सरसंघचालक जी के भाषण को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने पर राजस्थान पत्रिका को प्रेस परिषद् की फटकार

नई दिल्ली. भारतीय प्रेस परिषद् ने राजस्थान के प्रमुख हिंदी अख़बार राजस्थान पत्रिका के संपादक को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के भाषण को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने और आधे तथ्यों पर आधारित सम्पादकीय टिप्पणी करने का दोषी करार दिया है. जयपुर के डॉ. रमेश चन्द्र अग्रवाल द्वारा वर्ष 2013 में प्रेस परिषद को इस आशय की शिकायत भेजी गयी थी, जिस में राजस्थान पत्रिका के संपादक पर डॉ. भागवत के इंदौर के भाषण को तोड़-मरोड़कर प्रकाशित करने और आधे तथ्य के आधार सम्पादकीय टिप्पणी करने का आरोप लगाया था. प्रेस परिषद् ने अपने 08 जुलाई 2015 के आदेश में राजस्थान पत्रिका को गलत पाया गया है.

राजस्थान पत्रिका से अपने पत्र का अपेक्षित प्रतिसाद न मिलने के बाद डॉ. अग्रवाल ने प्रेस परिषद् का दरवाजा खटखटाया था और अखबार के खिलाफ करवाई करने की मांग की थी. राजस्थान पत्रिका ने “बेशर्मशीर्ष” शीर्षक से लिखे एक सम्पादकीय में संघ के सरसंघचालक डॉ. भागवत के इंदौर के वक्तव्य के कुछ अंश सन्दर्भ के बिना उद्धृत किये थे, जिस के कारण एक विवाह जैसे पवित्र सम्बन्ध के बारे में एक गलत सन्देश समाज में गया था. राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित वह वक्तव्य इस प्रकार था – “लोग जिस को विवाह कहते हैं, वह तो पति और पत्नी के बीच एक करार होता है. किसी कारण से अगर वह करार पूर्ण नहीं होता है तो पत्नी पति को या पति पत्नी को छोड़ सकता है”. वास्तव में डॉ. भागवत का यह वक्तव्य उनके इंदौर में दिए गए भाषण का एक अंश है. यह भाषण २००-३०० साल पुराने सामाजिक करार (Social Contract Theory) के सिद्धांत की समीक्षा पर था. अपने भाषण के दौरान संघ के प्रमुख ने भारतीय और पाश्चात्य तत्वज्ञान और सिद्धांतों के अनेकों उदाहरण दे कर अपने मुद्दे को अधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया था. उनके इस वक्तव्य को सन्दर्भ के बिना प्रकाशित कर राजस्थान पत्रिका ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन और उसके सम्माननीय प्रमुख डॉ. भागवत को अपमानित किया है, ऐसा शिकायतकर्ता ने कहा था.

डॉ. अग्रवाल ने राजस्थान पत्रिका के संपादक को एक पत्र लिख कर गलती को दुरुस्त करने की प्रार्थना की थी और उन के द्वारा भेजे गए स्पष्टीकरण को प्रकाशित करने की विनती की थी. पर, उन्हें उचित प्रतिसाद नहीं मिला, जिस के चलते 29 अगस्त 2013 को डॉ. अग्रवाल ने राजस्थान पत्रिका को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया था. उसका भी कोई परिणाम नहीं मिला. इसके विपरीत समाचार पत्र ने अपने लिखित बयान में शिकायतकर्ता के शिकायत को आधारहीन और असत्य बताया. अख़बार ने कहा कि उन्होंने जो प्रकाशित किया है, वह पूर्णतः ‘सत्यता’ पर आधारित है. अपने समर्थन में अख़बार ने यह भी कहा कि अन्य कई अख़बारों ने इसी प्रकार डॉ. भागवत के वक्तव्य को प्रकाशित किया है. डॉ. अग्रवाल ने राजस्थान पत्रिका के तर्क नकारने के साथ ही प्रेस परिषद् की समिति के सामने अख़बार के खिलाफ कारवाई की मांग को दोहराया.

इस प्रकरण में अंतिम बार 06 अप्रैल 2015 को प्रेस परिषद् की जांच समिति की बैठक हुई तो उसमें शिकायतकर्ता की ओर से जीएस गिल, हरभजन सिंह तथा अखबर की ओर से अंकित आर कोठारी ने अपने-अपने पक्ष रखे. शिकायतकर्ता के वकीलों ने दलील दी कि सरसंघचालक जी ने अपने विचारों को अधिक सुस्पष्ट करने हेतु पाश्चात्य तत्वज्ञान में प्रचलित सामाजिक करार के सिद्धांत को उद्धृत किया था जिसे अख़बार ने शब्दशः सरसंघचालक जी का वक्तव्य है, ऐसा प्रकाशित किया. सम्पादकीय टिप्पणी दर्शाती है कि सरसंघचालक सामाजिक करार के सिद्धांत के समर्थक हैं, जबकि ऐसा नहीं है. अतः अखबार ने उनके वक्तव्य को गलत ढंग से और बिना संदर्भ के प्रकाशित किया है.

संपादकीय टिप्पणी तथा सरसंघचालक जी के भाषण को पढ़ने के बाद जांच समिति ने कहा कि भारतीय तत्वज्ञान तथा पाश्चात्य तत्वज्ञान के भेद स्पष्ट करते हुए डॉ. भागवत ने सामाजिक करार के सिद्धांत का उदाहरण दिया था. समिति का यह मानना था कि राजस्थान पत्रिका ने सन्दर्भ को छोड़ कर केवल उतने अंश को ही प्रकाशित किया और ऐसा कर अखबार ने डॉ. भागवत के वक्तव्य को गलत ढंग से और गलत तरीके से प्रतिपादित किया है. अपने निष्कर्षों के आधार समिति ने समाचार पत्र को तथ्यों को पुनः उचित स्थान पर प्रकाशित करने के निर्देश दिए और प्रेस परिषद को रिपोर्ट प्रेषित की. समिति के निर्णय को स्वीकार करते हुए प्रेस परिषद् ने संघ के सरसंघचालक जी के भाषण के तथ्यों को तोड़ मरोड़ने के आरोप में राजस्थान पत्रिका की भर्त्सना की और फटकार लगायी. संघ के शीर्षस्थ नेताओं के भाषणों को तोड़-मरोड़कर प्रकाशित करने और उस माध्यम से जनता में भ्रम पैदा करने की कोशिशें समाचारपत्रों और टीवी चैनलों द्वारा किए जाने के अनेक उदहारण मिलते हैं. डॉ. भागवत जी के इंदौर के भाषण के सन्दर्भ में भी यही हुआ है. राजस्थान पत्रिका के केस में प्रेस परिषद् का यह निर्णय ऐसे सभी समाचारपत्रों एवं टीवी चैनल्स के लिए सबक होगा.

डॉ. रमेश चंद्र अग्रवाल ने बताया कि अभी तक पत्रिका ने समाचार प्रकाशित नहीं किया है, इस मामले में आगामी कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है.

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