संघ विचार के महान भाष्यकार दत्तोपंत ठेंगड़ी / पूण्य तिथि – 14 अक्टूबर

श्री ठेंगड़ी 1951 से 1953 तक मध्य प्रदेश में ‘भारतीय जनसंघ’ के संगठन मन्त्री रहे; पर मजदूर क्षेत्र में आने के बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी। 1964 से 1976 तक दो बार वे राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होंने विश्व के अनेक देशों का प्रवास किया। वे हर स्थान पर मजदूर आन्दोलन के साथ-साथ वहाँ की सामाजिक स्थिति का अध्ययन भी करते थे। इसी कारण चीन और रूस जैसे कम्युनिस्ट देश भी उनसे श्रमिक समस्याओं पर परामर्श करते थे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण म॰च, भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच आदि की स्थापना में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही।

26 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगने पर ठेंगड़ी जी ने भूमिगत रहकर ‘लोक संघर्ष समिति’ के सचिव के नाते तानाशाही विरोधी आन्दोलन को संचालित किया। जनता पार्टी की सरकार बनने पर जब अन्य नेता कुर्सियों के लिए लड़ रहे थे; तब ठेंगड़ी जी ने मजदूर क्षेत्र में काम करना ही पसन्द किया।

2002 में राजग शासन द्वारा दिये जा रहे ‘पद्मभूषण’ अलंकरण को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि जब तक संघ के संस्थापक पूज्य डा. हेडगेवार और श्री गुरुजी को ‘भारत रत्न’ नहीं मिलता, तब तक वे कोई अलंकरण स्वीकार नहीं करेंगे। मजदूर संघ का काम बढ़ने पर लोग प्रायः उनकी जय के नारे लगा देते थे। इस पर उन्होंने यह नियम बनवाया कि कार्यक्रमों में केवल भारत माता और भारतीय मजदूर संघ की ही जय बोली जाएगी।

14 अक्तूबर, 2004 को उनका देहान्त हुआ। श्री ठेंगड़ी अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी तथा मराठी में अनेक पुस्तकें लिखीं। इनमें लक्ष्य और कार्य, एकात्म मानवदर्शन, ध्येयपथ, बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर, सप्तक्रम, हमारा अधिष्ठान, राष्ट्रीय श्रम दिवस, कम्युनिज्म अपनी ही कसौटी पर, संकेत रेखा, राष्ट्र, थर्ड वे आदि प्रमुख हैं।

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