बैंगलूरू. कर्नाटक के महामहिम राज्यपाल वजूभाई आर वाला ने कहा कि शिक्षा में भारतीय मूल्यों को शामिल करने का प्रयास होता है तो कुछ लोग शिक्षा का भगवाकरण कहकर विरोध करते हैं. यदि यह वास्तव में शिक्षा का भगवाकरण है तो इसमें कुछ गलत नहीं है. राज्यपाल मंगलवार सुबह दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ अवसर पर देशभर से एकत्रित शिक्षाविदों को संबोधित कर रहे थे. संगोष्ठी का आयोजन दिशा चेरिटेबल ट्रस्ट तथा महारानी लक्ष्मी महिला महाविद्यालय मल्लेश्वरम के संयुक्त तत्वाधान में किया जा रहा है. संगोष्ठी का विषय उच्च शिक्षा में नैतिक मूल्यों का समावेश-युवा सशक्तिकरण का माध्यम रखा गया है.
राज्यपाल ने कहा कि वर्तमान समय में विद्यार्थी हर दिशा से जानकारी हासिल करता है, लेकिन मूल्यों की सीख कहां से लेगा. शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों का समावेश समय की आवश्यकता है, शिक्षा प्रणाली अभी केवल शिक्षा प्रदान करने और तकनीक की जानकारी प्रदान करने का ही कार्य कर रही है. शिक्षा में नैतिक मूल्यों के समावेश को कुछ लोग भगवाकरण कहना शुरू कर देते हैं. जबकि भारतीय संस्कृति ने सर्वे भवंतु सुखिन, कृणवंतो विश्वं आर्यं और वसुधैव कुटुंबकम का संदेश दिया है.
उन्होंने कहा कि युवाओं को ऐशो आराम पर समय और धन खर्च करने के स्थान पर चरित्र निर्माण की ओर ध्यान देना चाहिये. प्रसाधनों पर धन खर्च करने के बजाय महापुरुषों के जीवन और शिक्षाओं से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिये, जिन्होंने देश के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया.
वर्तमान समय में हम सभी को सत्यं वद, धर्मं चर को समझने तथा उस पर आचरण करने की आवश्यकता है. यानि सत्य बोलें, और अपना कार्य ईमानदारी के साथ करें. सादा जीवन उच्च विचार पर अम्ल वर्तमान समय की महति आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि गांधी जी ने सदा सादा जीवन जिया, लेकिन उनके विचार उच्च श्रेणी के थे. शिक्षा व्यक्ति में ऐसे गुणों का संचार करे कि वह सामाजिक जीवन में उच्च बने.
दिशा संस्था के अध्यक्ष प्रो एनवी रघुराम ने अध्यक्षीय भाषण दिया. उन्होंने कहा कि वर्तमान में पूरा विश्व नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिये भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है. रामकृष्ण मिशन विवेकानंद विवि कोलकत्ता के कुलपति स्वामी आत्मप्रियानंद जी महाराज ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया. संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं के साथ ही कर्नाटक व देशभर से 300 शिक्षाविद् उपस्थित थे.
नैतिक मूल्य सिखाए नहीं जाते, ग्रहण किये जाते हैं – रामकृष्ण राव
विद्या भारती के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष रामकृष्ण राव ने शिक्षा में सुधार पर बल देते कहा कि नैतिक मूल्य वह वस्तु है, जिसे ग्रहण किया जाता है, लेकिन सिखाया नहीं जा सकता. छात्र समुदाय केवल ग्राहक (ग्रहण करने वाला) नहीं होना चाहिये, बल्कि विचारशील होना चाहिये. अच्छे बुरे का विचार करने की क्षमता का निर्माण युवा पीढ़ी में होना चाहिये. आज युवा पीढ़ी यूजलैस (अनुपयोगी) नहीं, बल्कि यूज़ड लैस (कम उपयोग) है.
शिक्षा में शोधपरक पाठ्यचर्या की आवश्यकता है, प्रत्येक संस्थान को कम से कम 20 प्रतिशत पाठ्यचर्या को शोधपरक बनाना चाहिये. तथा इन्हें अनिवार्य किया जाना चाहिये. तकनीक मनुष्य की जरूरत है, हमने काफी कुछ ग्रहण भी किया है. लेकिन तकनीक जीवन में नैतिक मूल्यों का स्थान नहीं ले सकती. कक्षा में 50 प्रतिशत विषय पढ़ाया जाना चाहिये तथा शेष 50 प्रतिशत छात्र अभ्यास से सीखें.
उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्यों के समावेश में योग एक अच्छा साधन हो सकता है. किसी भी स्तर पर शिक्षा के साथ योग भी सिखाया जा सकता है. और इसे अनिवार्य भी बनाया जाना चाहिये. कक्षा में प्रशिक्षण के लिये भेजने से पूर्व अध्यापकों को भी अच्छी तरह प्रशिक्षित करना चाहिये.