपने आपको योग्य बनाते गये. इसको ही तन समर्पित-मन समर्पित कहा जा सकता है. मैं समझता हूं कि उनका जीवन हम सब लोगों ने बहुत निकट से देखा, जो कुछ उनके जीवन के पहलुओं को हम देख पाए, समझ पाए, उनके उस जीवन से प्रेरणा लेते हुए, आज अगर समाज जीवन में कुछ आवश्यकता है तो इस वैचारिक प्रतिबद्धता को लेकर और संगठन के प्रति समर्पण के भाव को लेकर अपने जीवन की रचना करने वाले लोग चाहिएं. मैं समझता हूं कि उस दृष्टि से स्वर्गीय सूर्यकृष्ण जी का जीवन हम सबके सामने एक श्रेष्ठ आदर्श के रूप में है. उनका स्मरण ही हमको भविष्य में इस मार्ग पर चलने के लिए आवश्यक बल भी प्रदान करेगा, प्रेरणा देता रहेगा. हम सब उनके निकटवर्ती हैं. हमारा उनका रिश्ता एक अभिन्न प्रकार का रिश्ता है, जिस रिश्ते को पारिभाषित नहीं किया जा सकता. इसलिए उनके जो एक परम्परागत, पारिवारिक सम्बन्ध में रहने वाले ऐसे उनके निकट के रिश्तेदार हैं. हम भी उनके निकट के रिश्तेदारों की श्रेणी में आते हैं. हम सबके अंतःकरण में आज उनकी अनुपस्थिति एक वेदना देने वाली अवश्य है. परन्तु वेदना पर मात करते हुए चलना, यही अगर उनके जीवन का संदेश है तो उसी को लेकर के हम चलें. उन्हें ईश्वर तो सद्गति देगा ही, शांति मिलेगी, क्योंकि एक तपस्वी जीवन जिनका रहा, उनके लिए ईश्वर की प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं. परन्तु हम दुर्बल हैं, इसलिए हम अपनी दुर्बलता को ध्यान में रखते हुए हम ईश्वर को प्रार्थना कर रहे हैं कि उन्हें सद्गति प्राप्त हो. हमारा पुर्नजन्म पर विश्वास है और मैं मानता हूं कि इस देश के अनेक महापुरुषों की एक परम्परा रही है कि जिन्होंने बार-बार इस भूमि पर जन्म लेने का संकल्प लेकर ही अपनी नश्वर देह को छोड़ा है. दो दिन पूर्व सूर्यकृष्ण जी भी इसी तरह की भावना को लेकर, फिर तरो-ताजा जीवन लेकर हम सबके मध्य उपस्थित रहेंगे, इस विश्वास के साथ, परन्तु आज गए हुए उस शरीर को हम सब प्रकार से श्रद्धान्जलि अर्पण कर रहे हैं. उस आत्मा को हम प्रार्थना कर रहे हैं कि पुनः हमारे बीच आए और हम सबको उस मार्ग पर चलने के लिए भविष्य की पीढ़ियों को भी प्रेरणा देते रहें. इस विश्वास के साथ और उनकी स्मृति को श्रद्धान्जलि अर्पण करते हुए और मैं समझता हूं कि हम सबके जीवन में, हम सबके स्मरण में वो सदा ही बने रहेंगे. इसी भाव को व्यक्त करते हुए मैं फिर एक बार उन्हें श्रद्धान्जलि अर्पण करता हूं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर क्षेत्र के संघचालक बजरंगल लाल गुप्त जी ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि माननीय सूर्यकृष्ण जी एक ऐसे भौगोलिक व्यक्ति थे, वे जिस काम में लगते थे, तो ऐसा लगता था कि उस क्षेत्र के हरेक विषय से उनका गहरा नाता-रिश्ता है. सूर्यकृष्ण जी मात्र 5 वर्ष की आयु में एक शिशु स्वयंसेवक के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गये थे और यौवन के पूषा काल में 20 वर्ष की अवस्था में संघ के प्रचारक हो गये थे. उनका बहुआयामी व्यक्तित्व था. अनेक प्रकार के प्रतिभाओं के धनी भी थे. एक सामान्य कार्यकर्ता संघ की योजना से किसी भी क्षेत्र में जा कर उसका गहराई से कैसे अध्ययन कर सकता है और उस क्षेत्र विशेष के संबंध में कैसा योग्य मार्गदर्शन कर सकता है? सूर्यकृष्ण जी से ये बात हमसब को सीखने को मिलती है. सूर्यकृष्ण जी को भिन्न-भिन्न मत-पंथ-संप्रदायों की और भारतीय धर्म-संस्कृति की जिस प्रकार से गहरी समझ थी. विरले ही कोई व्यक्ति ऐसे प्रतिभा का धनी होता है. दो-तीन अनुभव मेरे ध्यान में आ रहे हैं. जब वे 1985-87 में भाजपा के हरियाणा के संगठन मंत्री हो करके आए थे. हरियाणा के राजनीति क्षेत्र में मात्र डेढ़ वर्ष में उन्होंने अपनी एक अमिट छाप छोड़ी थी.

उन्होंने सूर्यकृष्ण जी को याद करते हुए कहा कि वे स्वभावतः जनित कर्म कठोर थे, करतंत्र कठोर थे और भाव कठोर भी थे. वहीं वे मन के निर्मल एवं मधुर भी थे. ऐसे व्यक्तित्व के वे धनी थे. वे डॉक्यूमेंट बनाने के लिए बड़ी बारीकी से विचार करते थे और परमात्मा ने तो उनके दिमाग में कंप्यूटर ही फीड कर रखा था. उनका दिमाग सूचनाओं का भंडार था तो ज्ञान का अथाह सागर भी था. वे चलता-फिरता अभिलेखागार थे. किसी भी विषय को इतनी करीब से और सन्दर्भ सहित जानकारी उनको मुंह जुबानी याद रहती थी. व्यक्ति जिन्दा कैसे रहता है, इसका महत्व है. व्यक्ति मृत्यु कैसे प्राप्त करता है, उससे भी ज्यादा महत्व है. गीता के अनुसार – ‘ये शरीर कपड़े के समान है.’ जब कपड़ा जीर्ण-क्षीण हो जाए तो बदल देना चाहिए. अपने यहां परंपरा में आत्मा के संबंध में भी ऐसा ही कहा गया है – जब शरीर का काम पूरा हो जाये तो शरीर का चोला बदल देना चाहिए. सूर्यकृष्ण जी ने जिस प्रकार से देह त्याग किया. सचमुच में उन्होंने गीता के उस श्लोक को चरित्रार्थ किया है. वे हम लोगों के लिए अत्यंत प्रेरणा के स्रोत थे.

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल जी ने सूर्यकृष्ण जी को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनका जाना ऐसा लग रहा है कि हम सबके सर से किसी संरक्षक का हाथ हट गया है. दिल्ली के संघचालक कुलभूषण आहूजा जी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर बताया कि उनके मार्गदर्शन में दिल्ली के मंडोली में वेद विद्यालय की स्थापना हुई. उन्होंने कई वर्ष तक श्री बद्रीभगत मंदिर के न्यासी के रूप में अपना मार्गदर्शन दिया.

गोवा की महामहिम राज्यपाल मृदुला सिन्हा जी, दिल्ली प्रान्त के सहसंघचालक व दधीचि देह दान समिति के संस्थापक आलोक कुमार जी, साहित्य परिषद् की अखिल भारतीय मंत्री रीता सिंह, संगठन मंत्री जगदीप राय, एवं स्वर्गीय सूर्यकृष्ण जी के भतीजे अशोक जी (ज्येष्ठ भाई के ज्येष्ठ पुत्र) ने सूर्यकृष्ण जी के साथ के अपने-अपने संस्मरण साझा किये. श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले महानुभावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी, सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य जी, अखिल भारतीय कार्यकारणी सदस्य इन्द्रेश कुमार जी, अशोक बेरी जी, कार्यालय प्रमुख गोपाल आर्य जी, उत्तर क्षेत्र प्रचारक प्रेम कुमार जी, प्रेम जी गोयल सहित अन्य सम्मिलित थे.

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