नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (इंविसंके) । राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख जी की 99 वीं जयंती के अवसर पर एकात्म मानवदर्शन में स्वावलंबन विषय पर दीनदयाल शोध संस्थान नई दिल्ली में व्याख्यान गोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर पर प्रख्यात चित्रकार सरदार आर.एम. सिंह द्वारा निर्मित नानाजी के तैल-चित्र का अनावरण हरियाणा के राज्यपाल श्री कप्तान सिंह सोलंकी जी ने किया। स्वदेशी चिंतक एवं भाजपा महासचिव श्री पी. मुरलीधर राव ने विशिष्ट वक्ता के नाते एकात्म मानवदर्शन में स्वावलंबन विषय पर अपना व्याख्यान दिया। इससे पूर्व लोकसभा टीवी चैनल द्वारा निर्मित पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी पर बनाया गया वृत्तचित्र गोष्ठी में बड़ी संख्या में आए विद्वतजनों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। दीनदयाल शोध संस्थान के महासचिव श्री अतुल जैन ने कार्यक्रम की प्रस्तावना तथा मंच संचालन किया।
श्री पी. मुरलीधर राव ने स्वावलम्बन की दृष्टि से अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने अवगत कराया कि सम्पूर्ण विश्व में उपजाऊ जमीन अधिक होने वाला अगर कोई देश है तो वो भारत है। 190 मिलियन हैक्टर की कल्टीवेटेड लैंड है यहां। रूस, अमेरिका , चीन , ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया भारत से क्षेत्रफल में बड़े है। वो देश बड़े हो सकते हैं वहां भूखंड बड़ा है लेकिन जिस देश में उपजाऊ जमीन सबसे ज्यादा है, वो भारत है, भारत में सबसे ज्यादा 190 मिलियन हैक्टर उपजाऊ कृषि भूमि है। अमेरिका में यह भूमि 177 मिलियन हैक्टर है , उसके बाद चीन है जिसकी 124 मिलियन हैक्टर है , रूस की 123 मिलियन हैक्टर है , आस्ट्रेलिया की 56 मिलियन हैक्टर है , ब्राजील की 53 मिलियन हैक्टर है। सबसे ज्यादा उपजाऊ भूमि होने के बावजूद पूरे विश्व में अन्नपूर्णा के नाते जाने जाने वाला देश भारत में कई वर्षों से अनाज-दालों का विदेशों से आयात हो रहा है। भारत दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता राष्ट्र है, अगर हम लगातार इसका आयात करेंगे, हमारी आत्मनिर्भरता, हमारा स्वावलम्बन तो खतरे में रहेगा ही, लेकिन उससे भी ज्यादा खतरा है पूरे विश्व मानव के लिए, क्योंकि इतनी बड़ी आबादी अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जब खरीदने लगती है तब बाजार के भाव बहुत बढ़ जाते हैं। दालों की कीमतें वैश्विक बाजार में अगर नियंत्रित रखनी हैं तो भारत को दालों का उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा। उसी प्रकार खाद्य तेल का विषय है , आज हम सबसे अधिक खाद्य तेल आयातक बन गए हैं। यह नहीं चलने वाला तो यह दूसरा एक महत्वपूर्ण बिन्दू है। स्वावलम्बन के विषय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खेती के स्वावलम्बन को हम सुनिश्चित करेंगे तो स्वभाविक रूप से हमारी विश्व के बाजारो पर निर्भरता कम होगी।
उन्होंने कहा कि आज दीनदयाल जी के विचार पर चलना है, स्वावलम्बन को आगे बढ़ाना है तो स्वयंसेवी सैक्टर लघु उद्योगों को प्राथमिकता देनी होगी। स्वरोजगार और सम्पूर्ण रोजगार की दिशा में जाना है तो हम इस देश के छोटे उद्यमों को , ग्रामीण उद्यमों को छोड़कर नहीं सोच सकते। उसी प्रकार खेती की जो समस्या है उसको समाप्त करना है। चित्रकूट के प्रयोगों से सीख सकते हैं। छोटी खेती आमदानी देने वाली हो सकती है। ऐसा चित्रकूट में हो सकता है तो पूरे देश में क्यों नहीं हो सकता। फिर से स्वावलम्बन की खेती प्रारम्भ हो। तीसरी एक महत्वपूर्ण बात स्वावलम्बन के विषय में सम्पूर्ण रोजगार देना एक चुनौती है। इसके लिए लघु उद्योगों को महत्व देने के साथ भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना पड़ेगा। विश्व के अन्दर मैन्युफैक्चरिंग हब भारत नहीं बनेगा तो न देश का स्वावलम्बन सुनिश्चित कर सकते हैं , न देश के हर हाथ को काम दे सकते हैं और न विश्व के लिए हम कुछ उदाहरण बन सकते हैं।
आज इलेक्ट्रॉनिक इम्पोर्ट हमारे पैट्रोलियम इम्पोर्ट की प्रतिस्पर्धा में है। पैट्रोल तो हम आयात कर सकते हैं यह समझ में आता है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक इम्पोर्ट ? यह हमारे लिए वर्जित होना चाहिए। हमारे पास पुरुषार्थ है , हमारे पास शिक्षित लोगों की बड़ी संख्या है और हमारे पास इसके लिए आवश्यक उद्यमिता के गुण हैं। इसलिए हम जल्दी इसमें कुछ करें अब इसको मेक इन इंडिया कहो , लेकिन हमे आने वाले दिनों में मैन्यूफैक्चरिंग हब इस देश में बनाना है। दीनदयाल जी के सपनों का , नानाजी के विचारों का , स्वावलम्बन को इससे सुनिश्चित करना है। दीनदयाल जी के सुरक्षा की दृष्टि से दिए गए विचारों को बताते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए भी स्वावलम्बन सर्वोपरि है। विश्व को इतनी बार समाप्त करने वाले अणु बम अमेरिका के पास हैं , रूस के पास हैं लेकिन कोई युद्ध नहीं हुआ। पंडित जी ने अणु बम के विषय में तब यह बताया था लेकिन भारत में कई वर्षों बाद बना। इसी परिप्रेक्ष में श्री राव ने बताया कि 125 करोड़ की आबादी का इतना बड़ा देश , जिसकी सुरक्षा की परिभाषा बदल चुकी है। आज हमारी सुरक्षा , हमारे निवेश की सुरक्षा है , हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के सदस्य बनना चाहते हैं। लेकिन आज हम अपने सैनिकों के स्लीपिंग बैग इम्पोर्ट कर रहे हैं , उनके जूते , पिस्तोल , रायफल इम्पोर्ट करते हैं। ऐसा देश विश्व को कैसे चलाएगा। तो ऐसे में 48 बिलियन डालर हर वर्ष हम डिफेंस का सामान विदेशों से खरीद कर सबसे बड़े डिफेन्स सामान के इम्पोर्टर हम बन गए हैं। यह स्वावलम्बन का उदाहरण नहीं हो सकता।
उन्होंने बताया कि यहाँ सुरक्षा का विषय दोनों अर्थों में है , यह हमें आर्थिक दृष्टि से भी अवसर प्रदान कर सकता है , देश की सुरक्षा के सामान का इतना बड़ा उत्पादन अगर इस देश में होना आरम्भ हो जाए तो हमारा बाजार हमारे लिए हो जाएगा । लेकिन इस समय हमारे बाजार अमेरिका के लिए , चीन के लिए हैं यह नहीं होना चाहिए। तो ऐसे में रक्षा क्षेत्र में स्वावलम्बन जरूरी है। स्वावलम्बन के विषय में गांधी जी , दीनदयाल जी और नानाजी की जो कल्पना है वह है विकेन्द्रित स्वावलम्बन। व्यक्ति से परिवार से समूह से समाज के सम्पूर्ण स्वावलम्बन को हर स्तर पर सुनिश्चित किया जाए तभी हर हाथ को स्थाई रूप से काम मिलेगा। कुछ दिनों-घंटों कि लिए नहीं स्थाई रूप से काम मिलेगा। इससे व्यक्ति का विकास आरम्भ होगा और वो स्थाई विकास होगा , फिर से हजार सालों तक विश्व गुरु बने रहने लायक व्यवस्थाओं की सुनिश्चितता करने में सम्भव है। पंडित जी के एकात्म मानववाद के प्रस्तुतिकरण का पचासवां वर्ष है , दीनदयाल उपाध्याय जी का सौवां वर्ष है , नानाजी ने स्वर्ग जाने से पहले इतने साल तपस्या की है उसका निचोड़ जो व्यवहारिक व्यक्तियों के लिए देना आवश्यक है वह है विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था और स्वावलम्बन इन दोनों को उन्होंने कड़ी माना इसलिए स्वावलम्बन के लिए एक जीवंत उदाहरण खड़ा कर के गए वो। पंडित जी के वाक्यों को समझना है , तत्व को समझना है और जीवंत रूप से यह व्यवहारिक है और होगा ऐसा समझना है तो उसको चित्रकूट जाकर देख सकते हैं।
श्री पी. मुरलीधर राव ने बताया कि स्वदेशी आंदोलन में जो संवाद करना चाहिए , उसमें नानाजी को मार्गदर्शक मानते हुए स्वभाविक रूप से उनसे प्रत्यक्ष मिलना , संवाद करना और कई पहलुओं पर चर्चा करने का मौका दिल्ली में मिला। एकात्म मानवदर्शन को प्रस्तुत करने वाले स्वर्गीय दीनदयाल जी के इस दर्शन का दलगत राजनीति से विमुख होकर, इस लोकतंत्रीय राजनीति और उसके साथ स्वदेशी और स्वावलम्बन के माध्यम से इस देश में एक व्यवहारिक स्वरूप खड़ा करना चाहिए। उन्होंने बताया कि एकात्म मानववाद भारत के साहित्य से विस्मृत नहीं हुआ है। भारतीय समाज में इतने आक्रमणों के बाद , उनसे उत्पन्न समस्याओं के बाद , ज्ञान के केंद्र ध्वस्त होने के बाद भी अपनी परम्परा में कई ऐसी इसकी कड़ी हैं जो जीवंत हैं। स्वावलम्बन और स्वदेशी की दृष्टि से जो मानववाद के अलग-अलग पहलू हैं , वो सब इस देश में जीवंत हैं। ऐसा नहीं है कि सब समाप्त हो गए हैं। आज भी कई जगह ऐसी मिसाल खड़ी हैं , पद्धतियां हैं। आज आवश्यकता उन्हें जोड़ कर, खड़ा कर के है युगानुकूल बनाने की है। इसके लिए एक व्यवहारिक मार्ग अपनाते हुए उनको जोड़कर इकट्ठा करने का काम अगर किसी शिल्पी ने किया है तो वो समाज शिल्पी हैं स्वर्गीय नानाजी देशमुख।
उन्होंने अपने व्याख्यान में बताया कि नानाजी ने चित्रकूट में दीनदयाल जी के एकात्म मानवदर्शन और आर्थिक चिंतत को व्यावहारिक जीवन में साकार करने के लिए में स्वावलम्बन को केन्द्रीय कड़ी बनाया। उन्होंने कहा कि एकात्म मानवदर्शन के सारे तत्वों का साकार रूप स्वावलम्बन है। व्यक्ति के स्वावलम्बन से परिवार का स्वावलम्बन , समूह या समाज का स्वावलम्बन , राष्ट्र का स्वावलम्बन फिर उसके आधार पर सम्पूर्ण मानवता का स्वावलम्बन होना चाहिये। यह एक-दूसरे के विरुद्ध या अलग रखने वाली कड़ी नहीं है और इसमें एक-दूसरे के साथ कोई संघर्ष नहीं है। यह एकात्म की दिशा है और यह एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के स्वावलम्बन के लिए दूसरा सहयोगी है। इस तरह की बात को इस जीवन और समाजिक व्यवस्था में कैसे जीवंत बनाना और युगानुकूल बनाना, इस तरीके से नानाजी ने प्रतिरूप देने का जो कार्य है वही दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से कई जगह प्रयोग किए , लेकिन सम्पूर्ण विश्व में जो जानने लायक प्रयोग है वो चित्रकूट है।
श्री मुरलीधर राव ने वर्तमान में किये जाने वाले आंदोलनों पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि नानाजी ने स्वदेशी आंदोलन को सड़क पर नहीं लाये। इसके बजाए उन्होंने लम्बे समय तक एक अनुकरणीय उदाहरण चित्रकूट में स्वदेशी और स्वावलम्बन की प्रयोग भूमि बना कर खड़ा किया। उन्होंने बताया कि मनुष्य के चार पुरुषार्थ धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष में से अर्थ सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस दृष्टि से पंडित दीनदयाल जी ने अर्थ का बहुत विस्तृत विश्लेषण किया। अर्थ के अभाव में व्यक्ति क्या कर सकता है। अर्थ का जब अभाव होता है तो क्षति किसकी होती है। अर्थ की अभाव की भी स्थिति होती है और अर्थ के प्रभाव की भी स्थिति होती है। अर्थ अधिक होने के कारण व्यक्ति उसके प्रभाव में आ जाता है तो उसके जीवन में अर्थ के सिवा और कोई उद्देश्य , कर्मों की प्रेरणा नहीं रहती। श्री राव ने स्वावलंबन पर बोलते हुए कहा कि सबसे महत्वपूर्ण है कि हर व्यक्ति को काम मिलना चाहिए , कर्म विहीन स्वावलम्बन की कोई कल्पना नहीं है। देश के नीतिकारों, सरकार चलाने वाले नेताओं और समाजसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं का लक्ष्य होना चाहिए कि सम्पूर्ण रोजगार हो। हर हाथ को काम मिलना सुनिश्चित करना चाहिए, इसमें श्रम बहत महत्वपूर्ण है। अर्थ की जब हम बात सोचते हैं तो इसमें श्रम विहीन और श्रम से विमुख होकर अर्थ की कोई कल्पना नहीं है। उन्होंने चिंता प्रकट कर कहा कि देश में पूर्ण रोजगार कब सम्भव होगा। आज जो रोजगार चल रहे हैं या लोगों को मिल रहे है उसमें पब्लिक सैक्टर और प्राइवेट सैक्टर जिसको हम कॉर्पोरेट सैक्टर कह सकते हैं या बड़े सैक्टर कह सकते हैं वो कुल मिलाकर केवल 7 प्रतिशत लोगों को रोजगार देते हैं। इतने लक्ष्य, योजनाएं बनाने के बाद भी 93 प्रतिशत आज भी जो जॉब्स हैं , जो रोजगार देते हैं तो वो अब भी ऐग्रीकल्चर और स्माल प्राइवेट सैक्टर देते हैं। तो ऐसे सैक्टर को हमें महत्व देना चाहिए। केवल कुछ चंद कारखाने खोलने से बड़े कॉर्पोरेट खोलने से , बड़े उत्पादन की मशीनें लगाने से, मशीनों के आधार पर खेती और मशीनों को आधार पर उत्पादन करने से यह स्वावलम्बन साकार नहीं होगा। आर्थिक और स्थाई स्वावलम्बन तथा विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए छोटे-छोटे लघु उद्योगों को भारत में प्रोत्साहन मिले, तभी हर हाथ को काम मिलेगा।
नानाजी के सन्दर्भ में बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था में जब हम स्वावलम्बन की बात कहते हैं तो देश में खेती केवल जमीनदारों जागीरदारों द्वारा नहीं होती। भारत छोटे किसानों का देश है , इसलिए छोटी खेतियों को लाभदायक खेती बनाना , उनके लिए वहीं पर आमदानी हो और उसके आधार पर वे स्वावलम्बी बनें। देश के आर्थिक स्वावलम्बन के लिए छोटे लघु उद्योगों के लिए जब हम सोचते हैं तो वो ग्रामीण स्वावलम्बन है। गांव अगर स्वावलम्बी होंगे तो देश की अर्थव्यवस्था स्वावलम्बी होगी। श्री मुरलीधर जे ने बताया कि नाना जी ने जो छोटी खेती है उसको लाभकारी कैसे बनाया जाए, देश की कृषि के लिए स्वावलम्बन हेतु चित्रकूट में इसका आधार बनाया। पंडित जी ने जो एकात्म मानववाद और आर्थिक नीति की दिशा में कहा उसका व्यवहारिक रूप नानाजी ने चित्रकूट में देने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि पंडित जी ने पंचवर्षीय योजनाओं का विरोध करते हुए लिखा कि बड़े कारखाने और बड़ी मशीनें व्यक्ति को विस्थापित करते हैं। पूंजी अगर हमारे पास कम है तो उस पूंजी के संदर्भ में हम विश्व के अन्य देश जहां पूंजी है, उन पर निर्भर होना पड़ता है। बाहरी पूंजी पर निर्भर होने से राष्ट्र की राजनीति में , राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में दूसरों के हस्तक्षेप को मानना पड़ेगा। यह स्वावलम्बन के खिलाफ जाता है। देश में उत्पादन अधिक होना चाहिए। लेकिन उत्पादन जो अधिक होना चाहिए वो अधिक हाथों से होना चाहिए और वही स्वावलम्बन का मेकर है। वो तभी सम्भव होता है जब उधर कृषि और इधर छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन मिले। स्वावलम्बन के क्षेत्र में स्थाई विकास तभी सम्भव होता है , जब वो स्वावलम्बन को सुनिश्चित करता है। प्रकृति का आवश्यकता से अधिक शोषण कर के इकट्ठा किया विकास स्थाई विकास नहीं होता। 1965 से पहले जो बातें चर्चित नहीं होती थीं वो यूएनओ से लेकर गांवों तक उस स्थाई विकास के अलग-अलग पहलू आज चर्चा में आ रहे हैं।
दीनदयाल जी के कृषि पर दिए विचार प्रकट कर उन्होंने बताया कि खेती ऐसी हो कि पांच हजार साल तक भी जिस भूमि पर खेती करते रहें तो भी उसकी उर्वरा शक्ति समाप्त न हो ऐसी खेती चाहिए। तो वो स्थाई विकास है। स्वावलम्बन और स्थाई विकास यह अलग नहीं हैं। समान वितरण के बगैर स्थाई स्वावलम्बन और स्थाई विकास यह सम्भव नहीं है। इसलिए अपरिमित उत्पादन , समान वितरण , और संयमित उपभोग। स्थाई स्वावलम्बन संयमित उपभोग के बिना सम्भव नहीं नहीं है। ट्रस्टीशिप के बगैर संयमित उपभोग सम्भव नहीं है। जितनी आवश्यकता है उतना ही लेना, मैं मालिक इन सब संसाधनों का हो सकता हूँ मगर मैं उसका ट्रस्टी हूं , इन संसाधनों का मैं ट्रस्टी हूं। ऐसे भावों के बगैर स्थाई विकास सम्भव नहीं है ।
उन्होंने कहा कि यूनिफार्मिटी के बारे में सोचने वाले कभी भी विश्व के स्वावलम्बन के पूरक नहीं हो सकते। अपना देश आर्थिक व्यवस्था में हजारों वर्ष तक विश्व में नम्बर एक रहा है , 1945 में अमेरिका विश्व की नम्बर एक आर्थिक शक्ति बना और 2015 तक आते-आते अमेरिका की आर्थिक व्यवस्था थकावट के संकेत दे रही है और आने वाले दिनों में लगता नहीं कि वो इससे उबर पाएंगे। स्वावलंबन के कारण ही हजारों वर्षों तक लगातार पूरे विश्व में एक कैप्टन या लीडर के नाते भारत की अर्थव्यवस्था रही। इस प्रकार की समृद्धि , इस प्रकार की कलाएं , इस प्रकार के साहित्य , इस तरह के ज्ञान के सारे विषय विकसित हुए हैं। यह सम्पूर्ण मानव की स्वावलम्बन की जो प्रवृति है और जिसके रहते विकास और अविष्कार होता है।
हरियाणा के माननीय राज्यपाल श्री कप्तान सिंह सोलंकी ने नानाजी को स्मरण करते हुए कहा कि आज नानाजी की 99 वीं जयंती है इसका मतलब जन्म शती उनकी आ ही गई। पंडित दीनदयाल जी की भी जन्मतिथि 25 सितम्बर 1916 है और अब 2016 भी आएगा , इसलिए उम्र के हिसाब से दोनों समकक्ष लगते हैं। विचार कितना महत्वपूर्ण होता है कि जिस व्यक्ति को नानाजी ने कानपुर में स्वयं स्वयंसेवक बनाया उस समय श्रद्धेय भाउराव देवरस जी वहां पर थे , लेकिन हम जानते हैं कि स्वयंसेवक बनने के लिए कोई न कोई सम्पर्क सूत्र रहता है। तो नानाजी सम्पर्क सूत्र थे। लेकिन यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ही हो सकता है कि कई बार गुरु चेला बन जाता है। श्रद्धेय नानाजी ने उन्हें जो विचार दिया उस विचार को क्रियान्वित करने में उन्होंने अपने जीवन का पूरा अंतिम हिस्सा तक लगा दिया।
स्वावलम्बन के लिए श्री कप्तान सिंह जी ने बताया कि व्यक्ति को एकात्म होना जरूरी है , जिस व्यक्ति का शरीर , मन , बुद्धि निष्काम नहीं है , जो इच्छाओं के वशीभूत है , आदतों के वशीभूत है वो व्यक्ति स्वावलम्बी हो ही नहीं सकता , वो हमेशा दूसरों पर निर्भर रहेगा। श्री कप्तान सिंह जी ने बताया कि एकात्म मानवदर्शन का जो यह विचार है यह वैकल्पिक विचार नहीं है , यह समाजवाद , पूँजीवाद भी नहीं है यह वास्तव में मानववाद का शाश्वत विचार है। उन्होंने बताया कि उस समय सब इज्म की बात करते थे तो दीनदयाल जी ने उन्हें कहा इज्म की ही बात करनी है तो एकात्म मानववाद की बात करो। मानवता की बात करो , वास्तव में तो यह एक दर्शन है। नानाजी के बारे में उन्होंने बताया कि वे लीडर , स्टेट्समैन और फांउडर तीनों थे इसलिए वो राष्ट्रऋषि थे। दीनदयाल जी का जो विचार था उसको क्रियात्मक मॉडल बनाने के लिए नानाजी ने चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय बनाया।