सादगी, समर्पण, समरसता और सरलता के प्रतीक पी. परमेश्वरन जी का पुण्यस्मरण

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि एक हजार वर्ष का इतिहास पराधीनता और आत्मरक्षा का इतिहास रहा है. जब कभी विश्व का इतिहास सदाशयता से लिखा जाएगा तो नृशंस और बर्बर शक्तियों के सामने जो दृढ़ता के साथ टिका और आत्मरक्षा के साथ जिसने अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा की, उस हिन्दू समाज की सदैव चर्चा होगी. आज जो विकृतियाँ हैं वो प्राणों की रक्षा के लिए संकुचित होने के कारण, सामाजिक संपर्क व संवाद के अभाव के कारण, इन बाड़ों और दीवारों का विरोध शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद तक ने किया. इसी क्रम में देश की और केरल की चुनौतियों को संघ ने भी स्वीकारा और पी. परमेश्वरन ने भी. परशुराम और शंकराचार्य की धरती केरल में जो सामाजिक वर्जनाएं थीं, उस चुनौती का मुकाबला कर परमेश्वरन जी ने संघकार्य व दृष्टि द्वारा लोगों के आचार, व्यवहार व दृष्टि को बदला.

सह सरकार्यवाह पी. परमेश्वरन जी के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. विवेकानंद केंद्र और दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से एनडीएमसी सभागार, नई दिल्ली में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया था. सह सरकार्यवाह ने कहा कि पी. परमेश्वरन जी निष्ठावान व ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ता थे. संघर्ष और दमन के बावजूद संघ ने कभी मौलिक दर्शन को नहीं छोड़ा और संघर्ष का निर्णय लिया. परमेश्वरन जी उस संघर्ष में अग्रिम पंक्ति में रहे. वैचारिक व व्यावहारिक रूप में वामपंथ का प्रतिरोध हजारों हजार कार्यकर्ताओं के साथ पी. परमेश्वरन जी ने किया और परिणाम यह है कि आज देश में सर्वाधिक संख्या में संघ की साढ़े चार हजार शाखाएं केरल में ही चल रही हैं.

पी. परमेश्वरन जी को श्रद्धांजलि देते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि मुझे जीवन में कभी परमेश्वरन जी के साथ काम करने का मौक़ा नहीं मिला. किन्तु उन्हें पांच से अधिक बार मिलने के अवसर में बहुत कुछ सीखने को मिला. पं. दीनदयाल जन्मशती के सम्बन्ध में एक लम्बी डेढ़-दो घंटे की मुलाक़ात में पता लगा कि एक सीधा, सरल व्यक्तित्व प्रेरणा देने की कितनी बड़ी ताकत रखता है. ऐसा व्यक्तित्व जिसने कभी स्व के लिए नहीं, बल्कि समाज, देश और विचारधारा के लिए सोचने और जीने का ही काम किया.

रामकृष्ण मिशन से जुड़े स्वामी शान्तात्मानंद ने कहा कि परमेश्वरन जी का पूरा जीवन मानवता और समाज को समर्पित रहा. वे सही अर्थों में स्वामी विवेकानंद के सेनापति थे, जिन्होंने मौनभाव से धर्म, संस्कृति, समरसता और वैचारिक दृढ़ता के लिए ही जीवन जिया.

दीनदयाल शोध संस्थान के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व सांसद डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि परमेश्वरन जी दीनदयाल शोध संस्थान के प्रथम अकादमिक निदेशक थे. उनके स्वभाव की अकाद्मिकता “मंथन” में परिलक्षित होती है. देश और दुनिया के अंग्रेजी पाठकों को पांचवें-छठे दशक में राष्ट्रीयता और हिन्दुत्व संप्रेषित करने वालों में के.आर. मलकानी के साथ पी. परमेश्वरन अग्रिम पंक्ति में रहे.

ऑर्गनाइजर के पूर्व संपादक आर. बालाशंकर ने कहा कि पी. परमेश्वरन जी एक शिक्षाविद, महान चिन्तक, संत और काव्य  प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व के साथ उच्च मानवीय मूल्यों और गुणों के धनी थे.

विवेकानंद केंद्र के कोषाध्यक्ष हनुमंत राव ने कहा कि परमेश्वरन जी ने केरल में हो अथवा देश के स्तर पर, ऐसा अद्वितीय कार्य किया जो कार्यकर्ताओं के लिए सदैव अनुकरणीय बना रहेगा. मनसा, वाचा, कर्मणा का उनका जीवन और आचरण सदैव याद किया जाएगा.

ऐश्वर्या अशोकन ने मलयालम कविता और राजेन्द्र जी ने विदा हो रहा मैं प्रार्थना प्रस्तुत की.

2

Saptrang ShortFest - All Info