वि. सं. केंद्र-गुजरात
दि. 30.5.2015, शनिवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, गुजरात प्रांत के प्रथम वर्ष, संघ शिक्षावर्ग के समापन समारोह मे बोलते हुए. श्री महेशभाई जीवणी (सह प्रचारक, गुजारत प्रांत) ने कहाँ कि भारत माता सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं है यह चेतना का स्थान है. इसी चेतना के स्थान पर सन 1600 के आसपास मुग़ल आक्रमण के सामने जिन्होंने वीरतापूर्वक फहराया उन शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की तिथि यानि ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी कल है. जिस समय कहा जाता था की मुग़ल साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं होगा ऐसे समय मे उन्होंने मुग़ल साम्राज्य का सूरज डुबो कर ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी 1674 मे हिन्दू पदशाही की स्थापना की. उसके बाद हिन्दू समाज मे में आत्मविश्वास पैदा हुआ.
हिन्दू साम्राज्य कोई अत्याचारियो का साम्राज्य नहीं अपितु एक जीवन प्रणाली है. समाज मे समरसता खड़ी करने का साम्राज्य है. शिवाजी महाराज की सेना सामाजिक समरसता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है जिसमे विभिन्न ज्ञाति, जाति के सैनिक थे और सभी साथ मिलकर भगवा ध्वज का साम्राज्य बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील थे.
उसी प्रकार डॉ. हेडगेवार के समय मे भी कोई हिन्दू कहने की हिम्मत नहीं करता था. ऐसे समय मे डॉ. साहब ने समाज जीवन के उत्थान के लिए एक शस्त्र दिया जिसका नाम है शाखा. उन्होंने पुरे विश्व के कल्याण की कामना करने वाली हिन्दू विचारधारा समाज मे पुनर्जीवित की. आज जब प.पू. सरसंघचालक जी जब कहते है कि यह हिन्दू राष्ट्र है तो कुछ लोगो को शंका होती है.लेकिन विश्व के पास हिंदुत्व की विचारधारा की राह पर चलने के अलावा कोई मार्ग शेष नहीं है क्योकि हिंदुत्व की विचारधारा मानवता की विचारधारा है.
आज विश्व को पर्यावरण दिन मनाना पड़ता है परन्तु हिन्दू जीवन पद्धति मे हमें यह समाज को सिखाना नहीं पड़ता क्योकि हिन्दू जीवन पद्धति मे यह सब पहले से ही निहित है. हमारी परिवार व्यवस्था एक आदर्श व्यवस्था है आज विश्व इसे स्वीकार कर रहा है. हमारे परिवार के अन्दर पुरे समाज का भाव निहित है, विवाह आदि के समय हमारी इस व्यवस्था का जीवंत दर्शन देखने को मिलता है.
आज हमें प्रतिनिधि सभा मे मातृभाषा मे शिक्षण के लिए प्रस्ताव पारित करना पड़ता है अनेक लोग इसके विरुद्ध टिपण्णी करते है. परंतु यह ध्यान रखना होगा की मातृभाषा मे शिक्षण से जीवन परंपरा का संस्कार प्राप्त होता है. शिक्षण व्यवस्था मे बदलाव के साथ परिवार की विचारधारा, रहन-सहन सबकुछ बदल जाता है. आज हमारी परिवार व्यवस्था को तोड़ने के लिए विभिन्न माध्यमो से आक्रमण हो रहे है ऐसे समय आज इसे बचाने के लिए हमें स्वयं ही प्रयत्न करने होगे. हमारी परिवार व्यवस्था मे पहले परिवार, फिर गाँव, फिर समाज जीवन का विचार किया गया है.
समाज जीवन मे सेवा के अनेक उदाहरण हमारे यहाँ है. विश्व मे अनेक संगठन सेवा कार्य करते है लेकिन उनमे से अनेक का हेतु सेवा के माध्यम से धर्मपरिवर्तन रहा है. सेवा मे स्वार्थ नहीं हो सकता क्योकि सेवा निस्वार्थ होती है. हमारा मानव बंधू है इसीलिए सेवा.
आने वाले समय मे एक और सामाजिक क्रांति की आवश्यकता है वह है सामाजिक समरसता की क्रांति. आज विश्व की कोई भी ताकत भारत को तोड़ नहीं सकती. यदि कोई तोड़ सकता है तो वह है हमारी आंतरिक असमानता. भगवान राम ने जिस शबरी के झूठे बेर खाएं थे क्या हम उस शबरी के वंशजो के यहाँ जाते है ? नरसी मेहता के भजन हम गाते है परंतु क्या हम नरसी मेहता जैसी सामाजिक क्रांति का विचार करते है? आज आवश्यकता है भगवान राम, नरसी मेहता, वीर सावरकर की तरह सामाजिक समरसता के लिए समाज को खड़ा होना पड़ेगा. डॉ. आम्बेडकरजी की 125मी जन्मजयंती वर्ष पर हमें यह याद रखना चाहिए कि डॉ. आम्बेडकर जी ने अनेक अत्याचार सहे, धर्मपरिवर्तन के समय अनेक प्रलोभनों को ठुकराते हुए हिन्दू धर्म से ही निकले बौद्ध संप्रदाय को उन्होंने अपनाकर एक आदर्श प्रस्तुत किया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देशभक्ति, समरसता, सेवा का स्वभाव बनाने का कार्य करता है. यह सब कार्य संघ की शाखा के माध्यम से किया जाता है. आज जब विश्व भारतीय योग, पर्यावरण का जतन, हिन्दू परिवार पद्धति, आयुर्वेद आदि को स्वीकार कर रहा है. ऐसे समय मे वर्तमान समाज जीवन मे फिरसे इनसब को लाने का कार्य संघ कर रहा है. आज समाज के विभिन्न वर्गों से पधारे महानुभावो के सिर्फ आशीर्वाद की आवश्यकता नहीं है बल्कि आवश्यकता है इस सामाजिक यज्ञ मे जुड़कर सहयोग करने की. संघ का कार्य दिशा देने का है. आप सब सामाजिक समरसता, पर्यावरण का जतन, हिन्दू परिवार व्यवस्था आदि कार्य मे जुड़े तभी हम भारत माता का जय-जयकार कर सकेगे.
कार्यक्रम के प्रारंभ मे अपने वक्तव्य मे मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. के. एम. आचार्य ने कहाँ कि डॉ. हेडगेवारजी ने विपरीत परिस्थिति मे 1925 मे संघ की स्थापना की जो आज एक वटवृक्ष बन गया है. राष्ट्र उपासना का मार्ग डॉ. साहब ने हमें बताया. आप सभी का अनुशासन, शारीरिक कार्यक्रम आदि देखकर मे प्रभावित हुआ हूँ. गीता मे जो ज्ञान, कर्म एवं भक्ति के तीन मार्ग बताये है उन्हें इस राष्ट्र को समर्पित करना है. संघ का कार्य ही हमारा जीवन कार्य हो, ऐसा मंत्र लेकर हम यहाँ से जाए.
कार्यक्रम मे मंचस्थ अन्य महानुभावो मे श्री मुकेशभाई मलकान- प्रांत संघचालकजी, श्री प्रफुल्लगिरी गौतमगिरी गोस्वामी- मा. वर्गधिकारीजी, श्री तुषारभाई जादवभाई मिस्त्री- वर्ग कार्यवाह उपस्थित रहे.