सेवा का उद्देश्य समाज को समर्थ बनाना – श्री मोहनजी भागवत

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन राव भागवत ने कहा कि “संघ की सेवा में कोई भेद नहीं होता, इसलिये पात्रता के लिये हिंदू या स्वयंसेवक होना जरूरी नहीं है. यह संबंध निरपेक्ष आत्मीयता का है, जिसमें किसी मुआवजे की अपेक्षा नहीं है.” संघ निरपेक्ष आत्मीयता से सेवा करता है. पूर्व में उपेक्षा के कारण ही समाज की दुर्दशा हुई. संतोष व्यक्त किया कि दुर्बल एवं वंचित वर्ग की समर्थों द्वारा उपेक्षा का पाप अब सेवा से धुल रहा है.

सेवा धर्म है, मेरे जीवन से सभी का जीवन सुखी हो, निरामय हो मनुष्य की यही कल्पना होना चाहिये. यह हमारी प्राचीन परंपरा का आदेश है. अपने साथ सबको सुखी, सुरक्षित बनाना ही मानव धर्म है. यदि केवल अपने हित की चिंता की तो वह धर्म नहीं है. सरसंघचालक डॉ भागवत जी राष्ट्रीय सेवा भारती के तत्वावधान में राष्ट्रीय सेवा संगम के दूसरे दिन प्रतिनिधियों को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि डॉ हेडगेवार के मन में देश की दुर्दशा को देख पीड़ा थी, यही कारण रहा कि संघ अपने जन्म के साथ ही सेवा रूप लेकर आया है. डॉ हेडगेवार ने सेवा की, 1925 में संघ की स्थापना हुई थी. मार्च 1926 में राम नवमी के अवसर पर निकलने वाली यात्रा ने स्वयंसेवकों ने सेवा की थी. यह आत्मीयता की भावना ही थी, हमारा सबके साथ आत्मीयता का रिश्ता है. स्वयंसेवक अपने आस पास के लोगों के दुख, दारिद्रय, अभाव को दूर करने के लिये प्रयास करें.

उन्होंने कहा कि हमारी सेवा का उद्देश्य समाज को समर्थ बनाना है. संघ की कोई अपेक्षा, आकांक्षा नहीं है, कुछ पाना नहीं है, संघ ने केवल सेवा ही करनी है. मुझे क्या करना है, यह सोचकर सेवा नहीं करनी, पर सेवितजन की क्या आवश्यकता है, उसके अनुसार सेवा करनी. और आज का सेवितजन समर्थ बन सेवा करने वाला बने.

उन्होंने प्रसिद्ध उद्योगपति अज़ीम प्रेम जी के कथन से सहमति व्यक्त की कि सेवा का कार्य अति विशाल है और इसके माध्यम से उत्कट राष्ट्रभाव से परिपूर्ण भारत के निर्माण के लिये सबको मिलकर काम करना पड़ेगा. सरसंघचालक ने सभी प्रतिनिधियों से सेवा प्रकल्पों और उनके कार्यों की संख्या बढ़ाने की गति को दोगुनी करने के लिये संकल्प लेने का आह्वान किया. उन्होंने संगम में देश भर से आये प्रतिनिधियों से कहा कि अपने कामकाज का सिंहावलोकन कर सेवा करने वाली देश की सज्जन शक्ति को अपने से जोड़कर साथ-साथ चलें.

डॉ भागवत ने कहा कि संघ की प्रेरणा से राष्ट्रीय सेवा भारती ने पिछले 25 वर्षों में काफी बड़ा आकार ग्रहण किया है, लेकिन अति विशाल राष्ट्र के समक्ष यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. हमें सर्वांग सुंदर समाज बनाना है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति समर्थ हो. इसके लिये हमें और अधिक विस्तारित एवं व्यवस्थित रूप से कार्य करना होगा. संस्कारों से लेकर स्वावलंबन का भाव जगाकर समाज को खड़ा करने के लिये कार्य की गति बढ़ानी होगी. इसी स्वावलंबी समाज व देश ने 2000 वर्ष से असफल प्रयोगों से निराश दुनिया को नया संबल देना है.

सरसंघचालक जी ने कहा कि 1989 में संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार जी की जन्मशती पर सेवा निधि बनाई गई थी और अगले एक वर्ष यानी 1990 में ही 10 हजार सेवाकार्य शुरू हो गये थे और अब यह बढ़कर डेढ़ लाख से अधिक हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्रीय सेवा भारती अन्योन्याश्रित हैं. अंतर बस इतना है कि संघ कार्य अनौपचारिक है, दूसरी ओर सेवा भारती का काम औपचारिक है.

मुख्य अतिथि विप्रो के चेयरमैन अज़ीम प्रेम जी ने कहा कि जब वह यहां भागवत जी के अनुरोध पर आ रहे थे तो कुछ ने आपत्ति जताई थी, जिसे उन्होंने दरकिनार कर दिया. उन्होंने कहा कि वह राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं. वह देश और समाज को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं और उनके काम की प्रशंसा करते हैं. कई लोग निस्वार्थ भाव से राष्ट्र के लिये जीवन लगा रहे हैं. प्रत्येक व्यक्ति के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा सुलभ बनानी होगी, निचले वर्ग तक लाभ पहुंचाना होगा. शिक्षा के क्षेत्र में विकास पर जोर देते हुये कहा कि बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र में हम सभी को मिलकर सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र, संस्थानों को मज़बूत करना चाहिये. निजी शिक्षण संस्थान इनका स्थान नहीं ले सकते. शिक्षकों को प्रशिक्षित करना होगा. शिक्षा संस्थान व्यवसाय या लाभ के लिये नहीं होना चाहिये.

विशिष्ट अतिथि जीएमआर ग्रुप के संचालक जीएम राव ने कहा कि हमें यह समझना चाहिये कि हम समाज को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं और देश को क्या दिशा देना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि हम अमीर या संपन्न हैं, बल्कि उन्होंने (सेवितजन) सेवा का अवसर दिया है, इसलिये सेवा कर पा रहे हैं. कार्यक्रम में परम पूज्य सरसंघचालक ने जीएमआर वारालक्ष्मी फाउंडेशन द्वारा तैयार सीडी ‘टुवर्ड्स स्किलिंग इंडिया’ का लोकार्पण किया.

जी मीडिया समूह के अध्यक्ष सुभाष चन्द्रा ने भारतीय परम्परा में दान के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि धर्म शास्त्र भी आय के छठवें भाग को सामाजिक कार्यों में लगाने का निर्देश देते हैं. संगम में लगी प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है, जिसमें संघ और सेवा भारती के विभिन्न सेवा कार्यों को बखूबी दर्शाया गया है.

 

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