वनवासी देश की सम्पति है – श्री हर्षजी चौहान

अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम, गुजरात द्वारा जनजाति समाज पर तैयार किये गए  “जनजाति नीति दृष्टी पत्र” का दि. 8 मई, रविवार को कर्णावती महानगर मे आयोजित एक कार्यक्रम में गुजरात राज्य के आदिजाति विकास मंत्री श्री मंगुभाई पटेल के वरद हस्तो से विमोचन किया गया.

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री हर्षजी चौहान( राष्ट्रिय कार्यकारिणी सदस्य, वनवासी कल्याण आश्रम) ने कहाँ कि कल्याण आश्रम द्वारा जनजाति के विकास का कार्य करते समय यह ध्यान मे आया कि जनजाति की वास्तविकता शासन पूर्णरूप मालूम नहीं है. जनजाति समाज की वास्तविकताओ को शासन व् समाज तक पहुचाने के उद्देश्य से जनजाति नीति दृष्टी पत्र (Vision Document for Janjati of India) में अनेक कार्यकर्ताओ के अथक परिश्रम से चलनेवाले इस कार्य के अनुभव को लिपिबद्ध किया गया है.  देश की राजधानी दिल्ही में राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम के साथ इस दृष्टिपत्र का विमोचन लोकार्पण हो चूका हे। देश के सभी राज्यो के मुख्यालयो पर इस दृष्टिपत्र के विमोचन का आयोजन होना है। इस श्रृंखला में आज गुजरात प्रदेश मे इसका विमोचन किया गया. यह दस्तावेज दो भागो मे है पहला इसका शासन/प्रशासन का तथा दूसरा जनजाति के विकास से संबंधित है.

अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम 1952 से निरंतर जनजाति समाज के सर्वांगिण विकास हेतु कार्यरत हे, संपूर्ण देश में 20,000 से अधिक सेवा कार्य के माध्यम से जनजाति परंपरा और पहचान को अक्षुण्ण रखने हेतु प्रयत्नशील है. इस प्रकार का दृष्टिपत्र सामाजिक संस्था के नाते अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने भारत मे सर्व प्रथम बार प्रस्तुत किया हे। इससे पहेले इस प्रकार का प्रयास किसी के द्वारा नहीं किया गया.

विश्व के सभी भागो मे वनवासियो पर अत्याचार हुए लेकिन भारत मे ऐसा नहीं हुआ क्योकि हमारे देश मे कभी भी जनजाति समाज को अलग नहीं माना गया उसे समाज का ही एक अंग माना गया. संविधान निर्माताओ ने भी जनजाति के हितो को ध्यान मे रखकर बहुत अच्छे प्रावधान किये है. लेकिन इसके बाद भी जिस गति से जनजाति के समाज के बीच कार्य होना चाहिए वह नहीं हो सका. नीतियाँ जरुर बनी लेकिन क्रियावन संतोषकारक रूप से नहीं हुआ.

वन और जनजाति का अटूट साथ है वनों की पहचान ही टाइगर (Tiger) और ट्राइबल (Tribal) है. चाणक्य ने भी सीमांचल के वनवासियो को देश का प्रहरी बताया है. हमारे राजाओ ने भी कभी जनजातियो के क्षेत्र मे दखल नहीं दिया. लेकिन Forest Act आने के बाद इस समाज को अनावश्यक रूप से परेशान किया गया यहाँ तक कि इनको अपराधिक समाज घोषित करने का प्रयास भी अंग्रेजो द्वारा हुआ.

इस संदर्भ मे देखा जाए तो नया वनाधिकार कानून काफी अच्छा है. हमने इस जनजाति नीति दृष्टी पत्र मे वनवासी समाज के बीच कार्य करते करते ध्यान मे आई उनकी समस्याओ और उनके उचित समाधान के विषय मे जानकारी दी है यह नितिपत्र शासन/प्रशासन और समाज के लिए उपयोगी रहेगा ऐसी हमारी श्रधा है. वनवासी देश की सम्पति है सिर्फ सही दृष्टी से देखने के प्रयास की आवश्यकता है.

कार्यक्रम के प्रारंभ मे श्री भगवान सहायजी (क्षेत्र संगठन मंत्री, वनवासी कल्याण आश्रम) द्वारा प्रस्तावना राखी गई. इस अवसर पर श्री मुकेशभाई मलकान (मा. संघचालक, रा.स्व.संघ, गुजरात प्रांत) डॉ. हर्षदभाई भट्ट (गुजरात प्रांत अध्यक्ष, वनवासी कल्याण आश्रम), श्री बिपिनभाई पटेल, श्री गौरांगभाई भगत, श्री नरेशभाई शर्मा सहित अनेक महानुभव उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन श्री अपूर्वभाई शास्त्री (उपाध्यक्ष, कर्णावती महानगर ) ने किया.

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