श्री कैलाश सत्यार्थी – आलोक कुमार, सह प्रान्त संघचालक, दिल्ली

​हमें आज़ाद हुए लगभग 7 दशक होने जा रहे हैं। इस दौरान हमारे देश में बहुत बड़े-बड़े मुद्दे उठाए जाते रहे हैं, लेकिन जन्म लेने वाले बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति शायद ही कभी पूरा ध्यान दिया गया हो। मां के गर्भ में आने से लेकर जन्म लेने तक, और जन्म लेने के बाद भी, बच्चे का स्वास्थ्य कैसा है, वह कुपोषण का शिकार तो नहीं, यह सारी बातें हमारी चिन्ताओं के केन्द्र में कभी नहीं आ पाईं।

नोबेल विजेता श्री अमत्र्य सेन ने ‘द अनसर्टेन ग्लोरी’ नामक पुस्तक लिखी है। उन्होंने बताया है कि भारत में जन्म लेने वाले बच्चों में से 47 प्रतिशत कुपोषण के शिकार होते हैं। उनका वज़न कम होता है, कद छोटा रह जाता है और शरीर भी दुर्बल रहता है। आयरन, विटामिन और कैल्शियम की कमी के कारण कुछ शिशु अपनी आयु का पहला साल भी पूरा नहीं कर पाते। चीन में ऐसे बच्चों की संख्या 4 प्रतिशत ही है। कुपोषण की वजह से होने वाली बीमारियां, जैसे हड्डियों में टेढ़ापन, कमज़ोर नज़र, कमज़ोर स्मरणशक्ति आदि उनका पीछा नहीं छोड़तीं।
चेचक उन्मूलन के बाद भी हमारे देश में एक लाख से ज़्यादा बच्चे आज भी मीजि़ल्स मर जाते हैं। दुनिया में ऐसे बच्चों की संख्या 47 प्रतिशत है। बाल टीकाकरण कार्यक्रम में हम अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हैं। प्राइमरी हेल्थ सेन्टर्स में से बहुत से ऐसे हैं जहां नियमित बिजली, वज़न तोलने की मशीनों, टाॅयलेट्स और टेलीफोनों की सुविधा नहीं है।
विडम्बना यह है कि बच्चों को देश का भविष्य बताने और मानने वाले नेताओं के मैनीफेस्टोज़ में इनके लिए कोई जि़क्र नहीं रहता है, संसद के दोनों सदनों, राज्यों की विधानसभाओं में कभी-कभार ही इस विषय पर चर्चा की जाती है। देश का चैथा स्तम्भ कही जाने वाली मीडिया भी इस दिशा में बहुत जागरूक नहीं रही है। हाल के वर्षों में ज़रूर कुछ समाचार पत्रों ने बाल-कुपोषण पर चिन्ता जताई और इस ओर समाज व नेताओं का ध्यान खींचने की कोशिश है।
ऐसे में सन् 1980 के दशक में देश के भविष्य रूपी बच्चों को श्री कैलाश सत्यार्थी के रूप में एक ऐसा अभिभावक मिला, जिसके भीतर जागृत पितृत्व ने, न केवल ऐसे बच्चों की ओर भारतवासियों को जागरूक किया, बल्कि अपना कैरियर छोड़ कर, अपना पूरा जीवन उनके नाम लिख दिया। व्यवसाय से अध्यापक श्री सत्यार्थी ने बाल कुपोषण पर देश को शिक्षित करने के लिए कमर कस ली। बाल-श्रम के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले श्री सत्यार्थी ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के संस्थापक बने।
यह ठीक है कि नेशनल रूरल हेल्थ मिशन, इंटिग्रेटेड चाइल्ड डेवलेपमेन्ट स्कीम्स, आंगनबाडि़यों, आशा वर्कर्स, मिड-डे मील जैसी योजनाओं से हमने इन सभी समस्याओं से लड़ने का प्रयास किया है, लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
आज दुनिया श्री कैलाश सत्यार्थी को बाल-श्रम के खिलाफ खड़े होने वाले आंदोलनकारी के रूप में जानती है। उन्होंने बाल-श्रम के विरोध में कई आंदोलन किए। भारतीयों को शिक्षित किया। अनेक अंतर्राष्टीय संस्थाओं से जुड़े, अध्यक्षता की। उनके द्वारा संस्थापित ‘द ग्लोबल मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर’ एक ऐसा वैश्विक आंदोलन रहा, जिसने बच्चों के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक या सामाजिक विकास के नुकसान को रोकने में अहम् भूमिका निभाई। यह मार्च 17 जनवरी, 1998 से शुरू हुआ और इसने पूरे विश्व के हर कोने को छुआ। यह मार्च अंततः जेनेवा में आयोजित आईएलओ महासम्मेलन में प्रस्फुटित हुआ। बाल-श्रम के अत्यधिक नुकसानकारी स्वरूपों के खिलाफ मसौदा तैयार किया गया। और, अगले ही वर्ष जेनेवा में आयोजित आईएलओ महासम्मेलन में इस मसौदे पर एकमत से मोहर लगा दी गई।
श्री सत्यार्थी ऐसा व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने बाल-श्रम के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने के दौरान कई जानलेवा हमले भी बर्दाश्त किए। इससे उनका मनोबल और दृढ़ ही हुआ। बच्चों के हित, या कहें देश के भविष्य को सशक्त बनाने की दिशा में उन्होंने जो पहल की, उसके पीछे उनका सिर्फ पितृत्व-भाव था, चिन्ता थी। लेकिन, कहा जाता है कि जब कोई अकेला इंसान आगे कदम बढ़ाता है, धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगते हैं और कारवां बन जाता है। यही श्री कैलाश सत्यार्थी के साथ हुआ।
कहावत है ‘हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है’। लेकिन श्री कैलाश सत्यार्थी की सफलता में पीछे नहीं बल्कि कन्धे से कन्धा मिला कर उनके साथ चलती रहीं उनकी अर्धांगिनी श्रीमती सुमेधा सत्यार्थी। श्रीमती सुमेधा सत्यार्थी को मैं 41 वर्षों से जानता हूं। यानी, 1973 से जब वह अपनी मां पंडिता राकेश रानी के साथ वेद प्रचार का काम संभालती थीं। वह ऐसे परिवार से हैं जिसका उद्देश्य सेवा, समर्पण, प्यार और बड़े लक्ष्य के लिए सतत उत्सर्ग करते रहना है। यह उनके स्वभाव और जीन्स में शामिल है। इस समर्पण और समाज समर्पित दाम्पत्य को मेरा विनम्र प्रणाम।
आलोक कुमार
सह प्रान्त संघचालक
दिल्ली
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