भारतीय जवानों ने हाजी पीर दर्रे पर तिरंगा लहराया – 28 अगस्त, 1965

उनके पास खाने के लिए सीले हुए शकरपारे और बिस्कुट थे. तेज़ बारिश हो रही थी और मेजर रंजीत सिंह दयाल एक  पैरा के सैनिकों को लीड करते हुए हैदराबाद नाले की तरफ़ बढ़ रहे थे. उनका अंतिम लक्ष्य था हाजी पीर पास, जिसको पाकिस्तान और भारत दोनों एक अभेद्य लक्ष्य मानते थे. ये पास एक ऐसी जगह पर था जहां से इसका बहुत कम लोगों के साथ कहीं तगड़े प्रदिद्वंदी के ख़िलाफ़ बचाव किया जा सकता था.

करीब साढ़े आठ हजार फुट उंचाई से गुजरनेवाला हाजी पीर दर्रा पाकिस्तान के घुसपैठियों के लिए सबसे मददगार साबित हो रहा था. वो हाजी पीर के रास्ते आ रहे थे और जबावी हमला होने पर वहीं से वापस भी भाग जाते थे. इस रास्ते से ही घुसपैठियों तक रसद और हथियार भी भेजा जा रहा था. ऐसे में हाजी पीर पास पर कब्जा करना सबसे जरूरी था लेकिन ये सबसे चुनौतीपूर्ण भी था.

हाजी पीर कब्जे के लिए भारत ने इसपर दो तरफ से हमला करने की योजना बनाई. पूर्व की ओर से पंजाब रेजिमेंट को हमला करने के लिए कहा गया और पश्चिम से 1 पैरा रेजिमेंट को चोटियों पर कब्ज़ा करने का आदेश मिला. उस वक्त 1 पैरा रेजिमेंट की अगुवाई कर रहे थे मेजर रंजित सिंह दयाल.

रणजीत सिंह दयाल असाधरण बहादुर इंसान थे. नेक दिल के थे. एक कपंनी कमांडर को शादी के लिए जाना था इसलिए रणजीत सिंह दयाल ने तय किया ने खुद तय किया कि वो खुद कंपनी कमांडर बनेंगे. हमने उसे टेलिग्राम किया कि वो शादी करके पूरी छुट्टी बिताकर ही वापस लौंटे. उन्होंने खुद कंपनी कमांडर का जिम्मा संभाल लिया. उन्होंने बड़ी टास्क ले लिया था अपने से कम ओहदे के लिए. वो खुद फौज के साथ हाजी पीर गए.

इस चुनौतीपूर्ण अभियान में मेजर दयाल के साथ बिग्रेडियर अरविंदर सिंह भी थे. ये उनदिनों मेजर के रैंक पर थे. बिग्रेडियर अरविंद सिंह बताते हैं कि मेजर दयाल की अगुवाई में उनका पहला लक्ष्य संक के ढलानों पर कब्जा करना था. उन्होंने दुश्मन पर जबर्दस्त तरीके से हमला बोला और संक के ढलानों पर कब्जा कर लिया. इसके बाद वो हाजी पीर दर्रे की तरफ बढ़े. रात का वक्त था. तेज बारिश हो रही थी. पीठ पर गोला बारूद का बोझ था और सामने करीब डेढ़ हजार फुट की चढाई थी. सुबह होने से पहले अगर हाजी पीर की चोटी पर नही पहुंचते तो वो खुद दुश्मन के आसान शिकार बन जाते. इस मुश्किल हालात में मेजर दयाल ने सैनिकों का हौसला बढाया और वो आगे बढते रहे.

सुबह साढ़े चार बजे मेजर दयाल की टुकड़ी उड़ी-पुंछ हाईवे पर पहुंच चुकी थी. और फिर सुबह का सूरज निकलते ही सैनिकों ने हाजी पीर दर्रे पर हमला बोल दिया. रणनीति के मुताबिक कुछ भारतीय जवानों पाकिस्तानी फौजियों को गोलीबारी में उलझाए रखा और इस बीच मेजर दयाल दूसरी तरफ से वो सैनिकों के साथ अचानक दुश्मन के सामने पहुंच गए. पाकिस्तानी सिपाही चौंक पड़े. उन्हें संभलने का मौका नहीं मिला. कुछ तो हमले में मारे गए. कुछ हथियार छोड़ कर भाग खड़े हुए. और कई पाकिस्तानी घुसपैठिये ऐसे भी थे जो वहीं पकड़े गए. हाजी पीर दर्रे के पास की चोटियों पर हमले के दौरान दुश्मनों ने एक ग्रनेड अरविंदर सिंह पर फेंका था. धमाके से अरविंदर सिंह के पैर का एक हिस्सा उड़ गया.

बिग्रेडियर अरविंदर सिंह बताते हैं कि 28 तारीख तक हमने उसको अपने कब्जे में कर लिया था. ये अलग बात है कि हमने उसे रिटेन करने के लिए दर्रे से ज्यादा उनके बगल वाली चोटी पर कब्जा करना ज्यादा जरूरी होता है. अगर वो हम कब्जा करें तो दर्रे को हम इस्तेमाल कर सकते हैं. वो काम हमने 30 तारीख को किया जिसमें कि मैं कंपनी कमांडर के तौर पर इनवाल्व था. जिसमें मैं बहुत बुरी तरह जख्मी हुआ और अगले छह महीने तक मैं अस्पताल में था.

28 अगस्त सुबह दस बजे तक हाजी पीर दर्रे पर भारत का कब्जा हो चुका था. भारतीय जवानों ने हाजी पीर पर तिरंगा फहरा कर विजय जश्न मनाया. इस जीत के हीरो मेजर रंजित सिंह दयाल और जोरावर चंद बख्शी थे.

हाजी पीर दर्रे पर भारत का कब्जा पाकिस्तान के लिए करारा झटका था. पाकिस्तान के जो घुसपैठिये सैनिक कश्मीर पहुंच गए उनके लौटने का रास्ता अब बंद हो चुका था. वो कश्मीर में ही फंस गए. वो स्थानीय लोगों को भारत के खिलाफ भड़काने आए थे लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया. दूसरी तरफ पाकिस्तानी घुसपैठियों के लिए हाजी पीर दर्रे के रास्ते आने वाली रसद और हथियार की सप्लाई भी ठप पड़ गई.

इस अभियान में साहसपूर्ण शौर्य दिखाने के लिए मेजर रंजीत दयाल और ब्रिगेडियर ज़ोरू बख़्शी को महावीर चक्र दिया गया.

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