श्रीमद्भगवत गीता को आत्मसात करना ही जीवन है – सुरेश भैयाजी जोशी

कुरुक्षेत्र (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि गीता में प्रारंभ का शब्द धर्म है और अंतिम शब्द मर्म है. हम सब एक ही चैतन्य से निकले हैं, तो फिर संघर्ष क्यों ? गीता के इसी तत्व के आधार में विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत है, जो विश्व में शांति का आधार बनेगा. श्रीमद्भगवत गीता के तत्व को समझने वालों की संख्या पर्याप्त है, परंतु उसका अनुसरण करने वालों की संख्या बढ़ानी होगी. अतः गीता को आत्मसात करना ही जीवन है. उन्होंने कहा कि महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म इन दो शक्तियों के बीच का संघर्ष था. इसी युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना दायित्व बोध करवाने का काम किया है. आज पूरी दुनिया अर्जुन रूपी विशाद रोग से ग्रस्त है और उस रोग से मुक्ति का रास्ता कृष्ण उपचार यानि श्रीमद्भागवत गीता है. आज जिस तरह से दुनिया में निराशा व विषाद का माहौल है, ऐसे में श्रीमदभागवत गीता के तत्व ज्ञान की आवश्यकता है. गीता में मनुष्य के मन बुधि में से निराशा निकालने का सामर्थ्य है. श्रीमद्भागवतगीता विश्व का मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ है. भारत दुनिया में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाए, इसके लिए गीता को प्रत्येक व्यक्ति को अपने आचरण में अपनाना जरूरी है. श्रीमद्भागवत गीता हमें प्रेरणा देती है. एक आदर्श व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करती है. आत्मज्ञान पैदा करती है और एक दूसरे से जुड़़ना सिखाती है. इस सद्भाव व समरसता से ही हम दुनिया को सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और विश्व को एक मंच पर ला सकते है.

सरकार्यवाह कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में गीता जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि गीता प्रत्येक व्यक्ति को यह याद दिलाती है कि हमारा देश, समाज व राष्ट्र के प्रति धर्म क्या है. गीता कोई धार्मिक व पौराणिक ग्रंथ न होकर सार्वभौमिक, सर्वकालिक व सार्वत्रिक ग्रंथ है. दुनिया में शान्ति के प्रयासों के लिए मानव समूह को गीता के मार्ग पर चलना पड़ेगा. हमें अपने व्यक्तिगत जीवन में भी अहंकार व अपेक्षाओं से मुक्त होना होगा. अहंकार व अपेक्षाएं ही सभी समस्याओं की जड़ हैं. श्रीमद्भागवत गीता मानसिक विकृतियों को दूर करता है. भारत के पास क्षमताओं का अपार भंडार है. उन्होंने सभी से आह्वान किया कि वे सभी अपने जीवन में गीता को अपनाएं और उसे अपने आचरण में लाएं. जीवन को जीने का यही सबसे बेहतर तरीका है.

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आडिटोरियम हॉल में शुक्रवार संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग तथा संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान की ओर से आयोजित एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश व दुनियाभर से आए विद्वानों ने श्रीमद्भागवत गीता के सूत्रों की अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी, उर्दू व फारसी में व्याख्या की.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार जी ने कहा कि सम्मान व समरसता का रास्ता श्रीमद्भागवत गीता से निकलता है. गीता सभी प्रकार की चुनौतियों से निकलने का रास्ता दिखाती है. गीता ने दुनिया को आलौकित किया है. यह निर्विवाद, सर्वमान्य व लोक कल्याणकारी महान ग्रंथ है.

बीकानेर से आए स्वामी संवित सोमगिरी जी महाराज ने कुरुक्षेत्र की लोक संस्कृति को नमन करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत गीता की सार्वभौम प्रासंगिकता के विषय में हम तभी कुछ समझ सकते हैं, अगर हम एक शिष्य व शिशु का भाव जीवन में रखते हैं. कृष्ण को जानने के लिए व श्रीमद्भागवत गीता को समझने के लिए शास्त्र के प्रति श्रद्धा होना जरूरी है. गीता वेदों का सार है. गीता को समझने से पहले व्यक्ति के लिए यह जरूरी है कि उसकी भगवान के प्रति धारणा क्या है. गीता में जीवन का व्यवहारिक दर्शन है. श्रीमद्भागवत गीता ब्रह्म विद्या, योग विद्या व शास्त्र विद्या है. जीवन को समझने के लिए श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन जरूरी है. जीवन में कर्मयोग का संदेश सबसे महत्वपूर्ण है. कर्मयोग के लिए श्रीमद्भागवत गीता को आचरण में लाना जरूरी है.

राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान दिल्ली के मोहम्मद हनीफ खान शास्त्री ने कहा कि गीता से मेरा 40 वर्ष पुराना सम्बंध है. दुनिया में सभी को गीता पढ़नी चाहिए. इस्लाम को समझने के लिए भी गीता का अध्ययन जरूरी है. इस्लाम का अर्थ समर्पण व शान्ति है और इसका पूरा सार श्रीमद्भागवत गीता में है. दुनिया से आतंकवाद व उग्रवाद को खत्म करने के लिए श्रीमद्भागवत गीता को जीवन में अपनाने की जरूरत है.

संत आचार्य विवेकमुनि ने कहा कि गीता का ज्ञान 5151 वर्ष पूर्व जितना उपयोगी था, आज वह उससे ज्यादा प्रासंगिक व उपयोगी है. आज हर व्यक्ति का जीवन कुरुक्षेत्र बना हुआ है. जीवन में हताशा,निराशा व उदासी है. गीता विशाद से मुक्ति का रास्ता है. गीता हमें सर्वश्रेष्ठता की ओर ले जाती है. जीवन में कौशल को हासिल कर, आत्मजागृति पैदा कर ही हम खुद व समाज का कल्याण कर सकते हैं.

भूपेन्द्र सिंह महाराज ने कहा कि आज गीता का महत्व व उपयोगिता पहले से अधिक दिखाई पड़ रहा है. अब दुर्याधन व दुःशासनों की संख्या ज्यादा है. ऐसे में श्रीमद्भागवत गीता को अपनाकर हम जीवन मूल्यों को ओर मजबूत बना सकते हैं. आज दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ है जो मानव के लिए खतरा है. इन सभी समस्याओं का हल श्रीमद्भागवत गीता में है.

संगोष्ठी में राष्ट्रीय कवि गजेन्द्र सिंह चौहान ने बना लो गीता जीवन गीत व गंगा की कल-कल सीने में गाकर पूरे माहौल को गीतामय कर दिया. इस संगोष्ठी के निदेशक प्रो. ललित कुमार गौड़, संयोजक डॉ. सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने बताया कि संगोष्ठी के तहत सायंकालीन सत्र में श्रीगीता विचार तत्व सत्र व श्रीगीता पंडित परिषद का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर से  गीता मनीषियों ने भाग लिया.

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