रांची (विसंकें). अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक का विधिवत् उद्घाटन रांची के सरला बिरला स्कूल में पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत जी और सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने किया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने प्रेस वार्ता में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के संबंध में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि संघ की बैठक वर्ष में दो बार होती है, प्रतिनिधि सभा की बैठक मार्च में, जबकि कार्यकारी मंडल की बैठक विजयादशमी एवं दीपावली के बीच होती है. सामान्यतः इन बैठकों में संघ कार्य के विस्तार, गुणात्मकता की दृष्टि से प्रगति और समाज राष्ट्र जीवन में संघ कार्य के प्रभाव पर चर्चा एवं कार्यनीति की कई बातें तय करते हैं. समाज एवं राष्ट्रजीवन से संबंधित कुछ विषयों पर हिन्दू समाज के विचार एवं मन को व्यक्त करने वाले संघ की नीति और विचार से सुसम्बद्ध प्रस्ताव भी बैठक में पारित करते हैं.
सह सरकार्यवाह जी ने बताया कि 30 अक्टूबर से प्रारंभ तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में 400 के लगभग संघ के अधिकारी भाग ले रहे हैं. इस बैठक में जनसंख्या असंतुलन पर हम लोग चर्चा करने वाले हैं. संघ के विस्तार का कार्य तो प्रतिदिन चलता रहता है, परंतु समय समय पर शाखाओं की संख्या बढ़ाने के लिए विशेष कार्य करते हैं. वर्तमान में देश के सभी खण्डों (प्रखण्डों) में संघ का कार्य चल रहा है. अगले तीन वर्षों में देश के सभी मण्डलों तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. अभी देश के 32000 स्थानों पर 52000 शाखाएं चल रही हैं. रांची में 75 शाखाएं चल रही है. इसके साथ ही 13620 साप्ताहिक मिलन केन्द्र एवं 8000 स्थानों पर संघ मंडली चल रही है. शाखा में तरूणों की संख्या बढ़ी है, अभी 66 प्रतिशत शाखाएं छात्रों की है, 91 प्रतिशत शाखा 40 वर्ष से कम आयु के तरूणों की है. नए लोग संघ से जुड़ने के लिए उत्साहित हैं.
दत्तात्रेय जी ने कहा कि संघ के विभिन्न आयामों के माध्यम से भी लोग जुड़ रहे हैं. संघ का काम व्यक्ति निर्माण है, यह काम प्रत्येक दिन लगने वाली शाखा पर होता है. देश में 150 ग्राम विकास के केन्द्र चल रहे हैं. इसके प्रभाव से लोगों ने ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर जाना कम कर दिया है. संघ की ओर से गौ सेवा, सामाजिक समरसता व कुटुम्ब प्रबोधन के कार्य चलाए जा रहे हैं. संघ चाहता है कि समाज में समरसता का भाव बना रहे. प्रत्येक गांव एवं शहर में सभी जातियों के लिए एक श्मशान घाट हो, मंदिरों में सभी लोगों का प्रवेश हो, तालाब एवं कुआं में सभी जल ले सकें. इसका प्रभाव भी दिख रहा है. कुटुम्ब प्रबोधन के माध्यम से परिवारों में आत्मीयता हो, बच्चों में संस्कार आए, प्रत्येक घर में सेवा के भाव रहे इसका प्रयास चल रहा है.