साइकिल वाले पत्रकार बापूराव लेले – जन्म तिथि 29 फरवरी

‘साइकिल वाले पत्रकार’ श्री नारायण बालकृष्ण (बापूराव) लेले का जन्म 29 फरवरी, 1920 को जलगांव (महाराष्ट्र) में हुआ था। बचपन में वे स्वयंसेवक बने और 1940 में डा0 हेडगेवार के देहांत के बाद प्रचारक बन गये। इसी वर्ष उन्होंने मुंबई से बी.कॉम. की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली थी। उन्होंने सांगली, सोलापुर और फिर गुजरात के अमदाबाद, बड़ोदरा आदि में शाखा कार्य किया। लेखन में रुचि होने के कारण इस दौरान भी वे अनेक पत्रों में लिखते थे।

1948 में गांधी जी हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लग गया। ऐसे में बापूराव ने अनेक गुप्त पत्रक निकालकर उनके वितरण का सुचारू तन्त्र बनाया। प्रतिबन्ध के बाद संघ योजना से अनेक पत्र-पत्रिकाएं तथा ‘हिन्दुस्थान समाचार’ नामक समाचार संस्था प्रारम्भ की गयी। इसका केन्द्र मुंबई बनाकर दादा साहब आप्टे तथा बापूराव लेले को यह काम दिया गया।

थोड़े ही समय में इसने पत्र जगत में प्रतिष्ठा बना ली। बापूराव की पत्रकारिता वृत्ति सदा जाग्रत रहती थी। एक बार नागपुर जाते समय मार्ग में रेल दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। चोट के बाद भी बापूराव ने पूरा विवरण लिखकर मुंबई के दैनिक ‘प्रभात’ को भेज दिया।

1953 में बापूराव दिल्ली बुला लिये गये। वे दिन भर साइकिल पर घूमकर समाचार जुटाते और देश भर में भेजते थे। शासकीय कार्यालयों, संसद और मंत्रियों के घर तक उनकी निर्बाध पहुंच थी। वे संघ के बड़े अधिकारियों की भेंट प्रधानमंत्री तक से करवा देते थे। संघ और शासन के बीच वे सेतु बनकर काम करते थे। वे पांच वर्ष तक ‘भारतीय प्रेस परिषद’ के सदस्य भी रहे।

काम की विशेष प्रवृत्ति के कारण वे अलग कमरा लेकर रहते थे। 1962 में नागपुर और पुणे से प्रकाशित होने वाले ‘तरुण भारत’ के दिल्ली संवाददाता का काम भी उन पर आ गया। एक मित्र ने उन्हें एक पुराना स्कूटर दे दिया। इससे उनकी गति बढ़ गयी।

वे 1963 में राष्ट्रपति डा0 राधाकृष्णन के साथ ब्रिटेन और 1966 में शास्त्री जी के साथ ताशकंद गये। 1975 के आपातकाल में पत्रकार होने के नाते उन पर पुलिस ने हाथ नहीं डाला। इसका लाभ उठाकर उनके आवास पर संघ के भूमिगत अधिकारी ठहरने लगे।

आपातकाल में शासन ने सब समाचार संस्थाओं को मिलाकर ‘समाचार’ नामक एक संस्था बना दी। 1977 में यद्यपि इन्हें फिर स्वतन्त्र कर दिया; पर तब तक हिन्दुस्थान समाचार को भारी आर्थिक हानि हो चुकी थी।

1980 में इंदिरा गांधी ने फिर सत्ता में आने पर योजनाबद्ध रूप से हिन्दुस्थान समाचार के आर्थिक òोत बंद कर दिये। 1982 में इस पर प्रशासक नियुक्त कर दिया और अंततः 1986 में यह संस्था ठप्प हो गयी; पर बापूराव हिन्दी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी के कई पत्रों में नियमित रूप से लिखते रहे।

बापूराव पत्रकार होते हुए भी मूलतः प्रचारक ही थे। उनकी षष्ठिपूर्ति पर सांगली के एक कार्यक्रम में उन्हें 61,000 रु0 भेंट किये गये। बापूराव ने बिना देखे वह थैली ‘तरुण भारत’ के लिए दे दी। धीरे-धीरे उनका शरीर थकने लगा। अतः उनके भतीजे उन्हें जलगांव ले गये।

1996 में दिल्ली में उनकी 75वीं वर्षगांठ मनाई गयी। अक्तूबर, 2001 में प्रधानमंत्री अटल जी ने अपने निवास पर उन्हें सम्मानित किया। इस अवसर पर संघ, भाजपा तथा हिन्दुस्थान समाचार से जुड़े उनके सब पुराने मित्र उपस्थित थे। प्रसन्नता और उल्लास के वातावरण में सब उनके गिरते हुए स्वास्थ्य को लेकर चिंतित थे।

जलगांव लौटकर भी उन्हें चैन नहीं था। वे दिल्ली जाकर फिर काम प्रारम्भ करना चाहते थे; पर शरीर निढाल हो चुका था। 11 अगस्त, 2002 को मन के उत्साह एवं उमंग के बावजूद इस ऋषि पत्रकार ने संसार से विदा ले ली।

(संदर्भ – बापूराव लेले : व्यक्ति और कार्य, वसंत आप्टे)

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