“श्रधेय श्री गुरु गोविंद सिंह एक अतुल्य – अनुपमेय जीवन ” – डॉ. हरमहेन्द्र सिंह बेदी

दिनांक 21 फरवरी

माधव स्मृति न्यास, गुजरात द्वारा कर्णावती मे आयोजित श्री गुरूजी व्यख्यान माला के दुसरे दिन “श्रधेय श्री गुरु गोविंद सिंह एक अतुल्य – अनुपमेय जीवन ”  विषय पर उद्बोधन करते हुए डॉ. हरमहेन्द्र सिंह बेदी ( प्राध्यापक तथा अध्यक्ष, हिंदी विभाग, गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर, पंजाब ) ने कहाँ कि श्री गुरु गोविंद सिंह की स्मृति का मतलब है  एशिया के इतिहास पर दृष्टी डालना. एशिया के देशो के मन में आज़ादी पाने की इच्छा  श्री गुरु गोविंद सिंह द्वारा अनंतपुर साहिब में खालसा पंथ की सर्जना के साथ ही प्रारंभ हुई.

13 अप्रैल 1699 के दिन अनंतपुर साहिब में 1 लाख सिख एकत्र आये और मुग़लो की नींव हील गई. गुरु गोविंद सिंह इस देश को नई दिशा देने वाला व्यक्तित्व और बहुत बड़े स्वप्नदृष्टा थे. इसीलिए उनके लिए संत सिपाही, राष्ट्र नायक आदि कई विशेषण प्रयोग किये जाते है. गुरु गोविंद सिंह पंजाबी, हिंदी, संस्कृत, फारसी, बृज, अवधि आदि सात भाषाओँ के जानकार थे. उन्होंने बृज भाषा में कविता लिखी. अपनी आत्मकथा भी उन्होंने बृज भाषा में कविता स्वरूप में ही लिखी जो भारतीय साहित्य की प्रथम आत्मकथा मानी जाती है.

अपनी कृति जामसाहब में उन्होंने एकसाथ सात भाषाओँ का प्रयोग किया. इसके अलावा शस्त्र नाममाला में गुरु गोविंद सिंह ने 101 शस्त्रों के नाम दिए है साथ ही साथ प्रत्येक शस्त्र पर 4 छंद लिखे. जिनमे पहले छंद में शस्त्र का आकर प्रकार, दुसरे छंद में उसके प्रहार की क्षमता, तीसरे छंद में शस्त्र से बचाव का तरीका और चौथे छंद में शस्त्र से घायल के उपचार का विवरण मिलता है. गुरु गोविंद सिंह फारसी भाषा के बहुत अच्छे जानकर थे. अपने चारो पुत्रो के बलिदान के बाद उन्होंने औरंगजेब को फारसी में पत्र लिखा था जो जफ़रनामा के नाम से प्रसिद्ध है.

गुरु गोविंद सिंह ने उत्तर मध्य काल के साहित्य को नई दिशा दी. अनंतपुर साहिब में 52 कवि थे. कवि टहलन द्वारा अनुवादित अश्वमेघ यज्ञं की कृति आज भी उपलब्ध है. भारतीय संस्कृति के आधारभुत ग्रंथो का उन्होंने भारतीय भाषाओ में अनुवाद करा प्रजा को उपलब्ध कराया. वीररस के गुरु गोविंद सिंह एकमात्र कवि थे जिन्होंने युद्ध के अनुभव के आधार पर कवितायेँ लिखी.

गुरु तेगबहादुर के बलिदान का वर्णन सुनकर गुरु गोविंद सिंह ने प्रतिज्ञा करी कि में एक ऐसा खालसा पंथ बनायुंगा जो अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होगा. विदेशी लेखक एलन ने अपनी पुस्तक “ History of Asian Country”  में लिखा है कि 2 शख्सियत गुरु नानकदेव और गुरु गोविंदसिंह के कारण सिखों का इतिहास विश्व तक पंहुचा. गुरु गोविंद सिंह का संदेश हदों-सरहदों से बहुत आगे का है अगर दुनियां को प्रेम का गाँव बनाना है तो गुरु गोविंद सिंह के मार्ग पर चलने की आवश्यकता है. विवेकानंद जी ने लाहोर के अपने भाषण में कहाँ था कि “में आज उस भूमि पर आया हूँ जहाँ हमें गुरु गोविंद सिंह ने आज़ादी का सपना दिया था”. सिस्टर निवेदिता जी को अपने पत्रों में विविकानंद जी ने लिखा अगर भारतीय संस्कृति और सिख इतिहास जानना है तो गुरु गोविंद सिंह की वाणी पढो. भारतीय समाज में प्राण फूंकने का बहुत बड़ा कार्य गुरु गोविंद सिंह ने किया.

दक्षिण में जाकर उन्होंने आदि ग्रंथ गुरु ग्रंथसाहिब को गुरु की पदवी प्रदान कर एक नई परंपरा का प्रारंभ किया. आज जब पूरा विश्व गुरु गोविंद सिंह का 350वा प्रकाश पर्व मना रहा है. ऐसे अवसर पर यूनो (UNO) ने गुरु गोविंद सिंह की वाणी को 500 भाषाओ में अनुवाद कर पुरे विश्व में प्रसारित करने का सराहनीय कार्य किया है.

कार्यकम के प्रारंभ में श्री सुनील भाई बोरिसा ( सह संपर्क प्रमुख, रा.स्व.संघ, गुजरात) ने डॉ. हरमहेन्द्र सिंह बेदी का परिचय कराया. माधव स्मृति न्यास के न्यासी श्री वल्लभ भाई सांवलिया तथा श्री महेश भाई परीख इस अवसर पर मंच पर उपस्थित रहे. श्री भानु भाई चौहान ( सहकार्यवाह, रा.स्व.संघ, कर्णावती महानगर) ने कार्यक्रम के समापन में आभार विधि संपन्न की.

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