श्रीमती शुभांगी भडभडे “डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान” से सम्मानित.

समरसता के स्वर को सबल बनाना होगा – डॉ. कृष्ण गोपाल जी

कोलकाता (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि डॉ. हेडगेवार का दर्शन एक सारस्वत दर्शन है. उन्होंने देश में फैले छुआछूत एवं ऊंच नीच की दूरी को समाप्त करने हेतु ‘भारत माता की जय’ का मंत्र देकर हमें एक ही माता के पुत्र बना दिया. हमें एक सुन्दर, समर्थ एवं आनंददायक समाज बनाना होगा और समरसता के स्वर को सबल बनाना होगा. सह सरकार्यवाह बड़ा बाजार कुमारसभा पुस्तकालय के तत्वाधान में आयोजित 27वें डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान समारोह में स्थानीय कलामंदिर सभागार में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. पुस्तकालय की ओर से शुभांगी भडभडे जी (नागपुर) को  सम्मान स्वरूप श्रीफल, शॉल तथा 1,00,000/- रुपये की राशि एवं मानपत्र प्रदान किया गया.

डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि आज भौतिकता की आंधी में भी जो लोग स्थिर हैं, वे ही देश की प्रज्ञा को बचाकर चलने का प्रयत्न कर रहे हैं. मातृभूमि का सारस्वत स्वर ही इस देश की प्रज्ञा है और इसी प्रज्ञा के कारण राष्ट्र सनातन है. डॉ. हेडगेवार जी इसी प्रज्ञा का संरक्षण करना चाहते थे. उन्होंने कहा कि उनके नाम की अपेक्षा काम से लोगों का परिचय अधिक है क्योंकि डॉ. हेडगेवार जी का मानना था कि यश की लालसा साधना को समाप्त कर देती है.

समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व आईएएस एवं सांसद अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि डॉ. हेडगेवार जैसा व्यक्ति सदियों में कोई एक पैदा होता है. उन्होंने स्त्रियों की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि मातृशक्ति के खड़े होने से ही देश वैभवशाली होगा.

अध्यक्षीय उद्बोधन में त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत राय जी ने कहा कि भारत तीर्थों में बसता है और देश के कोने-कोने से लोग सारी विभिन्नताओं को परे रखकर इन तीर्थों पर एकता के सूत्र में बंधे चले आते हैं. डॉ. हेडगेवार जी ने इसी राष्ट्रीय चेतना और चिंतन के प्रसार हेतु एक अद्भुत संगठन की नींव रखी. उन्होंने सारस्वत साधना में रत नागपुर से पधारी शुभांगी भडभडे को डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान प्राप्त करने हेतु बधाई दी.

प्रख्यात लेखिका शुभांगी मुकुन्द भडभडे ने प्रज्ञा सम्मान ग्रहण करते हुए कुमारसभा पुस्तकालय का आभार व्यक्त किया. उन्होंने सम्मान को सभी सुधी प्रज्ञा साधकों का सम्मान बताते हुए कहा कि बंगाल की धरती भक्ति, क्रांति और साहित्य की त्रिवेणी है. उन्होंने समाज और राष्ट्र के प्रति साहित्यकार के दायित्वों को रेखांकित करते हुए कहा कि लेखक आत्मा और परमात्मा के बीच की कड़ी हैं. वे उत्कट भक्ति को ही जीवन की मुक्ति बताते हुए अपने लेखन को ईश्वर की प्रेरणा मानती है. उन्होंने डॉ. हेडगेवार और विशेषतया पूज्य गुरुजी को अपना ऊर्जास्रोत स्वीकार किया.

समारोह का प्रारंभ सुपरिचित गायक ओम प्रकाश मिश्र ने ‘देश के लिए जियें, समाज के लिए जियें’के सस्वर गायन से किया. स्वागत भाषण कुमारसभा के मंत्री महावीर बजाज तथा धन्यवाद ज्ञापन लक्ष्मीनारायण भाला ने किया. कार्यक्रम का संचालन पुस्तकालय के अध्यक्ष डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने किया.

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