समाज की समस्याओं का समाधान समाज से ही होगा : भय्याजी जोशी

पुणे, विसंके- ता. 9 – “रा. स्व. संघ को केवल अपने बूते काम नहीं करना है बल्कि सारे समाज को साथ लेकर चलना है। इस समाज की समस्याएं हो तो उनका समाधान इसी समाज में मिल सकता है, यह संघ की भूमिका है,” उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने व्यक्त किए।

रामकृष्ण पटवर्धन लिखित ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – एक विशाल संघटन’ इस मराठी पुस्तक का विमोचन श्री. भय्याजी जोशी के हाथों हुआ। इस अवसर पर वे बोल रहे थे। महाराष्ट्र एज्युकेशन सोसायटी (एमईएस) और स्नेहल प्रकाशन द्वारा संयुक्त रूप से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस अवसर पर विख्यात उद्यमी एवं काइनेटिक उद्योग के प्रमुख अरुण फिरोदिया तथा एअर मार्शल भूषण गोखले (अवकाश प्राप्त) प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित थे। साथ में मंच पर एमईएस के नियामक मंडल के अध्यक्ष राजीव सहस्रबुद्धे, जयंत रानडे और स्नेहल प्रकाशन के रवींद्र घाटपांडे उपस्थित थे।

इस अवसर पर श्री. जोशी ने कहा, “समाज में संस्कार स्थापना की सभी पद्धतियों को परे रखकर संघ का काम शुरु हुआ। संघ के काम में कोई औपचारिकता नहीं थी। पूज्य डॉक्टर हेडगेवारजी ने हमें कार्य का खाका नहीं दिया, बल्कि केवल लक्ष्य दिया। कैसे करना है यह नहीं बताया, केवल क्यों करना है यह बताया।”

संघ की विचारधारा को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, “हमसे अक्सर पूछा जाता है कि नाम में राष्ट्रीय होने के बावजूद आप केवल हिंदुओं के लिए क्यों काम करते है? इसका कारण यह है कि इस देश में हर चीज के लिए हिंदू जिम्मेदार है। अगर पतन होता है तो वह भी हिंदुओं के कारण और परम वैभव प्राप्त होगा तो वह भी हिंदुओं के कारण। धर्म का रक्षण करने से ही देश परम वैभव को प्राप्त होगा। धर्म और संस्कृति का रक्षण करके ही हमें आगे बढ़ना है। समाज में बदलाव लाना हो तो हर व्यक्ति को ‘मैं ही यह बदलाव लाऊंगा’ यह कहते हुए आगे बढ़ना होगा। हमारे मार्ग हमें ही प्रशस्त करने होंगे। इसलिए समस्याओं के लिए हम जिम्मेदार हैं और उनका निराकरण भी हम ही करेंगे। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व देना ही संघ का काम है।संघ के स्वयंसेवक कोई भी कार्य प्रतिस्पर्धा की भावना से नहीं करते।” आचार और विचार में  विपरीतता का सबसे बड़ा  उदाहरण भारत है।

हमारा चिंतन श्रेष्ठ है  लेकिन समाज में क्षरण हुआ है, इसकी ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा, कि व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया में पूर्ण हिंदू होने का अर्थ है दर्शन और आचरण एक समान होना। कोई भी काम अकेले के बूते पर नहीं होता और संघ का यह दावा भी नहीं है। संपूर्ण समाज को एकत्र आना चाहिए यह संघ की भूमिका है। इस अवसर पर श्री. रानडे ने कहा, कि “रा.  स्व. संघ के लिए सम्मान और उत्सुकता दिखाई देती है। इसलिए रामकृष्ण पटवर्धन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विस्तार कैसे हुआ, उसका कार्य कैसे चलता है इसका विवेचन प्रबंधन शास्त्र की दृष्टी से किया है। हालांकि केवल प्रबंधन शास्त्र का चश्मा लगाकर यह पुस्तक नहीं लिखी गई बल्कि लोगों को इसके द्वारा संघ समझाना है। प्रबंधन शास्त्र के अध्येता सारे जग में हैं इसलिए यह पुस्तक महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।” श्री. फिरोदिया ने कहा, “हमारे समाज में व्याप्त अलगाव को अंग्रेजों ने बढ़ावा दिया। इसके लिए हम भी काफी हद तक दोषी है। किसी समय में हम विश्व के नेता थे, लोग हमारा अनुकरण करते थे लेकिन पश्चिमी जगत का अंधानुकरण करते हुए हमने अपना स्वत्व खो दिया है। गरीब लोगों की मदद करना हमारा कर्तव्य है ऐसी मदद करेंगे तभी हमारा देश संभव होगा अन्यथा नहीं।” एअर मार्शल भूषण गोखले ने कहा, “  इस तरह की पुस्तकों से युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी। भारतीय संस्कृति और मूल्यों की जानकारी इस पुस्तक से मिलेगी।”

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