डॉ. आम्बेडकर वनवासी कल्याण ट्रस्ट, सूरत द्वारा आम्बेडकरजी की जन्म जयंती के अवसर पर सूरत, गुजरात में 14 अप्रैल को “ सामाजिक समरसता के उदघोषक, प्रखर राष्ट्रभक्त डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर-एक प्रेरणादायक जीवन” विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. श्री रमेशजी महाजन (निवृत प्राध्यापक तथा सामाजिक समरसता मंच, महाराष्ट्र के स्थापक सदस्य) तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री सी. आर. परमारजी(आई.पी.एस., जॉइंट पुलिस कमिश्नर, सूरत) थे.
इस अवसर पर बोलते हुए श्री रमेशजी महाजन ने कहाँ कि यदि डॉ. आम्बेडकर को मात्र भारत रत्न, संविधान के निर्माता, समता के आराधक, दलितों के उद्धारक जैसे शब्दों तक सीमित रखेगे तो यह बाबासाहेब के जीवन के साथ अन्याय होगा. अर्थात यदि एक शब्द मे कहना हो तो प्रखर राष्ट्र भक्त डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ही योग्य परिचय है.
श्री रमेशजी ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर ब्राम्ह्मण विरोधी नहीं थे उनका विरोध ब्राह्मणत्व को लेकर था. जन्म के आधार पर व्यक्ति-व्यक्ति मे भेद करने कि प्रवृति ही ब्राह्मणत्व है. वे कहते थे हमें ब्राह्मणत्व रहित ब्राम्ह्मण चलेगा लेकिन ब्राह्मणत्व से ग्रस्त बहुजन नहीं चेलेगा. हिन्दू धर्म के विषय में डॉ. आम्बेडकरजी कहते थे समता का साम्राज्य स्थापित करने हेतु हिन्दू धर्म से बड़ा आधार मिलना मुश्किल है. लेकिन हिंदुत्व जितनी स्पर्श्यो की जागीर है उतनी ही अस्पर्श्यो कि भी है. जो कार्य वशिष्ट, श्री कृष्ण, तुकाराम आदि संतो ने किया वही कार्य संत वाल्मिकी, संत चोखामेला, संत रोहिदास आदि लोगो ने भी किया है. हिंदुत्व कि रक्षा के लिए हजारो दलितों ने अपने बलिदान दिए है. हिन्दुओ के नाम से बनाए गए मंदिर में छुआछुत का भेद नहीं होना चाहिए.
डॉ. आम्बेडकरजी का मानना था कि हमारे बाहर जाने का मार्ग हिन्दू धर्म ने खुला छोड़ दिया है, किन्तु बाहरवालो को अंदर आने का मार्ग बंद कर दिया है. मैं हिन्दू धर्म का शत्रु हूँ ऐसी मेरी आलोचना की जाती है, परंतु एक दिन ऐसा आयेगा कि मैंने हिंदू धर्म को उपकृत किया है ऐसा समाज एक दिन मानेगा.
श्री रमेशजी ने कहाँ कि डॉ. आम्बेडकरजी कहा करते थे कि धर्म कि जरुरत सबसे ज्यादा गरीबो को हैं, गरीब जीता है तो बस आशाओं के सहारे यदि आशाए नष्ट हो जाएँ तो जिन्दगी कैसी होगी ? धर्म इन्सान को आशावादी बनता है. बाबासाहेब ने कहा कि स्पृश्य हिन्दुओ से कुछ मुद्दों पर मेरा विवाद है लेकिन हमारे देश की स्वतंत्रता की रक्षा हेतु मै अपने प्राण भी समर्पित करूँगा. हमारे खून की अंतिम बूंद तक हम हमारी स्वतंत्रता की रक्षा जी-जान से करेगे. डॉ. आम्बेडकर भारत के विभाजन के प्रखर विरोधी थे.
आदिवासियों के विषय में डॉ. आम्बेडकर कहते थे, आदिवासिओ के रीति-रिवाज में सुधार करके उन्हें सभ्य बनाने का हिन्दुओ ने कभी प्रयास नहीं किया. आदिवासिओ को अपनाने के लिए उनमे मिल-जुलकर रहेने की आवश्यकता है. अगर अहिंदू लोगो ने उनमे सुधार बदलाव करवाया और उन्हें अपने धर्म की दीक्षा दी तो, वे लोग ही हिन्दुओ की शत्रु सेना बन जायेगी.
श्री रमेशजी ने कहाँ कि राष्ट्र भाषा के रूप मे संस्कृत को स्थान मिले इसके डॉ. आम्बेडकर जी आग्रही थे. बौद्ध धर्म हिन्दू समाज का भाग होने के कारण उन्होंने बौद्ध धर्म अंगीकार किया.