कब शुरुआत हुई थी?
संघ शिक्षा वर्ग की शुरुआत 1927 में नागपुर में हुई थी। उस दौरान यह तीन सप्ताह तक चले थे और इन्हें ग्रीष्मकालीन वर्ग कहा गया। फिर कुछ सालों बाद इनका नाम ‘अधिकारी शिक्षा वर्ग’ हो गया। बाद में वर्ष 1950 में इन वर्गों को ‘संघ शिक्षा वर्ग’ के नाम से जाना जाने लगा।
कई वर्षों तक प्रारंभिक व्यवस्था में भोजन आसपास के घरों से आता था और स्थानीय पाठशालाओं में शिक्षार्थियों का निवास रहता था। जैसे नागपुर के लोकांचीशाला, धनवटे नगर विद्यालय (मिल सिटी स्कूल – तत्कालीन नाम) और न्यू इंग्लिश स्कूल के भवन। यह सभी निशुल्क उपलब्ध होते थे। इसके अलावा वर्गों के दौरान चिकित्सा, बिजली, जल इत्यादि के खर्चों के लिए वर्ग में शामिल शिक्षार्थियों से शुल्क भी लिया जाता था।
इन वर्गों की सफलता के लिए डॉ. हेडगेवार को अन्ना सोहनी और मार्तंडराव जोग का सहयोग मिला। शुरूआती वर्गों में शारीरिक कार्यक्रम समाप्त होने पर डॉ. हेडगेवार वर्ग में आये सभी स्वयंसेवकों को चिटणीसपुरा की एक बावड़ी पर तैरने के लिए ले जाया करते थे। आगे चलकर संख्या बढ़ने पर बावड़ी पर जाना बंद हो गया।
1939 के आसपास यह वर्ग हेडगेवार स्मृति मंदिर रेशमबाग, नागपुर में आयोजित होने लगे। तब से अबतक यह संघ शिक्षा वर्ग यही लगते है। यह एकड़ भूमि डॉ. हेडगेवार ने ₹700 में खरीदी थी।
कार्यक्रम की संरचना
प्रातः पांच से रात नौ बजे तक वर्ग के शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रम चलते थे। शुरुआत में सुबह के दो-ढाई घंटे और शाम का डेढ़ घंटा शारीरिक प्रशिक्षण के लिए दिया गया था। दोपहर साढें बारह बजे से पांच बजे तक का समय विश्राम, वार्तालाप, चर्चा और स्वयंसेवकों द्वारा टिप्पणियां लिखकर रखने के लिए रखा गया था।
नागपुर के बाद विस्तार
नागपुर में वर्गों की सफलता के बाद यह 1934 में पुणे में आयोजित होने लगे। फिर अगले साल से पुणे में प्रथम और द्वितीय वर्ष के वर्ग शुरू हो गये। ग्रीष्मकालीन छुट्टियों के सुविधा के अनुसार पुणे का वर्ग 22 अप्रैल से 2 जून तक और नागपुर का वर्ग 1 मई से 10 जून तक हुआ करता था। डॉ. हेडगेवार 15 मई तक पुणे में और उसके बाद नागपुर में प्रवास करते थे।
पुणे के बाद यह वर्ग नासिक में शुरू हुए। साल 1942-43 में इन वर्ग में हिस्सा लेने वाले स्वयंसेवकों की संख्या पौने तीन हजार तक पहुंच गयी थी। इस बीच 1938 में महाराष्ट्र से बाहर लाहौर में भी वर्गों की शुरुआत हुई। इसके बाद जैसे-जैसे कार्य बढ़ता गया, अन्य प्रान्तों में प्रथम और द्वितीय वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग आयोजित होने लगे। अब केवल तृतीय वर्ष की शिक्षा के लिए स्वयंसेवकों का नागपुर में आना अनिवार्य किया गया।
देशव्यापी विस्तार
1940 के नागपुर में हुये संघ शिक्षा वर्ग में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक के सब प्रान्तों से शिक्षार्थी स्वयंसेवक उपस्थित थे। दुर्भाग्यवश इसी साल के शिक्षा वर्ग की समाप्ति के केवल कुछ दिनों के बाद ही यानी 21 जून 1940 को संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का देहावसान हो गया।
मई-जून में ही क्यों?
विद्यालयों और महाविद्यालयों का इन महीनों में ग्रीष्मावकाश रहता है। परीक्षाएं भी समाप्त होने के चलते विद्यार्थी मुक्त रहते है। इसलिए इन महीनों में युवाओं को संघ की कार्यविधि से परिचय करवाने के लिए संघ शिक्षा वर्ग शुरू हुए थे। तभी से यह व्यवस्था आजतक कायम है।
इस निरंतर प्रवाह में रुकावटें
इस दौरान 1948-1949 में संघ पर प्रतिबंध और 1976-1977 में आपातकाल के दौरान प्रतिबंध, 1993 में प्रतिबंध और 1991 में विशेष राष्ट्रीय परिस्थितियों (पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या और लोकसभा चुनाव) के दौरान यह वर्ग अवरुद्ध हुए थे। बीते सालों में कोरोना महामारी के दौरान 2020-2021 में भी इन शिक्षा वर्गों को स्थगित करना पड़ा था।
साल दर साल शिक्षार्थी
साल | संघ शिक्षा वर्गों में सम्मिलित स्वयंसेवक |
2012 | प्रथम वर्ष – 10,623 शिक्षार्थी 7078 स्थानों से द्वितीय वर्ष – 2581 शिक्षार्थी 2116 स्थानों से तृतीय वर्ष नागपुर में – 923 शिक्षार्थी 859 स्थानों से |
2013 | प्रथम वर्ष – 12549 शिक्षार्थी 7408 स्थानों से द्वितीय वर्ष – 3063 शिक्षार्थी 2320 स्थानों से तृतीय वर्ष नागपुर में – 1003 शिक्षार्थी 923 स्थानों से |
2015 | प्रथम वर्ष – 17835 शिक्षार्थी 10540 स्थानों से द्वितीय वर्ष – 3715 शिक्षार्थी 2812 स्थानों से तृतीय वर्ष नागपुर में – 875 शिक्षार्थी 804 स्थानों से |
2017 | प्रथम वर्ष – 15716 शिक्षार्थी 9734 स्थानों से द्वितीय वर्ष – 3796 शिक्षार्थी 2959 स्थानों से तृतीय वर्ष नागपुर में – 899 शिक्षार्थी 834 स्थानों से |
2019 | तृतीय वर्ष नागपुर में – 828 शिक्षार्थी |
2022 | 40 वर्ष से कम आयु के 18,981 और 40 वर्ष से अधिक आयु के 2925 शिक्षार्थियों ने वर्गों में सहभागिता की, इस वर्ष पूरे देश के प्रथम, द्वितीय व तृतीय वर्ष के 101 वर्गों में कुल 21,906 शिक्षार्थी रहे |
विगत वर्षों में मुख्य अतिथि (तृतीय वर्ष समापन समारोह, नागपुर)
पहले नागपुर का वर्ग 40 दिनों का होता था जोकि तृतीय वर्ष के रूप में अब 25 दिनों का होता है। आजादी से पहले के कुछ वर्षों तक यह कुछ समय के लिए 30 दिनों के भी रहे। फिलहाल प्रथम वर्ष और द्वितीय वर्ष देशभर में होते है, जबकि अंतिम तृतीय वर्ष रेशिमबाग, नागपुर में आयोजित होता है।
संघ शिक्षा वर्ग के दो प्रकार हैं – (1) 18 से 40 वर्ष आयु के सामान्य वर्ग, और 41 से 65 वर्ष की आयु के विशेष वर्ग। 65 वर्ष से ऊपर प्रवेश नहीं होता।
वर्तमान में 25 दिनों के दौरान संघ शिक्षा वर्ग के प्रतिभागियों द्वारा संघ के पूर्ण गणवेश में पथ संचलन भी निकाला जाता है। वर्ग के समारोप का कार्यक्रम नागपुर शहर द्वारा आयोजित होता है। साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक का उद्बोधन होता है जोकि तात्कालिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विषयों पर संघ के दृष्टिकोण का सारगर्भित विवरण होता है। इनका सामाजिक मुद्दों जिनसे भारत और उसके नागरिकों का सीधा सरोकार होता है, उसपर सरसंघचालक द्वारा संघ की रूपरेखा पेश की जाती है। इसमें संघ के स्वयंसेवकों को भी व्यापक दृष्टि प्राप्त होती है।
इस दौरान मुख्य अतिथि के तौर पर किसी विशिष्ट व्यक्ति को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है। बीतें एक दशक में आये मुख्य अतिथियों की सूची इस प्रकार है –
साल | अतिथि |
2012 | दैनिक पंजाब केसरी के संचालक व संपादक अश्वनी कुमार |
2013 | आदिचुनचुनगिरी मठ, कर्नाटक के प्रधान पुजारी श्री श्री श्री निर्मलानंदनाथ महास्वामी |
2014 | आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर |
2015 | धर्मस्थल कर्नाटक के धर्माधिकारी पद्मविभूषण डॉ. विरेन्द्र हेगडे |
2016 | साप्ताहिक ‘वर्तमान’ (कोलकाता) के संपादक रंतिदेव सेनगुप्त |
2017 | नेपाल के पूर्व आर्मी प्रमुख जनरल रुकमंगुड कटवाल |
2018 | भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी |
2022 | श्रीरामचंद्र मिशन, हैदराबाद के अध्यक्ष दाजी उपाख्य कमलेश पटेल |
दिसंबर 2022* | श्री काशी महापीठ, वाराणसी के १००८ जगद्गुरु डॉ. मल्लिकार्जुन विश्वाराध्य शिवाचार्य महास्वामी |
2023 | श्री सिद्धगिरी संस्थान मठ, कणेरी, कोल्हापुर के अदृश्य काडसिद्धेश्वर स्वामी |
* वर्ष 2022 में मई और दिसंबर महीनों में दो बार तृतीय वर्ष वर्ग का आयोजन किया गया था।
क्या खास होता है इन वर्गों में :
- सामाजिक समरसता का भाव – इस दौरान देशभर से बिना किसी जातीय और रंगरूप भेदभाव के शिक्षार्थी एकत्रित होते है।
- सामूहिक भोजन – वर्गों में स्वयंसेवक एकसाथ भोजन करते है। इसमें भी किसी तरह से भेदभाव नहीं होता।
- सामूहिक जीवन का भाव जागृत – एक साथ मिलकर रहना और वर्गों की सभी गतिविधियों में एकसाथ सहभागिता करना।
- अखिल भारतीय दृष्टि का व्यापक बोध होता है।
- अनुशासन के प्रति जागरूकता पैदा होती है।
- विविध जानकारियों का ज्ञान – संघ की भौगोलिक रचनाओं और संरचनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव होता है।
- समाज और राष्ट्र के समक्ष पैदा हुई चुनौतियों के समाधान का बोध होता है।
- स्वयंसेवकों में कार्यकुशलता का निर्माण होता है।
- संगठन का भाव – सबके प्रति अपनापन की भावना पैदा होती है।
- स्वावलंबन – वर्गों के दौरान सभी स्वयंसेवक अपने कार्य स्वयं करते है जिससे उनमें अपने कार्यों को स्वयं करने का भाव पैदा होता है।
सरसंघचालक के मुख्य वक्तव्य :
मोहनराव भागवत – “यह सब प्रशिक्षण क्यों चल रहा है? इसलिए चल रहा है क्योंकि भारत माता की जय सारे विश्व में करानी है। क्यों करानी है? हम विश्व विजेता बनना चाहते हैं क्या? नहीं, हमें विजेता बनने की आकांक्षा नहीं रखते हैं। हमें किसी को जीतना नहीं है। हमें सबको जोड़ना है। संघ का कार्य भी किसी को जीतने के लिए नहीं चलता, जोड़ने के लिए चलता है। भारतवर्ष भी दुनिया में आदिकाल से जीता रहा है तो किसी को जीतने के लिए नहीं, सबको जोड़ने के लिए।“ (नागपुर, तृतीय वर्ष, 6 जून 2022)
मोहनराव भागवत – “हमारे प्राथमिक शिक्षा वर्ग होते है। दो-तीन वर्ष संघ में आने वालों में से चुने हुए स्वयंसेवकों को इस वर्ग में प्रवेश दिया जाता है। प्रति वर्ष हजारों स्वयंसेवक इन वर्गों में आते है। उनकी औसत आयु 30 वर्ष होती है और उनमें भी 90 प्रतिशत 20 से 25 आयु समूह के होते है।“ (लोकसत्ता-आयडिया एक्सचेंज – 22 अक्टूबर 2012)