स्टीवेंस को यमलोक पहुंचाने वाली वीर बालिकाएं शान्ति घोष और सुनीति चौधरी

नई दिल्ली. त्रिपुरा भारत का एक राज्य है, पर स्वतंत्रता से पूर्व वह बंगाल का एक जिला तथा उसका मुख्यालय कोमिल्ला था. वहां के क्रूर जिलाधीश स्टीवेंस के अत्याचारों से पूरा जिला थर्रा रहा था. वह क्रांतिवीरों को बहुत कड़ी सजा देता था. अतः क्रांतिकारियों ने उसे ही मजा चखाने का निश्चय किया. पर, यह काम आसान नहीं था, क्योंकि वह बहुत कड़ी दो स्तरीय सुरक्षा में रहता था. कार्यालय का अधिकांश काम वह घर पर ही करता था. उससे मिलने आने वाले हर व्यक्ति की बहुत सावधानी से तलाशी ली जाती थी. उन दिनों कोमिल्ला के फैजन्नुसा गर्ल्स हाई स्कूल की प्रधानाचार्या कल्याणी देवी थीं. वे सुभाषचंद्र बोस के गुरु वेणीमाधव दास की पुत्री थीं. उनकी छोटी बहन वीणा दास बंगाल के गवर्नर स्टेनली जैक्सन के वध के अपराध में 13 वर्ष का कारावास भोग रही थीं. कल्याणी देवी बड़े प्रखर विचारों की थीं तथा छात्राओं के मन में भी स्वाधीनता की आग जलाती रहती थीं.

कल्याणी देवी ने एक दिन कक्षा आठ की छात्रा शांति घोष एवं सुनीति चौधरी को अपने पास बुलाया. ये दोनों बहुत साहसी तथा बुद्धिमान थीं. इन तीनों ने मिलकर स्टीवेंस को मारने की पूरी योजना बनाई. 14 दिसम्बर, 1931 को शांति और सुनीति अपने विद्यालय की वेशभूषा में स्टीफेंस के घर पहुंच गयीं. दोनों ने अपने कपड़ों में भरी हुई पिस्तौल छिपा रखी थी. द्वार पर तैनात संतरी के पूछने पर उन्होंने कहा कि हमारे विद्यालय की ओर से तीन मील की तैराकी प्रतियोगिता हो रही है, इसमें हमें जिलाधीश महोदय का सहयोग चाहिए. उन्होंने जिलाधीश महोदय के लिए एक प्रार्थना पत्र भी उसे दिया. संतरी ने उन्हें रोका और अंदर जाकर वह पत्र स्टीवेंस को दे दिया. स्टीवेंस ने उन्हें मिलने की अनुमति दे दी. उनके बस्तों की तो ठीक से तलाशी हुई, पर लड़की होने के कारण उनके शरीर की तलाशी नहीं ली गयी.

अंदर जाकर दोनों ने जिलाधीश का अभिवादन कर उनसे यह आदेश करने को कहा कि तैराकी प्रतियोगिता के समय नाव, स्टीमर, मोटरबोट आदि नदी से न निकलें, जिससे प्रतियोगिता ठीक से सम्पन्न हो जाए. स्टीवेंस ने कहा कि प्रार्थना पत्र पर तुम्हारे विद्यालय की प्रधानाचार्या जी के हस्ताक्षर नहीं हैं. पहले उनसे अग्रसारित करा लाओ, फिर मैं अनुमति दे दूंगा. शांति और सुनीति मौका देख रही थीं. उन्होंने कहा कि आप यह बात कृपया इस पर लिख दें. स्टीवेंस ने कलम उठाई और लिखने लगा. इसी समय दोनों ने अपने कपड़ों में छिपी पिस्तौल निकाली और स्टीवेंस पर गोलियां दाग दीं. गोली की आवाज सुनते ही बाहर खड़े संतरी और कार्यालय में बैठे लिपिक आदि अंदर दौड़े, पर तब तक तो स्टीवेंस का काम तमाम हो चुका था.

सबने मिलकर दोनों बालिकाओं को पकड़ लिया. सब लोग डर से कांप रहे थे, पर शांति और सुनीति अपने लक्ष्य की सफलता पर प्रसन्न थीं. दोनों को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया. शांति उस समय चौदह तथा सुनीति साढ़े चौदह वर्ष की थी. अवयस्क होने के कारण उन्हें फांसी नहीं दी जा सकती थी. अतः उन्हें आजीवन कालेपानी की सजा देकर अंदमान भेज दिया गया. इस प्रकार दोनों वीर बालिकाओं ने अपनी युवावस्था के सपनों की बलि देकर क्रांतिवीरों से हो रहे अपमान का बदला लिया.

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