अपने वर्तमान स्वरूप में जम्मू – कश्मीर का अंचल, 1846 में रूपायित हुआ। जब प्रथम सिक्ख युद्ध के अंत में लाहौर और अमृतसर की संधियों के द्वारा जम्मू के डोगरा शासक राजा गुलाब सिंह एक विस्तृत, लेकिन अनिश्चित से हिमालय क्षेत्रीय राज्य, जिसे ‘सिंधु नदी के पूर्व की ओर रावी नदी के पश्चिम की ओर’ शब्दावली द्वारा परिभाषित किया गया था, के महाराजा बन गए।
अंग्रेज़ों के लिए इस संरक्षित देशी रियासत की रचना ने उनके साम्राज्य के उत्तरी भाग को सुरक्षित बना दिया था, जिससे वे 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान सिंधु नदी तक और उसके आगे बढ़ सकें। इस प्रकार यह राज्य एक जटिल राजनीतिक मध्यवर्ती क्षेत्र का भाग बन गया जिसे अंग्रेज़ों ने उत्तर में अपने भारतीय साम्राज्य और रूसी व चीनी साम्राज्य के बीच स्थापित कर दिया था। गुलाब सिंह का इस पर्वतीय अंचल पर शासनाधिकार मिल जाने से लगभग एक – चौथाई सदी से पंजाब के सिक्ख साम्राज्य की उत्तरी सीमा रेखा के पास की छोटी – छोटी रियासतों के बीच चल रही मुहिम और कूटनीतिक चर्चा का अंत हो गया।
19वीं सदी के इस अंचल की सीमा – निर्धारण के कुछ प्रयास किए गए, लेकिन सुस्पष्ट परिभाषा करने के प्रयत्न अक्सर इस भूभाग की प्रकृति और ऐसे विशाल क्षेत्रों के कारण, जो स्थायी बस्तियों से रहित थे, सफल नहीं हो पाए। उदाहरणार्थ – सुदूर उत्तर में महाराजा की सत्ता कराकोरम पर्वत श्रेणी तक फैली हुई थी। लेकिन उसके आगे तुर्किस्तान और मध्य एशिया के सिक्यांग क्षेत्रों की सीमा रेखा पर एक विवादास्पद क्षेत्र बना रहा और सीमा रेखा कभी निश्चित नहीं हो पाई।
इसी प्रकार की शंकाएँ उस सीमा क्षेत्र के बारे में रही, जो उत्तर में अक्साई चिन को आस पास से घेरे हुए है और आगे जाकर तिब्बत की सुस्पष्ट सीमा रेखा से मिलता है और जो सदियों से लद्दाख क्षेत्र की पूर्वी सीमा पर बना हुआ था। पश्चिमोत्तर में सीमाओं का स्वरूप 19वीं शताब्दी के आख़िरी दशक में अधिक स्पष्ट हुआ। जब ब्रिटेन ने पामीर क्षेत्र में सीमा निर्धारण सम्बन्धी समझौते अफ़ग़ानिस्तान और रूस के साथ सम्पन्न किए। इस समय गिलगित, जो हमेशा कश्मीर का भाग समझा जाता था, रणनीतिक कारणों से 1889 में एक ब्रिटिश एजेंट के तहत एक विशेष एजेंसी के रूप में गठित किया गया। सन् 1947 में जम्मू पर डोगरा शासकों का शासन रहा। इसके बाद महाराज हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को भारतीय संघ में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये।
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