संघ मुक्त भारत की संकल्पना हास्यास्पद है – डॉ. जयंतीभाई भाड़ेसिया

5.6.2016,  वि.सं.केंद्र, गुजरात

राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ, गुजरात प्रांत के प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समारोप समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए डॉ. जयंतीभाई भाड़ेसिया (मा. संघचालक, पश्चिम क्षेत्र, रा.स्व.संघ) ने कहाँ कि संघ के स्वयंसेवक प्रशिक्षण लेकर अपने कार्यक्षेत्र मे जाने वाले है. आज का दिन 5 जून रा.स्व.संघ के द्वितीय सरसंघचालक प.पू. श्री गुरूजी की पुण्यतिथि है. आज विश्व पर्यावरण दिन भी है.

विश्व की आज तीन महत्त्वपूर्ण समस्यों है

1. ग्लोबल वार्मिंग

2. ग्लोबल रिसेशन

3. ग्लोबल टेररिज्म.

इन तीनो समस्या का हल हिन्दुत्व जीवनदर्शन, जीवन मूल्यों और जीवन व्यवहार मे निहित है. गाय को रोटी, पक्षियों को दाना, नदियों, पहाड़ो की पूजा यही हिन्दू संस्कृति है. वैश्विक तापमान मे बढ़ोतरी तथा पर्यावरण का रौद्र स्वरूप मनुष्यों का विज्ञान के माध्यम से प्रकृति पर अत्याधिक शोषण का आभारी है. नदी, पर्वत, वन, जंगल, पशु-पक्षी और मनुष्य प्रकृति के सानिध्य मे यदि समतुल्य न रहे तो पृथ्वी संमेलन जैसे कार्य निरुपयोगी रहेंगे. पर्यावरण प्रेमी बन, पञ्चतत्व के साथ संतुलन स्थापित कर हिन्दुत्व के आदर्श जीवन मे अपनाने से ही इस दुषण को अटकाया जा सकता है. प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना, जल संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों की बचत, वृक्षारोपण आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता है.

वैश्विक मंदी के सामने लड़ने के लिए विलासिता की प्रवृति छोड़कर मर्यादित जीवनशैली आवश्यक है और हिन्दू परिवारभाव इसका उपाय है.

जेहादी मानसिकता और मै तथा मेरा संप्रदाय ही सत्य है इस संकुचित भावना से फैले आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए हिंदुत्व के जीवन आदर्श ही उपयोगी है. हमें अपने इन मूल्यों को बनायें रखते हुए राष्ट्रदेव की आराधाना करनी है. डॉ. भाड़ेसिया ने कहाँ कि  संघ मुक्त भारत की संकल्पना हास्यास्पद है. भारत माता की जय कहने का विरोध करने वाली प्रवृत्तियों की हम आलोचना करते है.

संपूर्ण समाज को संगठित करने का कार्य संघ कर रहा है और संघ के स्वयंसेवक ग्रामीण विकास, उपेक्षितों के लिए सेवाकार्य, गौसेवा, सामाजिक समरसता के लिए विभिन्न उपक्रम चला रहे है. संघ की ओर, उसके विचारों की ओर देखने की दृष्टी उपेक्षा से अपेक्षा की ओर परिवर्तित हो रही है. वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत जी भी एक मंदिर, एक जलस्रोत, एक शमशान का प्रतिपादन कर रहे है तथा सामाजिक समरसता के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतिबद्ध है.  आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता सामाजिक समरसता है. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरजी की 125वी तथा संघ के तृतीय सरसंघचालक पू. बालासाहेब देवरस जी की 100वी जन्मजयंती के अवसर पर संघ मे समरस समाज निर्माण मुख्य विषय है.

कलियुग मे संघठन शक्ति उपयोगी है. रा.स्व.संघ व्यक्ति  समाज मे सामान्य से सामान्य व्यक्ति मे देशभक्ति का भाव जगाने का कार्य संघ कर रहा है. व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण इसी प्रक्रिया से प्रांतवाद, भाषावाद, जातिवाद, अस्प्रश्यता तथा सांस्कृतिक आक्रमणों के सामने लड़ा जा सकता है.

इस प्रकार के राष्ट्रीय कार्य के लिए समाज को अपना गौरवशाली ईतिहास, परंपरा, संस्कृति याद कराकर स्वावलंबी बनाने की आवश्यकता है. हमें याद रखना है कि यह हिन्दू राष्ट्र है और हमारे राष्ट्र को विश्वगुरु के स्थान पर पुनः विराजमान करने के लिए हमने कमर कसी है.

इस देश मे रहने वाले सभी पंथ-संप्रदाय के लोगो का एक रक्त है. आज के मुस्लिम भी मूलरूप से हिन्दू ही थे. भारत माता की जय कहने के लिए सभी को आगे आना होगा. हमें समाज को विभाजित करने वाले परिबलो से सावधान रहना होगा. डॉ. भाड़ेसिया ने कहाँ कि संघ राष्ट्रनीति मे मानता है सभी काम राजनीती से नहीं होते.

अंत मे उन्होंने कहाँ कि संघ का ध्येयपूर्ति हेतु समाज को विभिन्न कार्यो मे जुड़ने का आह्वान करते हुए स्वयंसेवको से अपने अपने क्षेत्र मे जाकर कार्य को अधिक गतिवान बने तथा समग्र समाज संघ विचार मे अपना योगदान देकर राष्ट्रभक्ति प्रगट करे.

समारोप कार्यक्रम मे डॉ. जयंतीभाई भाड़ेसिया (मा. संघचालक, पश्चिम क्षेत्र), स्वामिनारायण संप्रदाय से पू. श्री नीलकंठचरण स्वामीजी, श्री जीवराजभाई गाबानी (हीरे के अग्रणी व्यापारी, विरेन जेम्स), श्री मुकेशभाई मलकान (मा. प्रांत संघचालक, गुजरात), श्री महेशभाई परीख (मा.वर्गाधिकारी) तथा श्री नारणभाई वेलाणी ( वर्ग कार्यवाह) मंच पर उपस्थित रहे. समारोप कार्यक्रम मे बड़ी संख्या मे नागरिक तथा पत्रकार बंधू उपस्थित रहे.

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