विकास के लिये आध्यात्मिक दृष्टिकोण होना जरूरी : प्रो बजरंग लाल गुप्त

मेरठ (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र संघचालक प्रो  बजरंग लाल गुप्त ने कहा कि अतीत का गौरव, वर्तमान की यथार्थवादी आंकलन और भविष्य की महत्वाकांक्षा को संजो कर ही देश का विकास किया जा सकता है. यही पंडित दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन का मूल है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘‘ एकात्म मानव दर्शन’’ के 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के बृहस्पति भवन में संगोष्ठी का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र संघचालक (उत्तर क्षेत्र) एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो बजरंग लाल गुप्त ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को वर्तमान स्थिति में सार्थक बताते हुए कहा कि आज हमारे देश में तंत्र और नीतियों पर पश्चिम सभ्यता का असर है, जो एक खण्डित एकात्म मानव और यांत्रिक सृष्टि के रूप में दिखाई पड़ता है. जबकि विकास के लिये इस दृष्टि को आध्यात्मिक होना चाहिये. पंडित दीनदयाल ने इसको आंतरिक आध्यात्मिक विश्व दृष्टि के रूप में देखा है.

राजनीतिक तंत्र के बारे में शासन और शासक को सफल होने के लिये उन्होंने कुछ प्रभावी गुण भी बताये हैं, जिसे उन्होंने मृदु दंड शासन के रूप में परिभाषित किया है. जिसमें यह बताया गया है कि पारदर्शी, जिम्मेदार और जवाबदेह शासक लोकतंत्र के लिये आवश्यक है. उन्होंने अपने दर्शन में अर्थशास्त्र के लिये स्वदेशी, स्वावलम्बी और विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था को देश के लिये जरूरी बताते हुए प्रौद्योगिकी को देश की परिस्थतियों के अनुसार कार्य करना चाहिये.

उन्होंने आर्थिक विकास के लिये तीन और महत्वपूर्ण स्थितियों को अर्थायाम के रूप में परिभाषित करते हुए इसके लिये उत्पादन में वृ़द्धि, उपभोग में संयम और वितरण में समानता की बात कही. प्रो. बजरंग लाल ने कहा कि जिस प्रकार से  क्षेत्रीय वनस्पतियां उस क्षेत्र विशेष की तमाम बीमारियों का इलाज करने में सहायक होती हैं, उसी प्रकार उस क्षेत्र की अन्य समस्याओं का निराकरण भी वहां की आवश्यकताओं और परिस्थतियों के अनुसार ही होना चाहिए. इससे पूर्व अतिथियों का परिचय विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के उपप्राचार्य डॉ वीके मल्होत्रा ने कराया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख अजय मित्तल ने विश्व संवाद केन्द्र के कार्यों को विस्तार से बताया.

योगाचार्य स्वामी कर्मवीर ने कहा कि जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिये भौतिक और अभौतिक धाराएं जरूरी हैं. अध्यात्म व्यक्ति को चरित्रवान बनने की प्रेरणा देता है. वेद जीने की कला सिखाता है. योग व्यक्ति के जीवन में शान्ति और संतुलन लाता है. उन्होंने व्यक्तित्व विकास के लिये स्वाध्याय को आवश्यक बताया. कुलपति विक्रम चंद्र गोयल ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि सार्थक जीवन के लिये पारस्परिकता आवश्यक है. समाजों के बीच समन्वय खुशहाली लाती है. सभी लोग एक दूसरे पर निर्भर होते हैं. आज हमारे देश में मूल्यों की                                                                                                  कमी नहीं है, जरूरत इस बात की है कि हम इन मूल्यों को समझें और विदेशी सभ्यता से बचें.

इस अवसर पर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रवक्ता और कार्यक्रम संयोजक डॉ प्रशांत कुमार द्वारा लिखित पुस्तक ’भारत में रेडियो प्रसारण’ का विमोचन हुआ. विश्व संवाद केन्द्र न्यास के अध्यक्ष आनंद प्रकाश अग्रवाल ने इस अवसर पर सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम में सह क्षेत्र प्रचारक प्रमुख जगदीश, प्रांत संघचालक सूर्यप्रकाश टोंक, सहित अन्य मजूद थे.

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